अर्नब गोस्वामी प्रकरण प्रैस की आजादी या मर्यादा हीनता

Created on Monday, 27 April 2020 15:24
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। रिपल्बिक टीवी चैनल के प्रबन्ध निदेशक एवम् संपादक अर्नब रंजन गोवस्वामी के खिलाफ उनके द्वारा 21 अप्रैल को पालघर प्रकरण पर आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी पर की गयी टिप्पणीयों को लेकर शिमला सहित देश के कई भागों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा आई पी सी की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मामले दर्ज करवाये गये हैं। शिमला के थाना सदर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री द्वारा यह मामला दर्ज करवाया गया है। जब भी किसी राजनीतिक दल के किसी बड़े नेता द्वारा किसी अन्य दल के नेता द्वारा कोई प्रतिकूल टिप्पणीयां की जाती हैं तब ऐसे नेता के खिलाफ प्रभावित दल के छोटे बडे़ नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा ऐसे मामले दर्ज करवाने की एक राजनीतिक संस्कृति देश में बन चुकी है। राहूल गांधी की प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आयी टिप्पणीयों पर भी इसी तरह की कारवाई हो चुकी है। और भी कई नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है। पत्रकारों के खिलाफ भी नेताओं द्वारा आपराधिक मानहानि के मामले दर्ज होते आये हैं। लेकिन इस समय अर्नब गोस्वामी का प्रकरण जिस तरह से घटा है उसने कई नये सवालों को जन्म दिया है। उससे यह मामला अपने में एक अलग गंभीरता का हो जाता है।

पूरे देश में 24 मार्च से पूर्णबन्दी चल रही है। सारी आर्थिक गतिविधियां बन्द पड़ी हैं। कोरोना से पूरा देश आतंकित चल रहा है। इस स्थिति का संकेत कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने फरवरी के शुरू में ही दे दिया था। लेकिन शायद राजनीतिक कारणों से उसे नजरअन्दाज कर दिया गया था। इस समय देश महामारी के साथ ही आर्थिक संकट में फंस गया है। सरकार ने आरबीआई से कर्ज लेने की सीमा अभी दो लाख करोड़ तक बढ़ा दी है जो मनमोहन सिंह के वक्त तक 75 हजार करोड़ थी। इस सीमा बढ़ौत्तरी के अतिरिक्त भी केन्द्र सरकार आरबीआई से लाखों करोड़ ले चुकी है। लेकिन इस सबके वाबजूद संासदो/मन्त्रीयों के वेत्तनभत्तों में कटौती करने के अतिरिक्त दो वर्ष के लिये सांसद निधि बन्द करने के बाद अब केन्द्रिय कर्मचारियों और पैन्शनरों के मंहगाई भत्ते की अदायगी भी रोक दी गयी है। कुल मिलाकर हालात यह बन गये हैं कि यदि कहीं आर्थिक मुद्दों पर बहस छिड़ जाती है तो इसका आकार महामारी से कंही बड़ा हो जायेगा। राजनीतिक विश्लेष्कों का मानना है कि इस समय सरकार इस बहस से बचना चाहती है और इसमें मीडिया का एक बड़ा वर्ग ‘‘गोदी मीडिया’’ होने के आरोप सहते हुए सरकार को सहयोग कर रहा है। अर्णब गोस्वामी ने जिस तरह से अपने कार्यक्रम में सोनिया गांधी को संद्धर्भित किया है वह किसी भी तरह से उस कार्यक्रम में प्रसंगिक नही बनता है। अर्नब एक वरिष्ठ पत्रकार हैं लेकिन इस पूरे प्रकरण से यह संकेत और संदेश जाता है कि वह सोच समझ कर एक नयी बहस का मुद्दा तैयार कर रहे हैं।

महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार में भागीदार हैं वहां दो साधुओं की भीड़, द्वारा हत्या कर दी जाती है। पुलिस भीड़ को रोक नही पाती है। सरकार इस घटना का कड़ा संज्ञान लेकर कारवाई करती है। उसी दिन आरोपियों की गिरफ्तारी भी हो जाती है। फिर भी सरकार को इसके लिये कोसा जा सकता है कि पुलिस बल वहां पर और ज्यादा क्यों नही था। सरकार के तीनों भीगीदारों से यह सवाल पूछा जा सकता था लेकिन कार्यक्रम में सोनिया गांधी पर यह आरोप लगाना कि यदि किसी मौलवी या पादरी की हत्या हुई होती तो ईटालियन श्रीमति गांधी और उनकी पार्टी के लोग पहाड़ खड़ा कर देते। क्या इस तरह की भाषा का प्रयोग करते हुए ‘‘मौलवी, पादरी और ईटालियन ’’ का जिक्र करना किसी भी तरह से जायज़ ठहराया जा सकता है। फिर जब कोरोना को लेकर जिस तरह से तबलीगीयों को निशाना बनाया गया है उस सबको सामने रखते हुए क्या मीडिया की बहस में इस तरह से विषय उठाना जायज़ बनता है? शायद कोई भी समझदार व्यक्ति इसमें अर्नब का समर्थन नही कर सकता है। इस संद्धर्भ में कांग्रेस का आहत होना और आपराधिक मामले दर्ज करवाने को प्रैस की आजादी पर हमला नही कहा जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने भी शायद ऐसे ही परिदृश्य में यह कहा है कि प्रैस निरंकुश नही है। लेकिन इसी के साथ अर्नब और उसकी पत्नी पर हुए हमले को भी जायज़ नही ठहराया जा सकता और उसकी भी जांच होनी चाहिये।
लेकिन इस प्रकरण का एक महत्वपूर्ण प्रसंग सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई अर्नब की याचिका बन जाती है। अर्नब ने अपने खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर के खिलाफ वीरवार रात को याचिका दायर की और इस पर शुक्रवार सुबह सुनवाई भी हो गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इन एफआईआर के परिणामरूप होने वाली कारवाई पर दो सप्ताह के लिये रोक लगा दी है। क्योंकि एफआईआर की कुछ धाराएं गैर ज़मानती है। अर्नब का पक्ष सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने रखा है। जबकि महाराष्ट्र सरकार की ओर से कपिल सिब्बल, राजस्थान के लिये डा. सिंघवी पेश हुए हैं। लेकिन अर्नब की याचिका को प्राथमिकता दिये जाने पर रोष प्रकट करते हुए वकील कसंल ने सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को एक पत्र लिखकर शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री पर पक्षपात करने का आरोप लगाया हैं।