शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद प्रदेश की जनता और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को यह भरोसा दिलाया कि जिन भी लोगों के खिलाफ राजनीतिक कारणों से आपराधिक मामले बनाये गये हैं उन्हें वापिस लिया जायेगा। ऐसे मामलों में एचपीसीए का विशेष रूप से उल्लेख किया गया था। एचपीसीए के मामलों के अतिरिक्त एक मामला विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिन्दल के खिलाफ भी लम्बे अरसे से चला हुआ है। इन मामलों को वापिस लेने की दिशा में बिन्दल के मामले में तो पीपी की ओर से विजिलैन्स को लिखित में यह आग्रह भी आ गया था कि इस मामले को वापिस ले लिया जाना चाहिये लेकिन जब यह आग्रह आया तो उसके बाद संयोगवश उस पीपी का ही तबादला हो गया। उसकी जगह नया पीपी आ गया और उसकी राय बदल गयी। उससे मामला वापिस नही लिया जाना चाहिये की सिफारिश कर दी।अब इस पर विजिलैन्स की ओर से कोई निर्णय नही लिया गया है और बिन्दल का मामला यथावत अदालत में चल रहा है।
एचपीसीए का मामला तो सर्वोच्च न्यायालय तक जा पंहुचा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत में चल रह ट्रायल को स्टे कर रखा है। इसमें एचपीसीए ने सर्वोच्च न्यायालय से यह आग्रह किया हुआ है कि इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द किया जाये। इस आग्रह का आधार यह बताया गया है कि यह मामला विशुद्ध रूप से राजनीति से प्रेरित है। स्मरणीय है कि सर्वोच्च न्यायालय में पहले एचपीसीए ने यही आग्रह प्रदेश उच्च न्यायालय से भी किया था। लेकिन उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को अस्वीकार कर दिया था। उच्च न्यायालय के अस्वीकार के बाद एचपीसीए अपील में सर्वोच्च न्यायालय गयी थी। यह सब वीरभद्र सरकार के दौरान हुआ था। अब प्रदेश में भाजपा की सरकार है और एचपीसीए के प्रमुख रहे अनुराग ठाकुर भाजपा के न केवल सांसद ही है बल्कि लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक भी हैं। ऐसे में जब अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के लिये आया तब एचपीसीए की ओर से पुनः यह दोहराया गया कि यह मामला राजनीति से प्रेरित रहा है और राज्य सरकार इसे वापिस लेना चाहती है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी संभवतः यह स्पष्ट कर दिया था कि जब सरकार इसे वापिस लेना चाहती है तो अदालत को इस पर कोई एतराज नही होगा। लेकिन सरकार की ओर से अब तक इस मामले को वापिस लेने की दिशा में कोई व्यवहारिक कदम नही उठाया गया है।
मामला वापिस लेने के लिये सरकारी वकील की ओर से सीआरपी सी की धारा 321 के तहत आग्रह का आवदेन आना चाहिये था फिर इस आवेदन को सरकार अनुमोदन करती तथा सरकार के इस अनुमोदन की अधिकारिक जानकारी सर्वोच्च न्यायालय में रखी जाती तथा इसके आधार पर एचपीसीए सर्वोच्च न्यायालय से मामला वापिस लेती। तब सर्वोच्च न्यायालय से मामला वापिस हो जाने के बाद पुनः ट्रायल कोर्ट में आता और फिर वहां पर 321 के आग्रह को रखा जाता। लेकिन व्यवहारिक तौर पर ऐसा कुछ नही हुआ है। एचपीसीए को सर्वोच्च न्यायालय में फिर से यही आग्रह करना पड़ा कि यह मामला राजनीतिक से प्रेरित रहा है तथा इसमें दर्ज हुई एफआरआई को रद्द किया जाये। अब सर्वोच्च न्यायालय में इस पर क्या घटता है इसका पता तो आने वाले समय में ही लगेगा। यदि इसमें दर्ज एफआईआर रद्द नही हो पाती तो फिर यह मामला ट्रायल कोर्ट में चलेगा।
सरकार ने जब यह कहा था कि राजनीति से प्रेरित मामलों को वापिस लिया जायेगा तब एचपीसीए के मामले में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत प्रारम्भिक कारवाई तो की जा सकती थी। लेकिन ऐसा हुआ नही है। बिन्दल के मामले में भी दो माह के समय में ही दोनों पीपीए की ओर से दो अलग-अलग राय आ गयी। इसके कारण बिन्दल के मामलों में भी जो होगा वह अदालत में ही होगा। सरकार की ओर से कोई योगदान नही रहेगा। यही स्थिति अन्ततःएचपीसीए में हो गयी है। विजिलैन्स और गृह विभाग का प्रभार स्वय मुख्यमन्त्री के पास है। इसका सीधा सा अर्थ है कि इन मामलों में जो भी स्टैण्ड विजिलैन्स की ओर से लिया जा रहा है वह पूरी तरह मुख्यमन्त्री की जानकारी में है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जयराम सरकार इन मामलां को राजनीति से प्रेरित नही मानती है और अदालत से ही इन पर फैसला चाहती है। लेकिन एचपीसीए में जिन अधिकारियों प्रासिक्यून सैन्कशन सरकार की ओर से अस्वीकार की गयी है उनके मामलों मे भी एक कानूनी पेच उलझता नज़र आ रहा है। क्योंकि अनुमति के मामले पर विचार होने से पहले ही अदालत ने मामले का संज्ञान लेकर इसे ट्रायल योग्य मान लिया था। फिर उच्च न्यायालय ने भी जब एफआईआर रद्द करने के आग्रह को अस्वीकार कर दिया था तब उस पर बड़ा विस्तृत फैसला आया था। अब यदि किसी कारण से यह मामला ट्रायल कोर्ट में आ ही जाता है तो इस पर उच्च न्यायालय के फैसले का प्रभाव अवश्य रहेगा। उस समय ट्रायल कोर्ट को भी 321 के तहत आये आग्रह को स्वीकार कर पाना बहुत आसान नही होगा। इस परिदृश्य में इन मामलों का राजनीतिक प्रतिफल बहुत महत्वपूर्ण होता नज़र आ रहा है जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव सत्तापक्ष पर ही पड़ेगा।