क्या मज़दूर क्रान्ति का मंच तैयार हो रहा है श्रम कानूनों में संशोधन से उभरे संकेत

Created on Monday, 18 May 2020 14:52
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल।  हिमाचल प्रदेश के मज़दूर संगठनों इंटक, एटक और एटक ने एक संयुक्त मंच बनाकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में पिछले दिनों श्रम कानूनों में हुए संशोधनों और कई जगह मज़दूरों को वेतन भुगतान न हो पाने के लिये कड़ा रोष व्यक्त किया गया है। यदि सरकार इन संशोधनों को वापिस नही लेती है तो मज़दूर वर्ग राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े आन्दोलन के लिये भी तैयार हो रहा है। स्मरणीय है कि कोरोना के कारण सारे देश में लागू की गयी तालाबन्दी के कारण सबसे ज्यादा मज़दूर वर्ग ही प्रभावित हुआ है। आज जिस तरह से यह मज़दूर सैंकड़ों मील की पैदल यात्रा करके अपने घरों को वापिस आ रहे हैं उससे देया की जो तस्वीर सामने आ रही है वह बहुत ही भयावह है। इनके वापिस आने से जो सवाल खड़े हुए हैं उनमें सबसे पहले यही आता है कि आज जिस देश में बुलेट ट्रेन, और सैन्ट्रल बिस्टा जैसे लाखों/हजारों करोड़ के कार्यक्रम देश की प्रगति के नाम खड़े की जा रहे हो, जिस देश के प्रधानमन्त्री की विदेश यात्राओं पर देश 66 अरब खर्च कर सकता हो क्या उस देश में आज भी करोड़ों लोग सैंकडों मील पैदल चलने को विवश हैं। देश का कोई भी बड़ा महानगर कोई भी प्रदेश ऐसा नही है जिसके यहां से मज़दूरों ने पलायन न किया हो। कोई भी सरकार ऐसी नही है जिसने पहले ही दिन अपने स्तर पर अपने खर्च के साथ इन मज़दूरों को उनके घर/गांव तक छोड़ने का प्रबन्ध किया हो। यही नही इससे भी बड़ी त्रासदी तो यह सामने आयी कि इसी दौरान सारी सरकारों ने श्रम कानूनों में संशोधन कर डाले। आठ घन्टे की बजाय बारह घन्टे काम लेने का प्रावधान कर दिया।
तालाबन्दी में करोड़ो लोगों ने अपना रोज़गार खोया है। इसको लेकर अज़ीम प्रेमजी विश्व विद्यालय ने एक अध्ययन किया है। इसके मुताबिक कुल 67% लोगों ने रोज़गार खोया है जिसमें शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 80% हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में 57% लोग रोज़गार से बाहर हुए है। 5% वेतन भोगियों को या तो कम वेतन मिला है या मिला ही नही है। 49% परिवारों के पास एक सप्ताह का आवश्यक सामान खरीदने के लिये भी उनके पास पर्याप्त पैसे नही है यह सर्वे आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िसा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में किया गया है। इससे स्थिति का पता चलता है कि ज़मीनी हकीकत क्या है। ऐसे में चुपचाप श्रम कानूनों में बदलाव कर देना और इस बदलाव को जायज़ ठहराने के लिये उद्योगों की परिभाषा को बदल देना नीयत और नीति को लेकर बहुत कुछ ब्यान कर देता है। प्रधानमन्त्री ने जो राहत पैकेज घोषित किया है उसमें इस मज़दूर का कहीं कोई जिक्र नही है। जबकि इस समय इसे तत्काल यह आवश्यकता है कि वह किसी भी तरह अपने घर अपनों के बीच पहुंच जाये। यह पैदल इसलिये निकल पड़ा है क्योंकि इसे कोई रेलगाड़ी या बस नही मिली है। ऊपर से इसके पास जाने के लिये कोई पैसा भी नहीं है। इसे तत्काल नकदी की आवश्यकता थी। परन्तु इसे नकदी की बजाये पांच किलो अनाज और एक किलो चना देने की बात की गयी है। यह राहत देने वाले यह नही सोच पाये हैं कि रास्ते में चलते हुए यह मज़दूर इस गेंहू/चना को पकाने का कैसे प्रबन्ध कर पायेगा। मनरेगा में तो काम तब कर पायेगा जब वह काम तक पहुंचेगा। आज की आवश्यकता तो उसे घर पहुंचाने में सहायता करने की है जो नही की गयी है।
इस मजदूर की मज़बूरी को ब्यान करते हुए जो जनहित याचिकायें शीर्ष अदालत में पहुंची हैं उन पर सर्वोच्च न्यायालय ने भी सुनवायी नही की है। ऐसे में जहां यह जिनके लिये काम करता था उन्होने इसे सहारा नही दिया। सरकार के लिये भी यह प्राथमिकता में नही आया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसकी सुनने से इन्कार कर दिया है। इस परिदृश्य में श्रम कानूनों में संशोधन किया जाना स्पष्ट संदेश देता है कि कल इसे बारह घन्टे काम करने के लिये तैयार रहना होगा। इसके बच्चों को भी बाल मज़दूरी के लिये बाध्य होना होगा। ऐसे में यदि इसने इस आसन शोषण को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया तो क्या होगा। इसका आकलन कोई भी आसानी से लगा सकता है।





