सेब क्षेत्रों में ही 65500 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर स्थापित
प्राईवेट सैक्टर में 28 और सरकारी क्षेत्र में केवल 6 स्टोर
सरकारी स्टोरों की क्षमता केवल 2980 टन
शिमला/शैल। इस समय पूरे देश में किसान आन्दोलन सबसे प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। बल्कि इस आन्दोलन की गंभीरता का परिणाम माना जा रहा है कुछ राज्यों में उपचुनाव का टाला जाना। संयोगवश इसी आन्दोलन के दौरान हिमाचल में सेब सीज़न आ गया है। हिमाचल में सेब की आर्थिकी पांच हज़ार करोड़ के करीब है। प्रदेश में सेब के व्यापार में कोल्ड स्टोर मालिकों का सबसे बड़ा दखल हो चुका है। इसमें भी अदानी का एग्रो फ्रैश सबसे बड़ा प्लेयर है क्योंकि अदानी के प्रदेश में तीन कोल्ड स्टोर हैं। अन्य लोगों के एक -एक है। यह सभी कोल्ड स्टोर केन्द्र में 2014 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद ही प्रदेश में बने हैं। जब इन लोगों ने यह स्टोर स्थापित करने के लिये सरकार में आवेदन किये और सरकार ने इन्हें अनुमतियां प्रदान की तब यह शर्त रखी गयी थी कि कि यह लोग अपने स्टोरों में 20% स्थान यहां के बागवानों के लिये सुरक्षित और उपलब्ध रखेंगे। स्वभाविक है कि पांचों स्टोरों में इस क्षेत्र में पैदा हाने वाले फल और सब्जियां ही रखी जानी थी। यह रखने के लिये स्थानीय स्तर पर खरीद किया जाना भी स्वभाविक था। सीज़न शुरू होने पर खरीद करके स्टोरों में भण्डारण करना और सीज़न खत्म होने के बाद इस भण्डारण को बाज़ार में बिक्री के लिये ले जाना स्वभाविक प्रक्रिया के अंग है।
अब नये कृषि कानूनों में आवश्यक वस्तुओं के भण्डारण और उनके बिक्री मूल्य पर नियन्त्रण हटा लिया गया है। इसी के साथ उत्पादक और व्यापारी की परिभाषाओं में भी बदलाव किया गया है। व्यापार स्थलों की परिभाषा में भी बदलाव किया गया है। अब ए.पी.एम.सी परिसरों के बाहर भी खरीद बेच की जा सकती है और इस पर किसी तरह की कोई फीस नहीं दी जानी है। इस बार इन कोल्ड स्टोरों के मालिकों ने सेब की खरीद के समय उसके भाव गिरा दिये। पिछले साल के मुकाबले रेट में सोलह रूपये की कमी कर दी गयी। इस कमी से हर बागवान प्रभावित हुआ। पिछले वर्ष जो सेब अदानी ने 80रू किलो खरीदा और सीज़न के बाद दो सौ रू बेचा था उसमें इस बार इतनी कमी हो जाने से सेब उत्पादकां का परेशान होना स्वभाविक था। इस परेशानी का परिणाम हुआ बागवानों का आन्दोलित होना। इस आन्दोलन को राकेश टिकैट के आने से और ताकत मिल गयी। लेकिन जब सेब की कीमतों में गिरावट के लिये बागवान लदानी-अदानी के खिलाफ नारे लगा रहे थे तब उसी समय बागवानी मन्त्री बागवानों को खुले में क्रेटों में सेब बेचने की सलाह दे रहे थे। मुख्यमन्त्री तुड़ान रोकने की राय दे रहे थे। भाजपा प्रभारी अविनाश राय खन्ना और मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा इस संकट के लिये अदानी को दोष देने की बजाये उसका एक तरह से पक्ष ले रहे थे।
आज प्रदेश में प्राईवेट सैक्टर में 28 कोल्ड स्टोर उपलब्ध हैं। यदि सरकार इन कोल्ड स्टारों में बागवानों के लिये 20% स्थान सुरक्षित और उपलब्ध रखने की शर्त की अनुपालना ईमानदारी से करवा दे तो बहुत हद तक बागवनों की समस्या हल हो जाती है। इस समय जिला शिमला में ही प्राईवेट सैक्टर के 48482 मीट्रिक टन क्षमता के दस स्टोर कार्यरत है। कुल्लु और सोलन में 17018 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर प्राईवेट सैक्टर में है। इनके अतिरिक्त ऊना में 13717.5 टन क्षमता के स्टोर उपलब्ध है। जबकि सरकारी क्षेत्रा में 2980 टन क्षमता के केवल छः स्टोर हैं और इनमें भी विश्व बैंक की योजना के सहायोग से अधिकांश में अपग्रेडेशन का काम चला हुआ है। इस समय प्रदेश के सेब उत्पादक क्षेत्रों में 65500 मीट्रिक टन क्षमता के स्टोर स्थापित हो चुके हैं। आने वाले समय में इन स्टोरों के मालिकों का पूरी बागवानी पर अपरोक्ष में कब्जा हो जायेगा यह तय है क्योंकि नये कृषि उपज कानूनों में भण्डारण और कीमतों पर सरकार का कोई नियन्त्रण नहीं है।
ऐसे में यह सवाल अहम हो जाता है कि क्या आने वाले समय में बागवानों का भविष्य सुरक्षित रह पायेगा? क्योंकि तब बाजार को तो यह स्टोर रैगुलेट करेंगे। कीमतों का बढ़ना और कम होना सब इन पर निर्भर हो जायेगा। आज ही विदेशों से आ रहे डयूटी फ्री सेब के कारण स्थानीय उत्पादक अपने को असहाय महसूस करने लग गया है जबकि अभी कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे चल रहा है। आन्दोलनरत किसान इन कानूनों की वापसी की मांग कर रहा है। यदि किन्ही कारणों से यह आन्दोलन असफल हो जाता है तब उत्पादक और उपभोक्ता दोनों की स्थिति क्या हो जायेगी। इन सवालों पर विचार करने की आवश्यकता और इस दिशा में आवश्यक कदम उठाना भी समय की मांग हो जाता है।
यह हैं प्रदेश में स्थापित कोल्ड स्टोर