शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वित्त वर्ष 2019-20 के लिये वर्ष के पहले ही सप्ताह में 700 करोड़ का ऋण लेने जा रही है। सरकार को वर्ष के शुरू में ही कर्ज लेने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है यह सवाल राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि इसी बीच में अदानी पावर लिमिटेड की एक याचिका प्रदेश उच्च न्यायालय ने के सामने आयी है। CWP No. 405 of 2019 पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने सरकार से यह पूछा है कि सरकार बताये की जंगी थोपन पवारी परियोजना को सरकार कैसे आवंटित कर रही है ताकि इस आवंटन के बाद अदानी का 280 करोड़ रूपया वापिस लौटाया जा सके जिसका पहले से ही वायदा कर रखा है। अदानी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मादी का बहुत ही विश्वस्त उद्योग घराना है यह सब जानते हैं। इसलिये अदानी को 280 करोड़ वापिस न करने का स्टैण्ड जब वीरभद्र सरकार ही नही ले पायी थी तो जयराम सरकार ऐसा कैसे कर सकती है यह एक सामान्य समझ की बात है। बल्कि वीरभद्र शासन में ही इसके लिये पूरी ज़मीन तैयार कर दी गयी थी कि अदानी को यह पैसा उच्च न्यायालय के माध्मय से वापिस लेना आसान हो जाये। आज उसी पृष्ठभूमि का सहारा लेकर अदानी उच्च न्यायालय पहुंच गया है। माना जा रहा है कि यह पैसा वापिस करने के लिये ही कर्ज का जुगाड़ किया जा रहा है।
इस परिदृश्य में जंगी थोपन पवारी परियोजना के प्रकरण पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। स्मरणीय है कि हिमाचल सरकार ने वर्ष 2006 में छः हजार करोड़ के निवेश वाली जंगी-थोपन-पवारी हाईडल परियोजना के लिये निविदायें आमन्त्रित की थी। निविदायें आने के बाद यह परियोजना हालैण्ड की कंपनी ब्रेकल कारपोरेशन को आंवटित कर दी गयी। आंवटन के बाद नियमों के अनुसार कंपनी को 280 करोड़ का अपफ्रन्ट प्रिमियम सरकार में जमा करवाना था। लेकिन यह कंपनी यह पैसा समय पर जमा नहीं करवा पायी और सरकार से किसी न किसी बहाने समय मांगती रही। जब ब्रेकल यह प्रिमियम अदा नहीं कर पायी तब इसी आंवटन की प्रक्रिया में दूसरे स्थान पर रही रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने इस मामलें को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। यह चुनौती दिये जाने के बाद सरकार में भी ब्रेकल के दस्तावेजों की जांच पड़ताल शुरू हो गयी और अपराधिक मामला दर्ज करने की नौबत आ गयी। ब्रेकल को सरकार ने यह आवंटन रद्द करने का नोटिस दे दिया। नोटिस मिलने के बाद ब्रेकल ने अदानी से 280 करोड़ लेकर सरकार में प्रिमियम जमा करवा दिया और सरकार ने इसे ले भी लिया। इससे रिलांयस की याचिका निरस्त हो गयी। सरकार ब्रेकल को नोटिस दे चुकी थी विजिलैन्स ने आपराधिक मामला दर्ज किये जाने की संस्तुती सरकार को भेज रखी थी। इस पर सरकार ने पूरा मामला सचिव कमेटी को फिर से जांच के लिये भेज दिया। सचिव कमेटी ने ब्रेकल को तलब किया और ब्रेकल के साथ ही अदानी के अधिकारी भी कमेटी में पेश हो गये जबकि उनके आने का कोई कानूनीे आधार नही था। लेकिन सचिव कमेटी ने उनकीे उपस्थिति पर कोई एतराज नही जताया और यह परियोजना फिर ब्रेकल को ही देने का फैसला कर दिया।
रिलांयस ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौतीे दे दी। रिलांयस के साथ ही ब्रेकल भी अपना पक्ष लेकर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच गया। इन्ही के साथ ही अदानी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में यह पक्ष रख दिया कि 280 करोड़ निवेश उसने किया है इस पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी हो गया। इस नोटिस पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायलय में अपना जवाब दायर करते हुए अदालत के सामने यह रखा कि इस परियोजना में हुई देरी से सरकार को 2775 करोड़ का नुकसान हुआ है। इसकेे लिये ब्रेकल को इस नुकसान की भरपायी करने तथा अपफ्रन्ट प्रिमियम के नाम पर आये उसके 280 करोड़ जब्त करने का नोटिस जारी कर दिया गया है। सरकार का यह स्टैण्ड अदालत में आने के बाद ब्रेकल ने अपनी याचिका वापिस ले ली। ब्रेकल के याचिका वापिस लेने के साथ ही अदानी की याचिका भी निरस्त हो गयी। लेकिन यह होने के बावजूद आज तक सरकार ने 2775 करोड़ वसूलने के लिये कोई कदम नही उठाये हैं यहां तक कि प्रिमियम के आये 280 करोड़ भी अब तक जब्त नही किये गये हंै।
