आखिर क्यों कर रहे हैं वीरभद्र सुक्खु का विरोध

Created on Monday, 26 February 2018 08:42
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। वीरभद्र ने एक बार फिर सुक्खु को पद से हटाने की मांग की है। यही मांग उन्होने विधानसभा चुनावों से पूर्व भी की थी। उस समय इसी मांग के कारण हाईकमान ने वीरभद्र को फिर से मुख्यमन्त्री का चेहरा घोषित किया था और चुनाव की पूरी बागडोर उनके हाथ में दे दी थी। चुनाव की पूरी कमान मिलने सेे ही 68 में से 56 टिकट उन्होने अपनी पंसद के लोगों को दिये और केवल 15 ही इनमे से जीत पाये। दूसरी ओर संगठन के खाते में केवल 15 टिकट आये जिनमें से 6 पर जीत हासिल हुई। पार्टी के भीतर का यह सच तब सामने आया जब सुक्खु ने वीरभद्र को पलटकर आईना दिखाया।
स्मरणीय है कि अप्रैल 83 में वीरभद्र ने प्रदेश की बागडोर संभालने से पूर्व तत्कालीन मुख्यमन्त्री स्व. रामलाल ठाकुर के खिलाफ फाॅरेस्ट माफिया को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए एक पत्र प्रदेश के विधायकों और सांसदो के नाम लिखा था और यह पत्र उन्ही के लोगों ने सार्वजनिक भी कर दिया था। उस समय स्व. हेमवत्ती नन्दन बहुगुणा कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर बगावत पर उतर आये थे। यह आशंका बन गयी थी कि इस बगावत का असर स्व. ज्ञानी जैल सिंह के राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ सकता है। क्योंकि बहुगुणा के साथ वीरभद्र की पांवटा साहिब और बड़ोग में हुई दो बैठके सार्वजनिक हो चुकी थी और उस समय दलबदल विरोधी कानून तो था नही। इस परिदृश्य में इस संभावित डैमेज को कन्ट्रोल करने के लिये ही रामलाल को राज्यपाल और वीरभद्र को प्रदेश का मुख्यमन्त्री बनाया गया था। लेकिन जिस फाॅरैस्ट अपराध के खिलाफ झण्डा उठाने का दावा करके वीरभद्र सत्ता में आये थे उसका आज का कडवा सच यह है कि वीरभद्र का रोहडू वनभूमि पर हुए अवैध अतिक्रमणों में पहले स्थान पर है। इसका दूसरा सच रामलाल सूरी की शिकायत पर आयी लोकायुक्त की रिपोर्ट में भी दर्ज है।
1983 के बाद 1993 में विधानसभा का घेराव करवाकर वीरभद्र कैसे मुख्यमन्त्री बने थे इसके तो सुशील कुमार शिंदे भी स्वयं गवाह रहे हैं क्योंकि वह तब भी प्रदेश के प्रभारी थे। 1993 के बाद 1998 में छः दिन के लिये और फिर 2003 और 2012 में किस तरह से दबाव की राजनीति करके मुख्यमन्त्री बने है इसकी जानकारी प्रदेष की राजनीति की खबर रखने वालों को है। वीरभद्र अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को मानहानि दावे करके कैसे दबाने का प्रयास करते आये हैं इसे शान्ता कुमार, विजय सिंह मनकोटिया और शैल के संपादक बलदेव शर्मा बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन मानहानि के एक भी मामले को वीरभद्र अन्तिम मुकाम तक नही ले जा पाये हैं। हर मामला अन्ततः वापिस लिया गया है। जब से वीरभद्र ने प्रदेश की बागडोर संभाली है वह एक बार भी सत्ता में रिपिट नहीं कर पाये हैं। वीरभद्र जिस तरह की राजनीति करते आये हैं शायद उसी का परिणाम है कि वह आज अपने अन्तिम पड़ाव में सीबीआई और ईडी के मामले झेल रहे हैं। 2014 में प्रदेश की चारों लोकसभा सीटें कांग्रेस ने इन्ही आरोपों के कारण हारी है यह सब जानते हैं। ईडी ने जब मुख्य अभियुक्तों को छोड़कर सहअभियुक्त एलआईसी ऐजैन्ट आनन्द  चौहान को गिरफ्तार किया था उसी समय कुछ हल्कों में यह संकेत चला गया था कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव नही जितेगी और वही हुआ भी है। अब लोकसभा चुनावों से पहले एक और सहअभियुक्त वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी से फिर यह संकेत गये हैं कि कांग्रेस लोकसभा नही जितेगी क्योंकि वक्कामुल्ला की गिरफ्तारी से यह आशंका तो प्रबल हो ही गयी है कि ईडी आने वाले समय में वीरभद्र और उनके विधायक बेटे विक्रमादित्य को भी पकड़ सकती है। क्योंकि फार्म हाऊस तो विक्रमादित्य सिंह की कंपनी के नाम है और इसमें हुए निवेश का 90 लाख रूपया वीरभद्र से गया है। यदि यह सारा निवेश मनीलाॅंड्रिंग है तो इसे केवल वीरभद्र और विक्रमादित्य ही स्पष्ट कर सकते हैं इसके खुलासे के लिये गिरफ्तारी की संभावना से इन्कार तो नही किया जा सकता है।
ऐसे में इस समय वीरभद्र का एक मात्र मकसद इस संभावित गिरफ्तारी से बचना है। जबकि मोदी और अमितशाह की गंभीरता और प्राथमिकता तो लोकसभा चुनाव जीतना है। उनके लिये भ्रष्टाचार तथा उसके खिलाफ कारवाई कोई मायने नही रखती है। वीरभद्र को गिरफ्तारी से बचाने के लिये कई और सहअभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन वीरभद्र के बचने के साथ भाजपा मोदी को तो हिमाचल चाहिये और इसके लिये कांग्रेस का कमजा़ेर होना बुहत जरूरी है। कांग्रेस को कमजोर करने के लिये पार्टी के भीतर एक बडी लड़ाई खड़ी करना आवश्यक है जो कि सुक्खु को इस तरह घेर कर ही संभव है। राजनीतिक विष्लेशकों के मुताबिक वीरभद्र सिंह द्वारा सुक्खु को हटाने की मांग करना अपरोक्ष में भाजपा को मजबूत करना हो जाता है क्योंकि जहां सारा कांग्रेस संगठन प्रदेश के भाजपा सांसदो से उनके पांच वर्षों की सांसद निधि खर्च करने का हिसाब मांग रहा है वहीं पर सुक्खु को हटाने की मांग करना कांग्रेस की इस आक्रामकता को बन्द करने का प्रयास बन जाता है।