शिमला/शैल। प्रदेश के दो सांसद रामस्वरूप शर्मा और किश्न कपूर तालाबन्दी के दौरान दिल्ली से जोगिन्दरनगर और धर्मशाला अपने घर - चुनाव क्षेत्र में पहुंच गये हैं। लाहौल-स्पिति के कुछ किसान जो कुल्लु-मनाली में फसें हूए थे उन्हे लाहौल पहुंचाने के लिये बस का प्रबन्ध किया गया। अब इसी तर्ज पर पांगी से भी ऐसी ही मांग आ गयी है। सांसदों के आने को लेकर हंगामा खड़ा हो गया है। इन लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज किये जाने की मांग उठ गयी है। डी जी पी को इस आशय की शिकायतें दी गई है। क्योंकि आम आदमी के खिलाफ तालाबन्दी की उल्लंघना करने पर आपराधिक मामले दर्ज किये जा रहे है। इस गणित से इन सांसदों के खिलाफ भी आपराधिक मामले दर्ज करने की मांग को खारिज नही किया जा सकता। फिर जब भाजपा प्रवक्ता और मिडिया सह प्रबन्धकों ने कांग्रेस के आरोपों का यह कहकर जबाव दिया है कि यह लोग शाहीनबाग में बिरयानी खाने या जे एन यू में भारत विरोधी नारे लगाने नही गये थे उससे स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। क्योंकि जब तालाबन्दी में जो जहां है वह वहीं रहे के निर्देश प्रधानमंत्री ने दिये थें तब इनका आना उन निर्देशों का स्वतः ही उल्लंघना हो जाता है।
लेकिन यहां सवाल न इस उल्लंघना का है और न ही इनके खिलाफ कोई मामला दर्ज करने का है। क्योंकि यह जिम्मेदार लोग हैं और जनप्रतिनिधि हैं। इस समय इनका अपनी जनता के पास होना आवश्यक है। न ही यह लोग इस बिमारी के कोई संक्रमित मामले है। न ही इन लोगों ने किसी जांच या अन्य प्रक्रिया से गुजरने का विरोध किया है। दिल्ली से यह लोग वाकायदा पास लेकर निकले होंगे और इसीलिये इनको रास्ते में किसी ने रोका नही। कहीं यह आशंका नही उभरी की यह लोग अपने घर या क्षेत्र में किसी को संक्रमित करने के कारण बनेगें। इसलिये इन लोगों के खिलाफ तालाबन्दी की उल्लंघना करने पर कोई मामला दर्ज किये जाने की मांग को जायज नही ठहराया जा सकता है।
इस मामले का जो सही मे गंभीर पक्ष बनता है उस पर न तो किसी शिकायतकर्ता का ध्यान गया है न ही कांग्रेस ने बतौर विपक्ष उसे उठाया है। इस समय पूरे देश में करोड़ों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को जाना चाहते है। तालाबन्दी की उल्लंघना को लेकर हजारों लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज हो चुके हैं। क्योंकि किसी को भी बिना अनुमति के अपने स्थान से बाहर जाने की आज्ञा नही हैं। हिमाचल में भी लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर हैं। यह लोग इस समय पूरी तरह बेकार और बेरोजगार होकर बैठे हैं। यह सब अपने घरों को वापिस जाना चाहते हैं। फिर यह लोग इन्ही सांसदों की तरह कोई संक्रमित भी नही है जिससे इनसे दूसरों में संक्रमण फैलने का खतरा हो। ऐसे में क्या महज़ एक आशंका के आधार पर इन लोगों को अपने घर जाने से रोकना तर्कसंगत होगा। जब सांसद संक्रमित नही हैं और उससे आगे संक्रमण का कोई खतरा नही है तो उसी तर्ज पर इन मजदूरों से ऐसा खतरा कैसे हो सकता है। आज इन सांसदों को आगे आकर इन मजदूरों को अपने घर पहुंचाने के प्रबन्ध करने होंगे। अन्यथा यह आरोप लगना स्वभाविक है कि समर्थ लोगों के लिये नियम कानून की व्याख्या अलग है और गरीब के लिये अलग। क्योंकि जब सांसदों के लिये पास बन सकते हैं तो इन मजदूरों के लिये क्यों नही।