महिला सुरक्षा के लिये स्थापित कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सैन्टर प्राईवेट हाथों में क्यों

Created on Thursday, 11 February 2021 08:03
Written by Shail Samachar

निर्भया फण्ड के तहत मिले 9.36 करोड़ प्राईवेट कंपनीयों के हवाले
सार्वजनिक वाहनों मे जीपीएस लगाने का काम प्राईवेट कंपनीयों को क्यों
प्राईवेट कंपनीयों के पास पहुंचे डाटा की सुरक्षा पर उठे सवाल
शिमला/शैल। हिमाचल सरकार समाज कल्याण कार्यक्रमों के प्रति कितनी गंभीर है इसका अनुमान विधानसभा पटल पर रखे गये आर्थिक सर्वेक्षण में दर्ज ब्योरे से मिल जाता है। इस ब्यौरे के अनुसार सरकार सामाजिक न्याय एवम् अधिकारिता विभाग समाज कल्याण के कार्यक्रमों का संचालन करता है। इसमें अल्प संख्यक वित्त एवम् विकास निगम, हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त एवम् विकास निगम तथा हिमाचल प्रदेश अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जन जाति विकास निगम भी सरकार को सहयोग कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त सक्षम गुड़िया बोर्ड भी गठित है। इसी के साथ विभाग महिलाओं, बच्चों और एससी/एसटी के कल्याण के लिये 30 योजनाओं को भी कार्यान्वित कर रहा है। तीन निगमों और 30 योजनाओं के लिये 12.52 करोड़ का प्रावधान 2019-20 में रखा गया था।
जब दिल्ली में निर्भया कांड घटा था तब पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन कर सामने आया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका कड़ा संज्ञान लिया था। सारे सरकारी और गैर सरकारी कार्यस्थलों में महिलाओं की सुरक्षा और उनकी शिकायतों का संज्ञान लेने के लिये प्रकोष्ठ गठित करने के निर्देश दिये गये थे। इन्ही निर्देशों के परिणामस्वरूप केन्द्र में निर्भया फंड की स्थापना की गयी थी। इसके तहत राज्यों में कमाण्ड और कन्ट्रोल सैन्टर स्थापित किये जाने थे। इसके लिये सारे वाहनों मे जीपीएस सिस्टम लगाये जाने का प्रावधान किया जाना था। क्योंकि अधिकांश महिला अपराध वाहनों में घटे हैं। जीपीएस संयन्त्र लगाने की जिम्मेदारी परिवहन विभाग द्वारा बीएसएनएल या एनआईसी के सहयोग से पूरी की जानी थी। कमाण्ड और कन्ट्रोल प्रकोष्ठ राज्य सरकार के गृह विभाग के तहत होने थे क्योंकि उसी के पास पुलिस का नियन्त्रण होता है।
हिमाचल सरकार को केन्द्र द्वारा निर्भया फण्ड के 9.36 करोड़ दिये गये थे। इनसे राज्य में इस आशय का कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सैन्टर स्थापित किया जाना था। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस सिस्टम लगाये जाने थे। राज्य में करीब चार लाख सार्वजनिक वाहन हैं। इतने वाहनों में यह सिस्टम लगाना व्यापारिक दृष्टि से एक बड़ा काम है। यह बड़ा काम अपने ही लोगों को मिले इसके लिये प्रदेश सरकार ने महिला सुरक्षा के तहत स्थापित किये जाने वाले कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सैन्टर की स्थापना का काम ही चार प्राईवेट कंपनीयों के हाथों में सौंप दिया है। यह कंपनीयां सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस लगाने का काम करेंगे। इन वाहनों का डाटा इनके पास आ जायेगा। कल यदि इन वाहनों में कहीं किसी महिला के साथ कोई अपराध घट जाता है तो क्या इन कंपनीयों की व्यवस्था पर भरोसा किया जा सकता है।
अब तक करीब 30 हजार सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस स्थापित किये जा चुके हैं और अन्य वाहनों में लगाये जाने हैं। लेेकिन यहां पर यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब यह वाहन डाटा प्राईवेट हाथों में चला जायेगा तब यह किस तरह कितना सुरक्षित रह पायेगा इसको लेकर सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं कर रखी है। इसलिये यहां यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि एक ओर तो सरकार गुड़िया कांड के बाद गुड़िया बोर्ड का गठन कर रही है। लेकिन जिस निर्भया फण्ड के तहत महिला सुरक्षा के लिये ठोस कदम उठाये जाने हैं क्या उसे प्राईवेट हाथों में सौंपना एक सही फैसला हो सकता है? इसमें रोचक यह भी है कि महिला सुरक्षा के लिये बनाये जाने वाले कमाण्ड एण्ड कन्ट्रोल सैन्टर पर आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ नहीं कहा गया है जबकि इसके लिये 9.36 करोड़ निर्भया फण्ड में मिले है।