बल्कि इसमें सबसे दिलचस्प तो यह घटा कि ब्रेकल और अदानी के सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आते ही रिलांयस और सरकार में कुछ घटा तथा यह परियोजना फिर से रिलांयस को देने का फैसला कर दिया गया। रिलांयस को इस आश्य का पत्र भी चला गया। रिलांयस ने इस पत्र को स्वीकार करवाने में सहयोग करने का आग्रह कर दिया। रिलांयस को यह सब हासिल करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस लेनी थी। इसका सरकार के साथ मिलकर सयंुक्त आग्रह अदालत में जाना था। इसके लिये सरकार पहले तैयार हो गयी लेकिन बाद में मुकर गयी। दूसरी ओर जब अदानी सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आया तो उसने अपने 280 करोड़ वापिस किये जाने के लिये सरकार को पत्र लिखा। इस पत्र का असर यह हुआ कि जब रिलायंस को यह प्रौजेक्ट देने का फैसला लिया गया तब यह मान लिया गया कि रिलांयस से प्रिमियम आने के बाद अदानी के 280 करोड़ वापिस कर दिये जायेंगे। अब रिलांयस भी पीछे हटने के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने निदेशक एनर्जी को पत्र लिखकर यह राय मांगी है कि क्या इस परियोजना को फिर से ब्रेकल को दिया जा सकता है या इसकी फिर से बोली लगायी जाये या राज्य सरकार/केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम को दे दिया जाये। अब यह परियोजना एसजेवीएनएल को दे दी गयी है।
एसजेवीएनएल एक सरकारी उपक्रम है और उसमें अपफ्रंट प्रिमियम देने का कोई प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में इस उपक्रम से अपफ्रन्ट प्रीमियम लेकर अदानी को यह पैसा वापिस करना संभव नही है लेकिन वीरभद्र सरकार में यह पैसा वापिस करने का फैसला मन्त्रीमण्डल ने 2015 में ही ले लिया था। इसी बैठक में यह परियोजना रिलाॅंयंस को देने का भी फैसला लिया गया था और यह कहा गया था कि रिलांयस से पैसा आने पर अदानी को वापिस दे दिया जायेगा। लेकिन रिलांयस ने 2016 में यह परियोजना लेने से ही इन्कार कर दिया। परन्तु इसके बावजूद वीरभद्र सरकार ने 26 अक्तूबर 2017 को अदानी पावर का पत्र लिखकर यह सूचित कर दिया कि 4 सितम्बर 2015 को अपफ्रन्ट प्रिमियम मनी लौटाने का जो फैसला लिया गया था उसे लागू करने का फैसला लिया गया है। सरकार की ओर से यह सूचना अदानी को तत्कालीन विशेष सचिव ऊर्जा अजय शर्मा की ओर से दी गयी थी। अदानी ने 27 अक्तूबर 2017 का सरकार का पत्र लिखकर इस फैसल के लिये आभार जताया था। इसमें अदानी ने यह भी कहा था कि इस वापसी को रिलांयस के साथ लिंक करने का कोई औचित्य नही बनता है। इस तरह सरकार ने जब यह मान लिया कि अदानी को यह पैसा वापिस दिया जाना बनता है तो उसी को आधार बनाकर अब अदानी ने उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है। इसमें 26 अप्रैल को अगली सुनवायी होनी है। माना जा रहा है कि सरकार अगली पेशी से पहले यह पैसा देने का प्रबन्ध कर रही है। जयराम इस विषय पर मूक दर्शक बने हुए हैं क्योंकि जिन अधिकारियों ने वीरभद्र सरकार में यह फैसला लेने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी वही लोग आज भी इसकी पेरवी कर रहे हैं। इन लोगों के लिये इससे कोई फर्क नही पड़ता है कि इस मामले में अब तक प्रदेश को करीब तीन हजार करोड़ का नुकसान पहुंच चुका है।