अनुराग ठाकुर और अरूण धूमल के ज़मीन खरीद मामले में अदालत ने लौटाई विजिलैन्स की कैन्सेलेशन रिपोर्ट

Created on Tuesday, 11 August 2020 09:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। केन्द्रिय वित्त राज्य मन्त्री अनुराग ठाकुर और उनके छोटे भाई अरूण धूमल ने धर्मशाला के कजलोट में एक प्रेमु सुपुत्र सीतू से जनवरी 2008 में एक ज़मीन खरीदी थी। इस खरीद पर वीरभद्र शासन में विजिलैन्स में शिकायत हो गयी। आरोप लगा कि सीतू को यह ज़मीन भूमिहीन होने के नाते नौतोड़ के रूप में मिली थी। नियम था कि ऐसे मिली जमीनों को बीस वर्ष तक बेचा नही जा सकता था और इसमें बीस वर्ष नही हुए थे। इन आरोपों पर विजिलैन्स ने मामला दर्ज कर लिया। मामला दर्ज होने के बाद हुई जांच में यह भी जुड़ गया कि 5 मार्च 1988 को सरकार ने इसमें यह भी संशोधन कर दिया था कि ऐसी जमीनों को अलाटी की पत्नी के जीवन काल तक नही बेचा जा सकेगा। यह संशोधन सारे जिलाधीशों, उपमण्डलाधिकारियों, तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों तक को भेजा गया और स्टैण्डिग आर्डर में भी दर्ज रहा है। इसी के साथ इस खरीद में यह भी एक मुद्दा बन गया कि इस जमीन को बेचने से सीतू पुनः भूमिहीन हो गया। जब कोई व्यक्ति भूराजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत जमीन खरीद की अनुमति सरकार से मांगता है तब संबंधित प्रशासन अनुमति में यह दर्ज करता है कि यह जमीन बेचने के बाद बेचने वाला भूमिहीन नहीं हो जायेगा। यदि जमीन बेचने वाला बेचने के बाद भूमिहीन हो रहा हो तो उसे इसकी अुनमति नही दी जाती है।  
इस मामले में विजिलैन्स ने जो एफआईआर दर्ज कर रखी है उसमें यह सब दर्ज है। जांच के दौरान संबंधित राजस्व अधिकारियों और कार्यालय में इस मामलें से जुड़ी फाईल के गायब होने का भी जिक्र है। अब इन सारे तथ्यों के साथ विजिलैन्स ने इस मामले की कैन्सेलेशन रिपोर्ट अदालत में डाल दी। अदालत ने रिपोर्ट देखने के बाद जब विजिलैन्स से यह पूछा कि अलाटमैन्ट के बाद बीस वर्ष से पहले ही इस जमीन को किस नियम के तहत बेचा गया तो जांच ऐजैन्सी इसका कोई सन्तोषजनक उत्तर  नही दे पायी। इसमें यह कहा गया कि जब इसकी अलाटमैन्ट हुई थी तब रिकार्ड में पन्द्रह वर्षों तक इसे ने बेचना दर्ज है। लेकिन फाईल गायब होने की अपनी ही रिपोर्ट के कारण अदालत ने विजिलैन्स के आग्रह को अस्वीकार कर दिया। अब यह मामला पुनः से अपने स्थान पर  यथास्थिति खड़ा रह गया है। राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में इस पर कई तरह की चर्चाएं चल निकली हैं। माना जा रहा है कि विजिलैन्स ने इसमें कोई ज्यादा मेहनत नही की है। बल्कि इस मामले में सीतू के पुत्र प्रेमू का जांच के दौरान यह ब्यान भी नुकसानदेह  साबित हुआ है कि सीतू अनपढ़ था और उसे शराब पीने की लत थी। उसे होटलों में ले जाकर शराब पिलायी जाती थी और तब उससे इस पर दस्तख्त करवा लिये गये हैं। इसमें हमीरपुर के किसी परमार द्वारा विचौलीये की भूमिका निभाने का भी जिक्र है। इस परिदृश्य में एक बार फिर इस मामले पर सबकी निगाहें लग गयी हैं। क्योंकि विजिलैन्स ने अदालत के इस आदेश को आगे कोई चुनौती नही दी है। चुनौती न देने से यही स्पष्ट होता है कि विजिलैन्स की नज़र में अदालत का एतराज जायज़ है।