क्या जयराम हटाये जा रहे हैं फिर उठी यह चर्चा

Created on Wednesday, 25 May 2022 15:10
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश में इसी वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं पंजाब में भाजपा की हार और आम आदमी पार्टी की जीत ने भाजपा तथा कांग्रेस दोनों के लिए ऐसी चुनौती खड़ी कर दी है कि दोनों दलों को अपनी रणनीति में बदलाव करने की परिस्थितियां पैदा कर दी हैं। प्रदेश कांग्रेस संगठन में हुआ बदलाव उसी का परिणाम है। अब पंजाब की मान सरकार ने अपने स्वास्थ्य मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर जिस तेजी से कारवाई की है उससे भी हरियाणा और हिमाचल की भाजपा सरकारों पर दबाव आया है। हिमाचल में जब से जयराम सरकार आयी है तब से लेकर आज तक कई मंत्रियों को लेकर बेनामी पत्रों के माध्यम से भ्रष्टाचार के मामले उठते रहे हैं। लेकिन किसी पर कोई कारवाई नहीं हुई है। बल्कि पत्रों को लेकर कुछ पत्रकारों को अवश्य परेशान किया गया। सरकार के पांच वरिष्ठ अधिकारी एक ही समय में दिल्ली और शिमला में मूल पोस्टिंगज लेकर दोनों जगह सरकारी आवासों का लाभ लेने के साथ ही विशेष वेतन का भी लाभ ले रहे हैं। नियमों के मुताबिक यह अपराध जिस पर तुरंत कारवाई होनी चाहिये थी। लेकिन सरकार ऐसा कर नहीं पा रही है। हर गलती को कांग्रेस शासन के साथ तुलना करके दबाया जा रहा है। जनता में यह सब चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी जमीनी सच्चाई का परिणाम है कि अब तक हुये चारों चुनावी सर्वेक्षणों में किसी में भी भाजपा जीत के आस पास भी नहीं है। यह सर्वेक्षण तब हुये हैं जब पुलिस भर्ती पेपर लीक मामला नहीं घटा था और न ही भाजपा का गुटों में बंटा होना सामने आया था। अब जब भाजपा ने पुष्कर धामी को हारने के बाद भी फिर से मुख्यमंत्री बना दिया तो धूमल की ओर से भी उनकी हार के कारणों की जांच की मांग आना स्वभाविक था। क्योंकि जयराम के वरिष्ठ मंत्री सुरेश भारद्वाज का यह ब्यान आ चुका था कि 2017 में पुराने नेतृत्व और नीतियों को खत्म करके नया नेता तथा नीति लायी गयी है। भारद्वाज के इस ब्यान पर नड्डा ने यह कह कर मोहर लगा दी कि भाजपा गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। नड्डा ने यह स्पष्ट कह दिया कि हार के कारणों की जांच नहीं की जा सकती। जयराम के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ा जाने का ऐलान कर दिया। संयोगवश नड्डा के इस ऐलान के बाद ही केजरीवाल की दो प्रदेश यात्राएं हुई। दोनों रैलियां सारे अवरोधों के बावजूद सफल रही। केजरीवाल की रैलियों का प्रभाव कम करने के लिये नड्डा को स्वयं मैदान में उतरना पड़ा। लेकिन शिमला और कांगड़ा दोनों जगह केजरीवाल के मुकाबले भीड़ बहुत कम रही। अब इस सभी को पूरा करने के लिये प्रधानमंत्री की यात्राएं आयोजित की जा रही हैं। युवा मोर्चा का राष्ट्रीय आयोजन धर्मशाला में किया गया। यह चर्चाएं सामने आयी हैं कि बड़े स्तर पर टिकटों में परिवर्तन होगा। अनचाहे ही यह संदेश चला गया है कि धूमल खेमें के पर कतरने का पूरा प्रबन्ध कर लिया गया है।
लेकिन संयोगवश इन्हीं दिनों धूमल की शादी की 50वीं सालगिरह का अवसर आ गया। धूमल पुत्रों ने इस अवसर को एक बड़े आयोजन का रूप दे दिया। इस अवसर पर जिस कदर जनता अपने नेता के साथ इकटठी हो गयी उसने भाजपा के भीतर पक रहे सारे षडयंत्रों की हवा निकालते हुये यह प्रमाणित कर दिया कि प्रदेश की राजनीति के सारे समीकरणों को बदलने की ताकत अब भी इस परिवार के पास है। इस आयोजन को राजनीतिक विश्लेषक पूरी तरह से नड्डा के उस ब्यान का जवाब मान रहे हैं जिसमें नड्डा ने कहा था कि पार्टी गुण दोष के आधार पर फैसला लेती है। आज जिस तरह से जयराम सरकार ने धूमल को हाशिये पर धकेल रखा है उस परिदृश्य में इस परिवार के परिवारिक आयोजन में इतने लोगों का आ जाना राजनीतिक पंडितों के लिये बहुत कुछ स्पष्ट कर देता है। क्योंकि जयराम के सलाहकारों ने उन्हें ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां वह चाह कर भी अपने में कोई सुधार नहीं कर सकते। ऐसे में पार्टी को शर्मनाक हार या नेतृत्व परिवर्तन करके जीत की संभावनाओं तक पहुंचने के प्रयासों में से एक को चुनने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। दूसरी ओर धूमल परिवार को भी भविष्य में स्थापित करने के लिये यह वस्तुस्थिति एक बड़ी चुनौती बन गयी है। माना जा रहा है कि सरकार और संगठन दोनों के नेतृत्व में परिवर्तन करना अब बाध्यता बन गयी है और अब शायद नड्डा का संरक्षण भी रक्षा नहीं कर पायेगा।