मज़दूर संगठनों का मुख्यमंत्री को पत्र

 

माननीय  मुख्यमंत्री, 

हिमाचल प्रदेश सरकार,

शिमला।
 
विषय : श्रम कानूनों में संशोधन व वेतन भुगतान के संदर्भ में।
 
महोदय
       
          कोरोना महामारी के कारण प्रदेश की तमाम जनता एक तरफ महामारी के गम्भीर खतरे से त्रस्त है वहीं दूसरी ओर इस महामारी से उत्पन्न आर्थिक व सामाजिक संकट ने जनता का सुख चैन छीन लिया है। लोग आर्थिक व सामाजिक रूप से भारी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। इस से सबसे बुरी तरह से मजदूर वर्ग प्रभावित व पीड़ित हुआ है। इसके फलस्वरूप लागू हुए लॉक डाउन व कर्फ्यू से भारी संख्या में मजदूरों की छंटनी हो गयी है। उद्योगों में कार्यरत मजदूरों के बड़े हिस्से को मार्च-अप्रैल 2020 के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। असंगठित क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले श्रमिक वर्ग का बहुत बड़ा हिस्सा इस महामारी से आर्थिक तौर पर बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मजदूर वर्ग पर आई इस विपदा के दौर में उसे आर्थिक-सामाजिक मदद की दरकार थी। उसे प्रदेश सरकार की सहानुभूति की ज़रूरत थी ताकि वह इस संकट काल से बाहर निकल कर अपना गुज़र बसर कर पाता। परन्तु अफसोस कि उसे सहानुभूति व आर्थिक मदद के बजाए और विपदाओं में धकेला जा रहा है। हिमाचल प्रदेश व केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन व परिवर्तन की प्रक्रिया इसी कड़ी का एक हिस्सा है। प्रदेश सरकार ने देश की मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों से इन श्रम कानूनों के संशोधन के संदर्भ में बात तक करना जरूरी नहीं समझा। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह सब कुछ पूंजीपतियों,कारखानेदारों व उद्योगपतियों के मुनाफों को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। पूंजीपतियों के मुनाफे को बढ़ाने के लिए मजदूरों द्वारा पिछले सौ वर्षों में हासिल किए गए अधिकारों को छीना जा रहा है।
          महदोय,ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच हि.प्र.,इंटक,एटक व सीटू आपके संज्ञान,सकारात्मक,सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श,पहलकदमी व ठोस कार्रवाई के लिए निम्न बिंदु सुझाव सहित प्रेषित कर रहे हैं। आशा है कि आप इस पर अमल करके मजदूर वर्ग के अधिकारों की रक्षा करेंगे व उन्हें न्याय प्रदान करेंगे।
 
1. फैक्टरी एक्ट,कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट,इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट में बदलाव व 8 घण्टे की डयूटी को 12 घण्टे करने का निर्णय मजदूरों के अधिकारों पर कठोर प्रहार है। प्रदेश सरकार ने 21 अप्रैल 2020 को अधिसूचना जारी करके कारखाना अधिनियम(फैक्ट्रीज एक्ट)1948 की धारा 51,धारा 54,धारा 55 व धारा 56 में बदलाव करके साप्ताहिक व दैनिक काम के घण्टों,विश्राम की अवधि व स्प्रैड आवर्ज़ में बदलाव कर दिया है। काम के घण्टों की अवधि को आठ से बढ़ाकर बारह घण्टे कर दिया है। इस से न केवल मजदूरों की छंटनी होगी अपितु कार्यरत मजदूरों की बंधुआ मजदूरों जैसी स्थिति हो जाएगी। इसलिए इस निर्णय को वापिस लिया जाए।
 
