अवैध निर्माणों पर अदालत द्वारा चिन्हित जिम्मेदार कर्मीयों के खिलाफ अब तक कारवाई क्यों नही

Created on Sunday, 06 May 2018 10:14
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कसौली हत्या कांड का कड़ा संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल राज्य सरकार को लताड़ ही लगायी है बल्कि पूरे प्रदेश में हुए अवैध निर्माणों और उनके खिलाफ की गयी कारवाई की भी रिपोर्ट तलब की है। शीर्ष अदालत ने कुल्लु , मनाली , कसोल, धर्मशाला और मकलोड़गंज में हुए निर्माणों का विशेष रूप से जिक्र किया है। स्मरणीय है कि जब 2016 में सरकार ने टीपीसी एक्ट में संशोधन करके इसमें धारा 30बी को जोड़ा था तब इसे 2017 में तीन अलग-अलग याचिकाओं CWP 612 of 2017, CWP 704 of 2017 तथा CWP 819 of 2017 के माध्यम से प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इन याचिकांओं के माध्यम से उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाया गया था कि इस संशोधन के माध्यम से सरकार अवैध निर्माणों के 35000 दोषीयों को राहत पहुंचाना चाहती है। उस समय सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए यह कहा था कि ऐसे लोगों को नोटिस देकर यह कहा गया है कि वह इन अवैध निर्माणों को स्वयं गिरा दें। लेकिन इसी के साथ यह भी कहा था कि ऐसा करने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो जायेगी लेकिन अदालत ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए इस संशोधन को रद्द कर दिया था। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति त्रिलोक चौहान की खंडपीठ ने यह कहा कि In view of our aforesaid discussion, we hold that:

(i) Insertion of Section 30-B by the Amending Act is contrary to the object and purpose of the Principal Act, as also ultra vires the Constitution of India, as such we strike it down.

(ii) Judgment rendered in Consumer Action Group (supra) is clearly distinguishable, having no binding effect on the grounds of assailing the validity of the Amending Act.

(iii)&(iv) In view of specific finding in Shayra Bano (supra), holding the observations made in Binoy Viswam (supra) that arbitrariness cannot be a ground for invalidating a legislation, only to be in per incurium, as such, we hold the amendment to be violative of Article 14 of the Constitution, being manifestly arbitrary, irrational,illogical, capricious and unreasonable.
(v) Much, as we had desired, the amendment being totally ultra vires, cannot be saved by adopting the doctrine of severability. 

अदालत के इस फैसले के बाद अब जयराम सरकार ने भी उसी तरह संशोधन सदन से पारित करवा लिया है। जबकि अदालत ने इन अवैध निर्माणों के लिये दोषी अधिकारियों /कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने की अनुशंसा की है जब अदालत में यह मामला चल रहा था तब प्रशासन ने ऐसे अवैध निर्माणों की शिनाख्त करके अदालत को सूचित भी कर दिया था। इस सूचना के बाद ही अदालत ने इन अवैध निर्माणों के बिजली, पानी काटने के आदेश दिये थे। इन अवैध निर्माणों की सूची में कई प्रभावशाली लोग शामिल हैं। इन्ही लोगों के दबाव में जयराम सरकार को यह संशोधन लाना पड़ा है। लेकिन उच्च न्यायालय के साथ ही एनजीटीे और फिर सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन अवैधताओं के लिये जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ कारवाई करने के आदेश किये हैं। शीर्ष अदालत ने तो ऐसे करीब एक दर्जन लोगों को सीधे नाम से चिन्हित करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दिये हुए हैं। 

लेकिन इन लोगों के खिलाफ न तो पूर्व मुख्य सचिव वीसी फारखा ने कोई कारवाई की और न ही अब विनित चौधरी कोई कारवाई करे पा रहे हैं। इन चिन्हित लोगों में टीसीपी, पर्यटन और प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के लोग हैं। सूत्रों की माने तो अब जब कसौली में इन निर्माणों को गिराये जाने के लिये जिलाधीश सोलन के आदेशों पर चार टीमें गठित की जा रही थी उस समय भी इन्ही चिन्हित लोगों में से कुछ अवैध निर्माणों के मालिकोे को यह आश्वासन दे रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा। यह दावा किया जा रहा था कि सरकार कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी। कसौली कांड के बाद जिस तरह के ब्यान आये हैं उनसेे भी यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि कहीं न कहीं किसी बड़े का आश्वासन अवश्य था और इसी बड़े के कारण मुख्य सचिव कोई कारवाई भी नही कर पा रहे हैं।