इन्वेस्टर मीट के दावों के बीच सीमेंट उद्योग की भ्रूण हत्या के मायने

Created on Tuesday, 12 April 2022 04:56
Written by Shail Samachar

जुलाई 2019 में निदेशक से आये पत्र को फाईनल करने में डेढ़ वर्ष का समय क्यों लगा?
क्या इस दौरान यह फाइल सचिव तक ही रही या आगे भी गयी
इसी तरह का अंत एशियन और डालमिया के प्लांट का भी क्यों हुआ?

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने जब 2018 में अपना पहला बजट भाषण सदन में पढ़ा था तब उन्होंने प्रदेश की आर्थिक स्थिति और बढ़ते कर्ज पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। प्रदेश को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए औद्योगिक विस्तार के माध्यम से निवेश जुटाने की योजना बनायी गयी। इसके लिये धर्मशाला में 2019 में बड़े स्तर पर इन्वेस्टर मीट आयोजित की गयी। इस मीट में एक लाख करोड़ के निवेश के प्रस्ताव आने का दावा किया। लेकिन मार्च 2020 में ही लॉकडाउन लगा दिये जाने से यह दावा पूरी तरह सफल नहीं हो पाया। कोविड के कारण इसके लिए सरकार को ज्यादा दोषी नहीं ठहराया जा सकता यह स्वाभाविक है। लेकिन जब मार्च 2014 में एकल खिड़की योजना में क्लियर किये गये सीमेंट उद्योग को 2021 में भ्रूण हत्या का शिकार बनना पड़ जाये तो पूरी सरकार की नीयत और नीति का आकलन बदल जाता है।
स्मरणीय है कि मार्च 2014 में स्व. वीरभद्र सिंह की सरकार ने शिमला के चौपाल में रिलायंस उद्योग के लगने वाले 34 करोड़ के एक सीमेंट प्लांट की स्थापना की एकल खिड़की योजना के तहत अनुमति प्रदान की थी। इस अनुमति के बाद प्लांट की स्थापना से जुड़े अन्य कार्य शुरू किये गये। सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद निदेशक उद्योग ने जुलाई 2019 में यह मामला एल ओ आई जारी किये जाने के लिये सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव को अगली कारवाई के लिये भेज दिया। लेकिन जुलाई 2019 में सचिवालय में आये इस प्रस्ताव पर जनवरी 2021 तक एल ओ आई जारी नहीं हो सका। इसी बीच रिलायंस से यह उद्योग आर सी सी पी एल प्राइवेट लिमिटेड ने ले लिया था। एल ओ आई का आवेदन रिलायंस ने दायर कर दिया हुआ था। लेकिन इस कंपनी को यह एल ओ आई 20-01-2021 को प्राप्त हुआ। इसी बीच भारत सरकार द्वारा एमएमडीआर एक्ट मार्च में संशोधित किये जाने के समाचार आ चुके थे। इन समाचारों के परिदृश्य में कंपनी को पर्याप्त समय रहते एल ओ आई की जगह ग्रांट ऑर्डर चाहिये था। कंपनी ग्रांट ऑर्डर की पैरवी में लग गयी जो उसे 23-03-2021 को मिला। परन्तु एम एम डी आर एक्ट का संशोधन 28-03-2021 से लागू हो गया।
ऐसे में यह स्वभाविक है कि जिस उद्योग में करीब 4000 करोड़ का निवेश होना हो और करीब 400 लोगों को रोजगार मिलना हो उसे 23-03-2021 को ग्रांट ऑर्डर हासिल करके 28-03-2021 तक 5 दिन में अमलीजामा नहीं पहनाया जा सकता। इसमें प्रदेश को हर वर्ष हजारों करोड़ का नुकसान हो गया और सैकड़ों लोग रोजगार से वंचित रह गये हैं। क्योंकि यह उद्योग पैदा होने से पहले ही भ्रुण हत्या का शिकार बना दिया गया। एक ओर जयराम सरकार इसी प्रशासन के सहारे इन्वैस्टर मीट जैसे आयोजन करके निवेशकों को आमंत्रित कर रही है और दूसरी ओर उसी के सचिवालय में उसी की नाक के नीचे इतने बड़े निवेश तथा निवेशक के साथ इस तरह का अनुभव घट जाये तो इसका आम आदमी में सरकार को लेकर क्या संदेश जायेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
कंपनी ने सरकार के इस व्यवहार को लेकर मीडिया के कुछ लोगों को अपनी पीड़ा ब्यान करते हुये जो खुलासा किया है वह पूरे प्रशासन को बुरी तरह से बेनकाब कर देता है। उनकी पीड़ा के कुछ तथ्य पाठकांे और सरकार के सामने भी आने चाहिये। शायद इसी नीयत से कंपनी मीडिया तक पहुंची है। सरकारी दस्तावेज के मुताबिक 17-07-2019 को इस मामले की फाइल निदेशक से ए सी एस उद्योग को एल ओ आई जारी करने के लिए आयी। एल ओ आई 20-01-2021 को जारी हुआ और ग्रांट ऑर्डर 23-03-2021 को तथा 28-03-2021 को संशोधित एक्ट लागू हो गया। परिणाम स्वरूप सीमेंट प्लांट नहीं लग पाया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतना समय फाइल प्रोसैस करने में क्यों लग गया? कंपनी का आरोप है कि उनसे करोड़ों की रिश्वत मांगी गयी और उन्होंने दी भी कंपनी का तो यहां यहां तक आरोप है की गुड़गांव की सैक्टर 65 स्थित एम थ्री एम गोल्फ ऐस्टेट में एक फ्लैट भी किसी परिजन को दिया गया। कंपनी के इन आरोपों में कितनी सच्चाई है और उसने 2021 मार्च में घट चुके इस प्रकरण को क्यों अब मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक करने का फैसला लिया यह सब जांच का विषय है और सरकार को इसकी जांच करके सच्चाई सामने लानी चाहिये। क्योंकि मार्च 2014 में यह पलांट सिंगल विंडो में क्लियर किया जो मार्च 2021 में आकर इस तरह की भ्रुण हत्या का शिकार हो गया। चर्चा है कि ऐसा अन्त इसी उद्योग का अकेले नही हुआ हैं इसमें डालमिया और एशियन के प्लांट्स का भी यही अंत हुआ है।
इसी बीच यह शिकायत एक बृजलाल के माध्यम से पी एम ओ तक भी पहुंच गयी। बृजलाल शायद शिवसेना से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने वाकायदा यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक को भेज दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसका संज्ञान लेकर यह मामला राज्य सरकार को भेज दिया है। अब इस प्रकरण पर मुख्यमंत्री क्या कार्रवाई करते हैं इस पर सबकी निगाहें लग गयी हैं। चुनावों की पूर्व संध्या पर ऐसे मामलों का इस तरह से बाहर आना सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की राजनीतिक सेहत पर क्या असर डालता है यह देखना रोचक हो गया है। क्योंकि सीमेंट प्लांट जमीन पर नहीं उतर पाये हैं और सरकार इस पर खामोश रही है।