2. सरकार ने 13 मई 2020 को हुई कैबिनेट की बैठक में संविदा श्रमिक अधिनियम(कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट) 1970 की धारा 1(4)में संशोधन कर दिया है। इस तरह कॉन्ट्रैक्ट लेबर एक्ट में श्रम क़ानूनों को लागू करने के लिए किसी भी स्थापना में बीस ठेका मजदूरों की शर्त को बढ़ाकर तीस कर दिया है। इस तरह ठेका कर्मियों की भारी संख्या को श्रम कानून के दायरे से बाहर कर दिया है।
3. इसी केबिनेट बैठक में कारखाना अधिनियम(फैक्ट्रीज़ एक्ट) 1948 की धारा 2(m)(i),2(m)(ii),65(3)(iv)व 85(1)(i) में मजदूर विरोधी परिवर्तन किये गए हैं तथा कारखाना की परिभाषा को पूरी तरह बदल कर रख दिया गया है। इसके अनुसार ऊर्जा संचालित कारखाना की सीमा को दस से बढ़ाकर बीस मजदूर व बगैर ऊर्जा के संचालित कारखाना की सीमा को बीस से बढ़ाकर चालीस मजदूर करके मज़दूरों की भारी संख्या को कारखाना अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया है। इसी अधिनियम की धारा 65(3) में संशोधन करके ओवरटाइम कार्य के घण्टों को 75 से बढ़ाकर 115 कर दिया गया है। इस अधिनियम में धारा 106(b) जोड़ कर उद्योगपतियों को कानून की अवहेलना पर दी जाने वाली सज़ा व कठोर कार्रवाई में बिना शर्त छूट दी गयी है। ये निर्णय मजदूर विरोधी हैं। कारखाना अधिनियम में बदलाव व श्रम कानूनों के निलंबन से मजदूर एम्प्लॉईज़ कंपनसेशन एक्ट 1923,वेतन भुगतान अधिनियम 1936,इंडस्ट्रियल एम्प्लॉयमेंट(स्टैंडिंग ऑर्डरज़) एक्ट 1946,फैक्ट्रीज एक्ट 1948,न्यूनतम वेतन कानून 1948,ईएसआई एक्ट 1948,ईपीएफ एक्ट 1952,मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट 1961,बोनस एक्ट 1965,इकुअल रयुमनरेशन एक्ट 1976,इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन एक्ट 1979 आदि चौदह तरह के श्रम कानूनों के दायरे से मजदूर बाहर हो जाएंगे।
 
4. प्रदेश सरकार ने कैबिनेट बैठक में औद्योगिक विवाद अधिनियम(इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट) 1947 की धारा 22(1),25(F)(b) व 25(K) में बदलाव के लिए उचित कदम उठाने की सिफारिश की बात की है। यह पूर्णतः मजदूर विरोधी है। सरकार के इन कदमों ने मजदूरों पर कई प्रकार के हमलों का दरवाजा खोल दिया है। धारा 22(1) में बदलाव से मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार पर कटौती होगी। धारा 25(F)(b) में बदलाव से छंटनी व छंटनी भत्ता की पक्रिया पूरी तरह उद्योगपतियों के पक्ष में हो जाएगी। धारा 25(K) में बदलाव से छंटनी,ले ऑफ व तालाबंदी के विशेष प्रावधानों के लिए मजदूरों की संख्या को एक सौ से बढ़ाकर तीन सौ करने की सिफारिश की गई है जिस से प्रदेश के दो-तिहाई उद्योगों के हज़ारों मजदूरों को भारी नुकसान होगा।
 
5. केंद्र सरकार ने ईपीएफ हिस्सेदारी को 12 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत करने की घोषणा की है। यह कदम मजदूर विरोधी है व लंबे समय के लिए उद्योगतियों को फायदा पहुंचाने वाला है।
 
6. प्रदेश के सैंकड़ों उद्योगों के हज़ारों मजदूरों को मार्च-अप्रैल 2020 के वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। वेतन भुगतान अधिनियम 1936 के अनुसार मजदूरों को वेतन का भुगतान तुरन्त करवाया जाए। इसकी अवहेलना करने वाले नियोक्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाए।
 
               आशा है कि आप सभी मजदूर विरोधी संशोधनों को अविलम्ब रद्द करेंगे। हम आपसे इस संदर्भ में उचित सकारात्मक पहलकदमी की उम्मीद करते हैं।
 
धन्यवाद।
 
दिनांक : 16 मई,2020
 
डॉ कश्मीर ठाकुर,संयोजक,ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच,हि.प्र.
 
बाबा हरदीप सिंह,प्रदेशाध्यक्ष इंटक,हि.प्र.
 
जगदीश चन्द्र भारद्वाज,प्रदेशाध्यक्ष एटक,हि.प्र.
 
विजेंद्र मेहरा,प्रदेशाध्यक्ष सीटू,हि.प्र.
 
बी.एस.चौहान,सेक्रेटरी जनरल,इंटक,हि.प्र.
 
देवक़ीनन्द चौहान,प्रदेश महासचिव,एटक,हि.प्र.
 
प्रेम गौतम,प्रदेश महासचिव,सीटू,हि.प्र.