शिमला/शैल। राज्यसभा सांसद और पूर्व केन्द्रिय मन्त्री आनन्द शर्मा न केवल प्रदेश के ही बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। राज्यसभा में वह पार्टी के उपनेता भी हैं। हिमाचल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर उनके विशेष विश्वस्त माने जाते हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि राठौर को बनवाने में उनका ही सबसे बड़ा हाथ रहा है। अपनी वरिष्ठता के नाते ही वह लोकसभा चुनावों में वह प्रदेश में पार्टी के स्टार प्रचारक थे। स्टार प्रचारक के साथ-साथ मीडिया को लेकर भी उनके पास बड़ी जिम्मेदारी थी। लेकिन यह सब होते हुए भी वह पार्टी को प्रदेश में कोई सफलता नही दिला पाये हैं। अब जब पार्टी को हार का समाना करना पड़ा है तब प्रदेश के सारे वरिष्ठ नेताओं की अब तक की प्रदेश के प्रति कारगुजारी और कार्यशैली पार्टी के कार्यकर्ताओं में चर्चा का विषय बनी हुई है। स्मरणीय है कि आनन्द शर्मा केन्द्र में वरिष्ठ मन्त्री रहे हैं लेकिन इस मन्त्री होने से प्रदेश को एक स्थायी पासपोर्ट कार्यालय के अतिरिक्त वह और कुछ बड़ा प्रदेश को नही दे पाये हैं।
राज्यसभा सांसद के नाते सांसद निधि के संद्धर्भ में पूरा प्रदेश उनका अधिकार क्षेत्र हो जाता है। वह प्रदेश के किसी भी कोने में सांसद निधि से पैसा दे सकते हैं। सांसद निधि किस तरह के कार्यों पर खर्च की जा सकती है इसके लिये वाकायदा नियम बने हुए हैं। किसी प्राकृतिक आपदा में राज्य सभा सांसद प्रदेश से बाहर भी पैसा दे सकता है लेकिन सामान्य स्थितियों में नही। आनन्द शर्मा ने 2017 में अपनी सांसद निधि में से नवीं मुबंई के एक न्यरोजन ब्रेन एण्ड स्पाईन इन्स्टिच्यूट को 23,56,653 रूपये दिये हैं। जबकि इसी दौरान जिला शिमला में 30 कार्यों के लिये 38,70,000/- रूपये आबंटित किये हैं लेकिन इस आंबटन में से मार्च 2019 तक 11,90,000/- रूपये राशी अभी भी जारी नही हुई है। स्वभाविक है कि जब प्रदेश के कार्यों के लिये अब तक पूरी राशी जारी न हो सकी हो तो यह चर्चा का विषय बनेगी ही क्योंकि मुबंई के इस संस्थान के लिये सारी राशी एकमुश्त जारी हो गयी है। इसी के साथ यह भी चर्चा है कि शायद मुबंई का यह संस्थान सरकार का न होकर रिलायंस का है। जबकि नियमों के मुताबिक किसी प्राईवेट संस्थान को इस निधि से आबंटन नही किया जा सकता। फिर इस प्राईवेट संस्थान ने इस पैसे से लिफ्ट का निर्माण किया है। यह पैसा जिलाधीश शिमला के कार्यालय के माध्यम से गया है ऐसे में यह जिलाधीश की भी जिम्मेदारी हो जाती है कि वह पैसा रिलीज करने से पहले यह सुनिश्चित करे की संस्थान सरकारी है या प्राईवेट। जिलाधीश शिमला के कार्यालय में इसको लेकर कोई जानकरी ही उपलब्ध नही है। स्वभाविक है कि जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की कारगुजारी इस तरह की रहेगी तो उसका जनता और कार्यकर्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा।