भ्रष्टाचार उजागर करने पर मंत्री पद खो चुके शांता भी आये चुनाव प्रचार में

Created on Monday, 25 October 2021 06:11
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। दो बार मुख्यमंत्री रह चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार इस समय प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। इसी वरिष्ठता के आधार पर वह भाजपा के मार्गदर्शकां मे से एक हैं और इन उपचुनावों में वह पार्टी के स्टार प्रचारक भी है। स्टार प्रचारक होने के नाते वह भाजपा के लिए चुनाव प्रचार में भी आ गए हैं। मंडी में जनसभाओं में उन्होंने कांग्रेस पर तीखे हमले भी बोले हैं। शांता राजनीति में स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं । वैसे तो शांता सक्रिय राजनीति को अलविदा कह चुके हैं लेकिन जब इस उपचुनाव में वह पार्टी के लिए प्रचार पर उतर आए हैं तो जो सवाल किसी समय शांता स्वंय उठा चुके हैं तो आज उनके जवाब भी उन्हीं से जानना प्रदेश की जनता का हक हो जाता है। क्योंकि इन सवालों के जवाब आज तक कहीं से भी नहीं आये हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ शांता कुमार की प्रतिबद्धता का इसी से पता चल जाता है कि अपने मुख्यमंत्री काल में दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को सस्पेंड करने का साहस भी उन्होंने ही दिखाया था। पिछले दिनों शांता कुमार की आत्मकथा ‘‘निज पथ का अविचल पंथी’’ बाजार में आई है। इस आत्मकथा में भाजपा सरकार में मंत्री होते हुए उसी सरकार में घटे एक भ्रष्टाचार के मामले को उजागर करने और उस पर कार्रवाई की मांग करने पर कैसे उनको मंत्री पद से हटा दिया गया इसका खुलासा उन्होंने किया है। उनके खुलासे के मुताबिक जब उन्हें केंद्र में ग्रामीण विकास मंत्रालय का प्रभार मिला तब कुछ सांसद उनसे मिले। इन सांसदों ने उनसे शिकायत की एक प्रदेश को विभाग द्वारा 90 करोड़ का अनुदान दिया जाना स्वीकृत हुआ था। परंतु जब या अनुदान दिया जाने लगा तब यह राशि 90 करोड़ के बजाय 190 करोड़ कर दी गयी और इसमें लगातार 100 करोड़ का घपला हो रहा था। यह सुनते ही शांता कुमार ने उन सांसदों को प्रतिक्रिया यह दी की यह भारत सरकार है कोई बनिये की दुकान है जिसमें 90 से पहले एक लगाकर उसको 190 कर दिया जायेगा। शांता की प्रतिक्रिया पर सांसदों ने उन्हें कुछ पेपर दिये और कहा कि आप जांच कर लें और तब संसद में जवाब दें। सांसदों के इस कथन के बाद शांता ने पूरे मामले की जांच करवाई सारे संबंधित दस्तावेज इकट्ठे किये। जब यह सब करने के बाद इस घपले को लेकर संतुष्ट हो गये तब इस मामले की शिकायत प्रधानमंत्री से की और इसकी एक फाइल भी उनको दी। लेकिन शांता की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई और लोगों से भी इसकी चर्चा की । सबने जुबान बंद रखने की सलाह दी। अंततः इस घपले पर कारवाई होने की बजाय शांता से ही त्यागपत्र मांग लिया गया। जब शांता ने त्यागपत्र दिया तब वह बहुत व्यथित हुए और उन्होंने भाजपा छोड़ने तथा संसद में इस संबंध में बयान देने का मन बना लिया। परंतु उनकी धर्मपत्नी ने उन्हें ऐसा करने से रोका।
अब अपनी आत्मकथा लिखते हुये वह इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर पाए यह एक बहुत ही गंभीर विषय है । कि जब केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री स्तर पर भी भ्रष्टाचार को सरंक्षण दिया जा रहा हो तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के दावे केवल जनता को मूर्ख बनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । शांता कुमार ने इस आत्मकथा में और भी कई खुलासे किए हैं लेकिन इन्हीं पर कहीं से कोई खंडन नहीं आया है। और यही इनकी प्रमाणिकता का प्रमाण है। शांता कुमार की आत्मकथा अब सार्वजनिक खुलासा और इसको लेकर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। क्योंकि इन तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा सरकारों के बारे में आम आदमी क्या राय बनायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। खुलासे के बाद भी शांता कुमार भाजपा के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं और यह करते हुए पार्टी के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। भ्रष्टाचार का यह खुलासा सार्वजनिक करके शांता कुमार ने जनता के प्रति भी अपने धर्म को पूरा कर दिया है । अब यह जनता के अपने विवेक पर हैं कि वह क्या फैसला लेती है।