क्या सीबीआई की गिरफ्तारी भी अन्धेरे का ही तीर है

Created on Wednesday, 18 April 2018 06:16
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। पिछले साल चार जुलाई को घटे गुड़िया गैंगरेप और फिर हत्या तथा शिमला पुलिस द्वारा इस प्रकरण में पकड़े गये कथित आरोपियों में से एक की पुलिस कस्टडी में हत्या हो जाने का मामला जांच के लिये प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों पर सरकार ने 19 जुलाई को सीबीआई को सौंपा था और 23 जुलाई को सीबीआई ने इसे अपने हाथों में ले लिया था। मामला हाथ मे लेने के बाद सीबीआई ने सबसे पहले इस मामले की जांच कर रही प्रदेश पुलिस की एसआईटी को इसके मुखिया सहित आठ पुलिस कर्मीयों को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद शिमला के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को भी इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया। यह सभी लोग अब तक पुलिस की हिरासत में ही चल रहे है। एसआईटी के लोगों के खिलाफ चालान भी दायर हो चुका है लेकिन गिरफ्तार पुलिस अधीक्षक के खिलाफ अभी तक चालान दायर नही हो पाया है। इस प्रकरण में जिन लोगों को स्टेट पुलिस की एसआईटी ने गिरफ्तार किया था उनके खिलाफ चालान दायर न हो पाने के कारण अदालत ने उन्हे छोड़ दिया है।
जब सीबीआई ने इस प्रकरण में स्टेट एसआईटी के लोगों को गिरफ्तार करने के बाद उनके खिलाफ चालान भी दायर कर दिया। उसके बाद सीबीआई से मूल प्रकरण गुड़िया मामले को लेकर अदालत से सड़क तक सवाल पूछे जाने लगे। सीबीआई के खिलाफ भी प्रदर्शन हो गये। उच्च न्यायालय बराबर स्टेट्स रिपोर्ट तलब करता रहा। जब सीबीआई इसमें कोई परिणाम नही दिखा पायी तब अदालत ने इनके निदेशक को ही अदालत में तलब करने और मामले की जांच सीबीआई से लेकर एनआईए को देने का तंज भी कस दिया। इस तरह जब सीबीआई को उच्च न्यायालय से ऐसी लताड़ मिली उसके बाद इसमें यह पहली गिरफ्तारी हुई है।
सीबीआई ने अधिकारिक तौर पर यह गिरफ्तारी होने का दावा किया है। गिरफ्तार व्यक्ति को अदालत में भी पेश किया हैं लेकिन गिरफ्तार व्यक्ति का नाम क्या है वह कहां का रहने वाला हैं इस प्रकरण में उसकी संलिप्तता क्या और कितनी है इस बारे में कोई जानकारी मीडिया के माध्यम से जनता को नही दी है जबकि अदालत को तो दी ही गयी है क्योंकि यह कानूूनी बाध्यता है। यह कांड चार जुलाई को घटा था और 23 को सीबीआई ने अपने हाथ में भी ले लिया था। 4 जुलाई से 23 जुलाई तक इस मामले में छः लोग पकड़े गये थे जिनमें से एक की पुलिस कस्टडी में हत्या हो गयी थी। कोटखाई और ठियोग पुलिस थानों को आन्दोलनकारियों ने काफी नुकसान तक पहुंचाया था क्योंकि इस प्रकरण में सबसे पहले जिन लोगों के फोटो मुख्यमन्त्री के अधिकारिक फेसबुक पेज पर लोड़ होकर वायरल हो गये थे और फिर फेसबुक से हटा दिया गया था और एसआईटी द्वारा पकड़े गये लोगों में इनमें से कोई भी नही था तब एसआईटी पर यह आरोप लगा था कि वह असली गुनाहगारों को बचा रही है। यही आरोप जनता के आक्रोश का मुद्दा बना था। जिस पर न केवल हिमाचल में ही बल्कि प्रदेश से बाहर भी कई स्थानों पर प्रदर्शन हुए थे। विधानसभा चुनावों में भाजपा सहित पूरे विपक्ष ने इसे एक मुख्य मुद्दा बनाकर उछाला था। सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया गया था। सोशल मीडिया में सरकार से लेकर अदालत तक पर अपरोक्ष मे आरोप लगाये जाते रहे हैं।
इस पृष्ठभूमि में अब जब सीबीआई ने पहली गिरफ्तारी की है तो इससे पहले असली गुनाहगारों को बचाने के लग रहे आरोपों से तो क्लीनचिट मिल जाती है क्योंकि जिसे गिरफ्तार किया गया है वह स्थानीय क्षेत्र का निवासी नही है। बड़ा भंगाल साईट का चिरानी है जो कि चिरानी ठेकेदार केवलराम के पास काम कर रहा था। सीबीआई सूत्रों के मुताबिक जब कांड घटा था तब यह लोग उसी क्षेत्र में चिरान का काम कर रहे थे जिस रास्ते से गुज़र कर गुड़िया स्कूल जाती थीे। सीबीआई ने अपनी जांच में हर उस व्यक्ति पर अपना फोकस किया है जोे उस दौरान किसी न किसी कारण से उस क्षेत्रा में मौजूद रहा है। इस एरिया में पिछले कई वर्षों से चिरान का काम चल रहा है। बड़े ठेकेदार वन निगम से चिरान का ठेका लेकर आगे लेबर के ठेकेदार को काम दे देते हैं लेकिन इन ठेकेदारों के पास कितनी लेबर स्थायी थी और कितनी अस्थायी इसकी जानकारी अभी पूरी सामने नही आई है। सीबीआई ने सूत्रों के मुताबिक पकड़ा गया आदमी और उसका एक साथी मुम्बई तक जा पहुंचे थे। सीबीआई ने मुंबई तक छापेमारी की है। इस आदमी को भी मण्डी साईड से पकड़ा गया माना जा रहा है। पकड़े गये व्यक्ति के बारे में जो भी जानकारी सामने आयी है उससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि इसे बचाने के लिये पुलिस पर किसी का भी किसी तरह का दबाव नहीं रहा होगा।
लेकिन इस गिरफ्तारी से कई सवाल और उठ रहे है। सबसे पहला सवाल तो यह है कि जब यह लोग स्थानीय है ही नही तो फिर इन्होने रेप के बाद गुड़िया की हत्या क्यों की? यह लोग रेप के बाद भाग सकते थे इन्हे हत्या करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? दूसरा सवाल है कि जब गुड़िया की हत्या के बाद इस मामले में जनता का आक्रोश सड़को पर आ गया था तब भी यह लोग भागे नही और न ही किसी तरह का सन्देह इन लोगों पर हो पाया ऐसा कैसे संभव हो सकता है? क्योंकि मनोवैज्ञानिक तौर पर या तो अपराधी किसी ऐसी जगह पर चला जाता है जहां किसी की पकड़ मे न आये या फिर अपराध के स्थल और उसकी जांच को लेकर सक्रियता दिखाता है जैसा कि युग हत्याकांड में हुआ था। इस परिदृश्य में सीबीआई की इस गिरफ्तारी को लेकर भी यह शंका उठ रही है कि कहीं अब भी अदालत की लताड़ के कारण अन्धेरेे में ही तो तीर नहीं चलाया जा रहा है।