असामाजिक तत्वों के खिलाफ आप की पंजाब सरकार की कारवाई क्यों नहीं आयी सामने
शिमला/शैल। पंजाब की ऐतिहासिक जीत से उत्साहित होकर आप ने हिमाचल में भी विधानसभा की सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इस ऐलान के बाद पार्टी के केंद्रीय कार्यालय ने आठ सदस्यों की कमेटी का भी प्रदेश का कार्य देखने के लिये गठन कर दिया है। इसके मुताबिक दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को विधानसभा चुनावों का प्रभारी बनाया गया है। इनके अतिरिक्त दुर्गेश पाठक को प्रदेश प्रभारी, रत्नेश गुप्ता, कर्मजीत सिंह, कुलवंत बाथ को सह प्रभारी सतेन्द्र टोंगर को संगठन मंत्री विपिन राय को चुनाव प्रभारी का सचिव और दीपक बाली को मीडिया प्रभारी बनाया गया है। स्मरणीय है कि इस टीम के सभी लोग दिल्ली के हैं और हिमाचल से किसी को भी टीम में जगह नहीं दी गयी है। जबकि पार्टी का यह दावा है की सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में उनकी ईकाइयां कार्यरत हैं और पंजाब परिणामों के बाद दस हजार से अधिक लोगों ने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की है। यह निश्चित है कि आम आदमी पार्टी हिमाचल में पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ेगी। क्योंकि उसको राष्ट्रीय पार्टी होने के लिये उसे कम से कम चार राज्यों में 6% वोट चाहिए। इस समय हिमाचल में कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह और भाजपा के पास प्रो. धूमल जैसा कोई नेता नहीं है। इस कारण से हिमाचल में आप को यह लक्ष्य हासिल करना कठिन नहीं होगा। बल्कि यह कहना सही होगा कि यदि आप की आक्रामकता प्रदेश की भाजपा और कांग्रेस के प्रति गंभीर रहती है तो आप सत्ता में भी आ सकती है। क्योंकि प्रदेश की अधिकांश समस्याओं के लिए केंद्र की बजाये इन पार्टियों का स्थानीय नेतृत्व ज्यादा जिम्मेदार रहा है।
इस समय कांग्रेस और भाजपा से नाराज दोनों दलों के बड़े छोटे नेता आप में आ रहे हैं। इन नेताओं का आप में आना ही पार्टी की पहली कसौटी होगा। क्योंकि यह देखना आवश्यक हो जायेगा कि आने वाला नेता अपनी पार्टी से क्यों नाराज था। क्या उसे सत्ता में परोक्ष/अपरोक्ष भागीदारी नहीं मिली या सही में उसे वह मान सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार था। जनता हर नेता और कार्यकर्ता के बारे में जानती है। प्रदेश में कई नेता अपनी-अपनी पार्टियां बनाने का प्रयास कर चुके हैं। जनता ने उन्हें समर्थन भी दिया लेकिन वह जनता के विश्वास पर पूरे नहीं उतरे और फिर जनता ने उन्हें नकार दिया। हिमाचल में अभी तक वह राजनीतिक संस्कृति नहीं पनप पायी है कि एक ही छत के तले रहने वाले परिवार का हर सदस्य अलग-अलग पार्टी का सदस्य हो सकता है। आप में अभी भी कई लोग ऐसे हैं जो यह कहते हैं कि या तो आप को या फिर भाजपा को समर्थन दो। इससे ऐसा आभास हो जाता है कि उनका विरोध तो केवल कांग्रेस से है भाजपा से नहीं।
प्रदेश में सत्ता अब तक कांग्रेस भाजपा के बीच ही रहती आयी है। विकास के नाम पर दोनों दलों की सरकारें राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठता के तगमें लेती रही है। लेकिन उसके आधार पर कभी सत्ता में वापसी नहीं कर पायी है। प्रदेश में हर बार भ्रष्टाचार के आरोप पर ही सत्ता परिवर्तन होता रहा है। दोनों दलों की सरकारें एक-दूसरे पर हिमाचल को बेचने के आरोप लगाती रही हैं। लेकिन किसी ने भी सरकार आने पर अपने ही लगाये आरोपों की निर्णायक जांच करवाने का साहस नहीं किया है। इस समय कांग्रेस और भाजपा के कई छोटे-बड़े नेताओं के नाम आप में आने के लिये चर्चा में चल रहे हैं और उनमें से कई इस हमाम में नंगे रह चुके हैं। आज हिमाचल भारी-भरकम कर्ज के जाल में फंसा हुआ है और इस कर्ज के लिए भ्रष्टाचार बहुत हद तक जिम्मेदार रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस और भाजपा के नाराज लोगों को अपने में शामिल करने के लिये किस तरह के मानक अपनाती है। अभी यह आरोप लग चुका है कि पंजाब के कुछ लोग खालिस्तान के झंडे लगाकर हिमाचल के मणिकरण में आये थे। जब स्थानीय पुलिस ने उन्हें रोका तो उसके बदले में हिमाचल की बसों को पंजाब एंट्री स्थलों पर रोक दिया गया। प्रदेश के प्रवक्ता गौरव शर्मा ने इसे असामाजिक तत्वों का कृत्य बताते हुए इसे विपक्ष की साजिश करार दिया है। लेकिन आप प्रवक्ता यह नहीं बता पाये हैं कि इन तत्वों के खिलाफ आप की पंजाब सरकार ने क्या कारवाई की है।