शिमला/शैल। शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिल गयी है। सुरेश कश्यप का मनोनयन राजीव बिन्दल के त्यागपत्र के करीब दो माह बाद हो पाया है। भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष के लिये मनोनयन में इतना समय लगना अपने में ही स्पष्ट कर देता है कि संगठन के अन्दर की हकीकत क्या है। क्योंकि कश्यप से पहले अध्यक्ष के लिये राज्य सभा सांसद इन्दु गोस्वामी का नाम इस हद तक चर्चा में आ गया था कि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विजय वर्गीय तक ने उन्हे बधाई दे दी थी। विजय वर्गीय पार्टी के केन्द्रिय मुख्यालय में राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के निकट सहयोगी हैं। इसलिये उनके बधाई देने को आसानी से नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। यह सब जिक्र करना इसलिये महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि प्रदेश के वरिष्ठतम भाजपा नेता पूर्व मुख्यमन्त्री एवम् केन्द्रिय मन्त्री शान्ता कुमार की वर्तमान राजनीति पर यह टिप्पणी आयी है ‘‘ कि देश की सियासत में चटुकारिता सबसे बड़ी योग्यता बन गयी है।’’ संयोग से यह टिप्पणी इस मनोनयन के बाद आयी है इसलिये इसे आसानी से संद्धर्भ हीन कहकर नज़रअन्दाज़ नही किया जा सकता। क्योंकि इसके पहले राजस्थान के संद्धर्भ में भी वह यह सवाल पूछ चुके हंै कि भाजपा को सरकारें गिराने की आवश्यकता क्या है जबकि उसे विपक्ष से कोई खतरा नही है। शान्ता कुमार का यही सवाल इस समय राष्ट्रीय सवाल बन चुका है। प्रदेश अध्यक्ष के लिये बिन्दल के समय भी कई नाम चर्चा में चल रहे थे और अब भी थे। बिन्दल जब अध्यक्ष बनाये गये थे उस समय स्वास्थ्य मन्त्री परमार को विधानसभा का स्पीकर बनाया गया था। परमार को स्पीकर बनाने का फैसला केन्द्र ने स्वास्थ्य मन्त्रालय को लेकर उठ रहे विवादों के परिदृश्य में लिया था। लेकिन परमार के हटने के बाद भी यह विवाद शान्त नही हुए और बिन्दल के भी हटने का कारण बन गये। अभी तक इन विवादों को विराम नही लगा है। मण्डी के संासद रामस्वरूप शर्मा के पत्र ने एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। क्योंकि जयराम सरकार कैग रिपोर्ट की स्पष्ट टिप्पणीयों के बाद भी इस दिशा में कोई कारवाई नहीं कर पायी है। अब तो इन विवादों में कांगड़ा के एक मन्त्री की संपति खरीद भी जुडने लग पड़ी है। मन्त्री ने अपनी एक पंचायत प्रधान और उसी के परिवार की जिस तरह से स्वास्थ्य योजनाओं तथा सीएम रिलिफ फण्ड से मद्द करवाई है वह क्षेत्र में चर्चा का विषय बन हुआ है। इसी तरह शिमला के निकट एक बड़े परिवार द्वारा 25 बीघे ज़मीन खरीद का मामला भी चर्चा में आ गया है। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने की संभावनाएं बनती जा रही हैं। इसके अतिरिक्त अभी मन्त्रीमण्डल विस्तार होना है। पार्टी के कई बड़े नेता अभी ताजपोशीयों से वंचित है। जिन ज़िलों को मन्त्रीमण्डल में इस समय स्थान नही मिला हुआ है उनमें अध्यक्ष का अपना ज़िला सिरमौर भी शामिल है। ऐसे में मन्त्रीमण्डल विस्तार में सिरमौर को स्थान मिल पाता है या उसे वहां से पार्टी अध्यक्ष बना दिये जाने के तर्क से छोड़ दिया जाता है यह सुरेश कश्यप के लिये राजनीतिक टैस्ट सिद्ध होगा। इस तरह की विरासत संभाल रहे कश्यप के लिये संगठन और सरकार में तालमेल बिठाये रखना एक चुनौती से कम नही होगा। कश्यप के मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध हैं। इन्ही संबंधों के चलते कश्यप को यह जिम्मेदारी मिली है अन्यथा दलित वर्ग में से और भी कई नेता है जो कश्यप से बहुत वरिष्ठ हैं। वोट की राजनीति के गणित से यह सही है कि कश्यप का दलित और पूर्व वायुसेना अधिकारी होना दलितों और पूर्व सैनिकों के लिये एक बड़ा सम्मान है। लेकिन उसी गणित में इन्दु गोस्वामी का बनना इस तरह से रोका जाना पूरे महिला समाज के लिये अपमान का कारक भी हो जाता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कश्यप कैसे इन चुनौतियों से निपटते हैं।