कोरोना पर चर्चा में विपक्ष और सत्तापक्ष की जीत में जनता की फिर हार

Created on Tuesday, 15 September 2020 10:59
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। विधानसभा का मानसून सत्र सात तारीख से शुरू हुआ और पहले ही दिन इसमें स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से चर्चा हुई। छः घन्टे पच्चीस मिनट चली इस चर्चा में सदन के 28 सदस्यों ने भाग लिया। यह चर्चा नियम 67 के तहत हुई और क्यांेकि इस सदन के इतिहास में स्थगन प्रस्ताव पर पहली बार चर्चा हुई इसलिये विपक्ष ने इसे अपनी बड़ी सफलता करार दिया है। नियम 67 के तहत विपक्ष इसके विषय का नोटिस एक घन्टा पहले तक भी दे सकता है यह इसमें प्रावधान है क्योंकि इस नियम के तहत लाये गये विषय पर शेष सारे विषयों को रोककर  चर्चा की जाती है। इसमें यह धारणा रहती है कि जो विषय चर्चा के लिये लाया जाये उस पर सरकार पूरी तरह असफल हो चुकी है। इसी धारणा के कारण इसे काम रोको प्रस्ताव भी कहा जाता है। कोई भी सरकार किसी भी विषय पर अपने खिलाफ फेल होने का तमगा नही लेना चाहती है इसलिये सामान्यतः ऐसे प्रस्ताव का सत्तापक्ष पूरी ताकत से विरोध करता है और अध्यक्ष ऐसे प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। विपक्ष प्रस्ताव लाया और सत्तापक्ष इस पर चर्चा के लिये तैयार हो गया। सत्तापक्ष की सहमति से यह संदेश गया कि जहां विपक्ष कोरोना को प्रमुख मुद्दा मान रहा था तो सत्ता पक्ष भी उसे उतना ही गंभीर मानते हुए इस पर हर समय चर्चा के लिये तैयार था। इस तरह विपक्ष और सत्तापक्ष दोनो इसे अपने-अपने गणित से अपनी-अपनी सफलता करार दे रहे हैं।
इस परिदृश्य में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि जिस जनता के नाम पर यह चर्चा दो दिन चली उसे चर्चा के बाद क्या हासिल हुआ। कोरोना को लेकर 24 मार्च को पूरे देश में लाकडाऊन कर दिया गया था। लोगों को घरों से बाहर निकलने पर पाबन्दी लगा दी गयी थी उस समय देशभर में कोरोना के केवल 500 मामले थे। हिमाचल में एक भी नही था। 24 मार्च को विधानसभा बजट सत्र चल रहा था जिसे लाकडाऊन के कारण तय समय से पहले ही समाप्त कर दिया गया था। अब जब मानसून सत्र में इस पर चर्चा हो रही है तब हिमाचल प्रदेश में इसके मामले दस हजार का आंकडा़ छूने वाले हैं। स्वास्थ्य मन्त्री और मुख्यमन्त्री ने माना है कि यह सामुदायिक प्रसार का शुरूआती स्टेज़ है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले समय में इसके आंकड़े और बढ़ेंगे। इस वस्तुस्थिति में प्रदेश का आम आदमी क्या करे इसको लेकर सदन की चर्चा में कुछ भी ठोस निकल कर सामने नही आया है। इस दौरान जो एसओपी जारी किये गये हैं वह कितने व्यवहारिक और अन्तः विरोधी हैं इस पर कोई चर्चा नही हो सकी है।
अब शैक्षणिक और धार्मिक स्थल खोले जा रहे हैं। स्कूलों में छात्रों के आने के लिये अभिभावकों की सहमति होना अनिवार्य है। जब कोरोना के मामले हर रोज़ बढ़ रहे हैं तब क्या ऐसी स्थिति में अभिभावक भय के वातावरण से बाहर आ पायेंगे? बच्चों को स्कूल भेजने का साहस कर पायेंगे? आम आदमी को इस भय की मानसिकता से कैसे बाहर लाया जाये इस पर कोई चर्चा नही हुई। धार्मिक स्थलों में 65 वर्षों से ऊपर के व्यक्ति को जाने की मनाही है। क्या दफ्तर जाने वाला और कारोबारी मन्दिर जाने का समय निकाल पाता है चर्च जैसे धार्मिक स्थलों में सामुहिक प्रार्थना का चलन हैं क्या वह जारी हुए एसओपी के मुताबिक इन स्थलों को खोल पायेंगे। ऐसे दर्जनो विरोधाभास है जिन पर चर्चा आवश्यक थी लेकिन ऐया नहीं हो पाया। क्या यह आम आदमी की हार नही है। कोरोना  पर केन्द्र से लेकर राज्यों तक का हर आकलन गलत साबित हुआ है और इसी के कारण से अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है। जीडीपी शून्य से नीचे चली गयी है। केन्द्र ने राज्य को जीएसटी का हिस्सा देने में असमर्थता जाहिर कर दी है। केन्द्रिय योजनाओं के वित्त पोषण से केन्द्र पीछे हट रहा है। प्रदेश के लाखों लोगों का रोज़गार प्रभावित हुआ है। मनरेगा मे जो 120 दिन का रोज़गार मिलता था वह भी 90 दिन कर दिया गया है। हर आदमी की आय प्रभावित हुई है। लेकिन सरकार ने इस गंभीरता को नजरअन्दाज करते हुए आम आदमी पर मंहगाई का बोझ डाल दिया है संकट के इस काल में राशन के दाम बढ़ गये। चीनी, नमक, दालें सबके दाम बढ़ गये हैं। बीपीएल और एपीएल में राशन की सब्सिडी के लिये भेद कर दिया और कई वर्गों को इससे बाहर कर दिया गया है। बिजली के दाम और बसों का किराया इस संकटकाल में बढ़ा दिया गया। जब मुख्यमन्त्री जनता में यह कह रहे हैं कि उनके पास 12000 करोड़ अनस्पैंट पड़ा हुआ है तो फिर संकट के इस दौर में यह सारे खर्च क्यों बढ़ा दिये गये? सरकार अपने खर्चे कम करने की बजाये कब तक प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ाती जायेगी। जब यह सरकार कोरोना में कुप्रबन्धन के आरोपों से इन्कार कर रही है तब क्या उसे यह सारे बढ़े हुए दाम वापिस लेने की घोषणा सदन के पटल पर नही करनी चाहिये थी। लेकिन ऐसा हुआ नही है। अब यह देखना बाकि है कि विपक्ष सदन के बाहर इन मुद्दों को जनता तक कैसे और कब ले जाता है। यदि ऐसा नही हो पाता तो निश्चित रूप से विपक्ष और पक्ष के इस खेल में जनता लगातार हारती रहेगी। यही नहीं जब कोरोना के लिये भारत सरकार से 17,46,99,727 रूपये के वैंटिलेटरज़ निशुल्क उपलब्ध करवाये गये हैं और इस पर प्रदेश सरकार का कुछ भी खर्च नही हुआ है तब प्रदेश की जनता पर बोझ डालने का क्या औचित्य है।