शिमला/शैल। हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों से ही प्रदेश मेे विकल्प बनने के प्रयास शुरू कर दिये थे। उस समय प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। लेकिन उसके बाद आये विधानसभा चुनाव, पंचायत चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों तक कदम रखने का साहस नहीं किया। 2014 से लेकर आज 2020 के अन्त तक शायद चौथी बार अपने संयोजक बदल चुकी है। जो लोग 2014 में पार्टी के साथ जुड़े थे उनमें से शायद ही अब एक प्रतिशत भी इसमें रहे होंगे। आम आदमी पार्टी को लेकर यह चर्चा इसलिये आवश्यक है क्योंकि आप की दिल्ली में तीसरी बार सरकार बन गयी है। पड़ोसी राज्य पंजाब में भी उसकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है और वह राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस और भाजपा का विकल्प बनने की ईच्छा रखती है। इसी ईच्छा के प्रचार प्रभाव से अन्य प्रदेशों में भी लगता है कि वहां पर आप अपना आधार स्थापित कर सकती है। लेकिन व्यवहारिक पक्ष यह है कि दिल्ली में सरकार में बराबर बने रहने के बाद पंजाब को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य में अपनी प्रभावी ईकाईयां तक स्थापित नहीं कर पायी हैं। ऐसा क्यों है जब तक आप का नेतृत्व इस सवाल पर ईमानदारी से चिन्तन नहीं कर लेता है तब तक उसके प्रयास सफल नहीं होंगे।
इस सवाल पर चिन्तन करते हुए सबसे पहले यह तथ्य सामने आता है कि 2014 में मोदी का प्रधानमन्त्री बनना और राष्ट्रीय राजधानी में आपका सरकार बनाना अन्ना आन्दोलन के प्रतिफल हैं। क्योंकि उस समय आन्दोलन के मंच पर प्रभावी रूप से दिखने वाला सारा प्रमुख नेतृत्व आम आदमी पार्टी के वर्तमान नेता ही थे। उस समय के कुछ नेता भाजपा में भी चले गये हैं। अन्ना आन्दोलन का सारा प्रभावी नेतृत्व आज या तो आप में हैं या भाजपा में। लेकिन कांग्रेस या अन्य किसी दल में शायद कोई भी नहीं है। अन्ना आन्दोलन संघ का सुनियोजित प्रायोजित कार्यक्रम था यह प्रमाणित हो चुका है। भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को उस आन्दोलन में प्रमुखता से उठाया था उनमें से एक भी मुद्दा मोदी के छः वर्ष के शासन में प्रमाणित नहीं हो पाया है। 1,76,000 करोड़ के टूजी स्कैम पर तो मोदी सरकार अदालत में यह कह चुकी है कि यह स्कैम घटा ही नहीं है। इसमें आकलन में गलती हो गयी थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि उस आन्दोलन के निहित उद्देश्य क्या थे। आज जिस संकट में देश चल रहा है उसके बीज अन्ना आन्दोलन में बोये गये थे जिनकी फसल आज काटनी पड़ रही है।
इस परिदृश्य में यह समझना और भी आवश्यक हो जाता है कि आप किसका विकल्प बनना चाहती है भाजपा या कांग्रेस का। केन्द्र शासित राज्य दिल्ली में आप की सरकार का बने रहना भाजपा को लाभ देता है क्योंकि वहां पर कांग्रेस का विरोध करने के लिये आप से ज्यादा कारगर हथियार और कोई नहीं हो सकता है। यही स्थिति पंजाब में है क्योंकि वहां अकाली भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। हिमाचल में भी भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर होती है। इसलिये आप जब तक यह तय नहीं कर लेती है कि उसे कांग्रेस को हराना है या भाजपा को तब तक उसका प्रदेश में आकार ले पाना संभव नहीं होगा। यही स्थिति प्रदेश में बने अन्य दलों की भी है। आप को लेकर यह सवाल और भी ज्यादा प्रसांगिक इसलिये हो जाता है कि जहां आप प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने विवादित कृषि कानूनों की प्रतियां दिल्ली विधानसभा के पटल पर फाड़ी वहीं पर दूसरा सच यह भी है कि केजरीवाल सरकार ने ही इन कानूनों को अपने राज्य दिल्ली में अधिसूचित भी कर रखा है। यह सवाल अब आप नेतृत्व से पूछा भी जाने लगा है। क्योंकि इससे या तो उसकी वैचारिक अस्पष्टता झलकती है या फिर वह ऐसे समय में भी दोहरे चरित्र को लेकर चल रही है।
हिमाचल में 2014 से अब तक सभी चुनाव कांग्रेस हारती आयी है यह एक कड़वा सच है। इस हार के कारणों पर ईमानदारी से कोई चिन्तन नहीं हो पाया है। आज भी कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ एक स्वर से हमलावर नहीं हो पा रही है। बल्कि कुछ बड़े नेताओं के खिलाफ तो यह चर्चित होने लग पड़ा है कि वह जयराम के सबसे बड़े सलाहकार बने हुए हैं पार्टी का सारा शीर्ष नेतृत्व एक जुट नहीं है। ऐसे में कांग्रेस भाजपा से कितना मुकाबला कर पायेगी यह अभी स्पष्ट नहीं है। इस परिदृश्य में जब आप भी कांग्रेस को पहला प्रतिद्वन्दी मानकर उस पर हमलावर होगी तो इससे भाजपा को और ताकत मिल जायेगी। इसलिये प्रदेश के नये संयोजक को यह स्पष्ट करना होगा कि उसका पहला प्रतिद्वन्दी कौन है कांग्रेस या भाजपा।