शिमला/शैल। राजनीति में बढ़ते अपराधिकरण को रोकने के लिये विशेष अदालतें गठित की जानी है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार यह अदालतें पहली मार्च तक गठित हो जानी थी। ऐसी अदालतों के गठन के बाद विधायकों/सांसदो/मन्त्रियों से जुडे़ आपराधिक मामलों की कार्यवाही एक वर्ष के भीतर पूरी किये जाने का प्रावधान किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ऐसे मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटाने के निर्देश पहले भी कई बार दे चुका है जिन पर ठीक से अमल नही हो पाया है। लेकिन इस बार इस संद्धर्भ में गंभीरता बदल गयी है क्योंकि प्रधानमन्त्री मोदी ने भी देश और संसद से यह वायदा किया है कि वह संसद और विधानसभाओं को अपराधियों से मुक्त करवायेंगे। यह तभी संभव है जब माननीयों से जुड़े आपराधिक मामलों के निपटारे एक समय सीमा के भीतर हो जायें।
प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में भी करीब एक दर्जन सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। कांग्रेस की आशा कुमारी को तो अदालत एक वर्ष कीे सजा़ तक सुना चुका है। इस मामले में आशा कुमारी की अपील अदालत में लंबित है। वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई अदालत में चालान दायर कर चुकी है। ईडी भी चालान दायर कर चुकी है। इसी तरह भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर और वीरेन्द्र कश्यप के मामले अदालत में पहुंच चुके हैं। भाजपा के ही किशन कपूर और राजीव बिन्दल के मामले भी अदालत में पहुंच चुके हैं। ऐसे में यदि विशेष अदालत गठित हो जाती है तो इन माननीयों के मामलों में फैसला आने में वक्त नही लगेगा और इससे प्रदेश की राजनीति के सारे गणित बदल जायेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने माननीयों के मामलों को निपटाने के लिये विशेष अदालत का गठन कर दिया है लेकिन हिमाचल में अभी तक ऐसा नही हो पाया है। इस संद्धर्भ में अभी तक सरकार और उच्च न्यायालय की ओर से कोई कदम नही उठाये गये हैं। उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार के मुताबिक प्रदेश उच्च न्यायालय में पिछले दिनों छुट्टियां होने के कारण इस दिशा में कारवाई नही हो पायी है। लेकिन उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक कुछ लोग विशेष अदालत का गठन किये जाने को टालनेे का प्रयास कर रहे हैं। यह लोग तर्क दे रहे हैं कि हिमाचल में ऐसे मामलों की संख्या कम होने के कारण अलग से ऐसी विशेष अदालत गठित किये जाने का कोई औचित्य नही बनता है लेकिन जिन भी माननीयों के खिलाफ मामले चल रहे हैं उन्हें एक वर्ष की तय समय सीमा के भीतर कैसे निपटाया जाये इस बारे में यह लोग एकदम चुप हैं। माना जा रहा है कि जयराम सरकार पर कुछ मामलों को वापिस लेने के लियेे जो दबाव बना हुआ है उसके चलते भी विशेष अदालत के गठन को लंबित किया जा रहा है। क्योंकि जब विशेष अदालत का गठन अधिसूचित हो जायेगा तब इन मामलों को वापिस लेना और भी कठिन हो जायेगा।