सरकार की गाईड लाईन्स और सर्वाेच्च न्यायालय के फैसले की अनदेखी क्यों?
क्या सीबीआई में दर्ज मामले को सरकार गंभीर नहीं मानती
क्या विधानसभा में मामला गूंजने के बाद भी मुख्यमंत्री को इसकी पूरी जानकारी नहीं थी?
क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देना सरकार की नीयत और नीति बन गया है?
शिमला/शैल। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावे करने वाली जयराम सरकार की नीयत और नीति दोनों पर इसी भ्रष्टाचार को लेकर अब सवाल उठने शुरू हो गये हैं। यह सवाल जयराम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त प्रबोध सक्सेना की पदोन्नति को लेकर उठ रहे हैं। सरकार में अभी मुख्य सचिव राम सुभग को हटाकर उनके स्थान पर आर.डी. धीमान को तैनाती दी है। इस बदलाव के लिये अक्तूबर 2021 में प्रधानमंत्री कार्यालय से आयी शिकायत को कारण माना जा रहा है। यह सवाल उठ रहा है कि यदि प्रधानमंत्री कार्यालय से आये इस पत्र पर 10 माह बाद कारवाई हुई है तो प्रबोध सक्सेना के मामले में कारवाई होने में कितना समय लगेगा। स्मरणीय है कि प्रबोध सक्सेना जब 2-4-2008 से 31-7-2010 तक केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर थे और वित्त मंत्रालय के विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड में बतौर निदेशक तैनात थे तब आई एन एक्स मीडिया प्रकरण घटा था। इस प्रकरण पर 15-5-2017 को सी बी आई ने भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराधिक मामला दर्ज किया था। इसमें प्रबोध सक्सेना समेत वित्त मंत्रालय के चार अधिकारी पी चिदंबरम के साथ अभियुक्त हैं। सभी जमानत पर हैं। इस मामले में 2019 में जब पी चिदंबरम की गिरफ्तारी हुई थी तब कांग्रेस ने देश भर में इस पर विरोध जताया था। हिमाचल विधानसभा में भी कांग्रेस ने इस गिरफ्तारी पर विरोध जताते हुए सदन से वाकआउट किया था। तब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस गिरफ्तारी को जायज ठहराते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का वह फैसला सदन में पढ़ा था जिसमें चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज किया गया था। सदन में यह फैसला पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुख्यमंत्री को तब यह पूरी जानकारी थी कि उनके वित्त सचिव भी इसमें सह अभियुक्त हैं। सह अभियुक्त होने के कारण उनका नाम संदिग्ध आचरण श्रेणी के अधिकारियों की सूची में आ जाता है और इसके कारण उन्हें किसी भी संवेदनशील विभाग की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती।
संदिग्ध आचरण श्रेणी में किस तरह के कर्मचारियों/अधिकारियों के नाम शामिल रहेंगे और इसका संबंधित लोगों पर प्रभाव क्या रहेगा इसको लेकर केंद्र और राज्य सरकार लगातार निर्देश जारी करती आ रही है। 1961 में लोकसभा और राज्यसभा में इस संद्धर्भ में आये एक वक्तव्य के बाद यह निर्देश जारी हुये थे तब से लेकर अब तक इन निर्देशों को लगातार कड़ा किया जाता रहा है। प्रदेश उच्च न्यायालय में CWP 4916/2010, Sher Singh Vs State of H.P. & others में प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई है। इसके बाद 23-4-2011 को प्रधान सचिव गृह एवं सतर्कता ने सभी विभागाध्यक्षों, निगमों/बोर्डों के प्रबन्ध निदेशकों और सरकार के प्रशासनिक सचिवों को पत्र लिखकर निर्देशों का कड़ाई से पालन करने को कहा है। इस पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि संदिग्ध आचरण श्रेणी में नाम आने का प्रभाव क्या होगा। बल्की CWPIL 111/2017 में भी उच्च न्यायालय ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है। इन निर्देशों के चलते जब भी ऐसे किसी कर्मचारी अधिकारी का मामला पदोन्नति के लिये आयेगा तब उस पर विचार करने के बाद उसे सील्ड कवर में तब तक रख दिया जायेगा जब तक कि दर्ज हुये मामले का फैसला नहीं आ जाता है। सील्ड कवर की प्रक्रिया किस स्टेज से शुरू हो जायेगी इसे सर्वाेच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल 1983 को यूनियन ऑफ इंडिया बनाम के वाई कुमार मामले में पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है।
इसी संद्धर्भ में भारत सरकार में भी निर्देश जारी किए हुये हैं। प्रदेश सरकार ने भी इन निर्देशों को स्वीकार करते हुये 27-10-2017 से सील्ड कवर प्रक्रिया को अपना रखा है। बल्कि प्रबोध सक्सेना जब वह प्रधान सचिव सतर्कता थे तब स्वयं इस आश्य का प्रस्ताव मंत्रिमण्डल में लेकर गये थे। आज प्रदेश सरकार के सभी कर्मचारियों/अधिकारियों के मामलों में सील्ड कवर प्रक्रिया लागू हो रही है। लेकिन प्रबोध सक्सेना अकेले ऐसे अधिकारी हैं जो इसमें अपवाद बने हुए हैं। आपराधिक मामला चलते हुए भी उन्हें अतिरिक्त मुख्य सचिव पदोन्नत कर दिया गया है। आई ए एस अधिकारियों की पदोन्नति के लिये सिविल सर्विस बोर्ड गठित किया जाता है। क्योंकि सर्वाेच्च न्यायालय ने ऐसे निर्देश जारी कर रखे हैं। पदोन्नति पर विचार करने से पहले सतर्कता विभाग से यह प्रमाण पत्र लिया जाता है कि संबंधित अधिकारी के खिलाफ कोई मामला तो लंबित नहीं है। प्रबोध सक्सेना के खिलाफ सी बी आई द्वारा 2017 में दर्ज किया गया मामला अब तक लंबित है बल्कि फरवरी 2020 से वह इसी मामले में जमानत पर भी हैं। प्रदेश विधानसभा में भी एक समय गूंज चुके इस मामले की जानकारी मुख्यमंत्री से लेकर पूरे प्रशासन तक को थी। यह जानकारी होते हुये भी सी बी आई से प्रमाण पत्र क्यों नहीं लिया गया? क्या हिमाचल सरकार सी बी आई द्वारा दिल्ली में प्रदेश के किसी अधिकारी के खिलाफ दर्ज किये गये मामलों को यहां पर प्रभावी नहीं मानती। इन दिनों यह मामला प्रदेश के कर्मचारियों और प्रशासनिक हल्कों में विशेष चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रदेश की राजनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ना तय है क्योंकि मुख्यमंत्री की प्रशासनिक दक्षता के आकलन का भी यह बड़ा आधार सिद्ध होगा।
The main, purpose of the list of ODI, is as follows:
(i) to ensure that officers appearing on the list of ODI are not posted to sensitive assignments,
(ii) to withhold the certificate of integrity.
(iii) to ensure non-promotion, after consideration of the case of the official, to a service, grade or post to which one is eligible for promotion.
(iv) to consider compulsory retirement in the public interest (otherwise then as penalty) in accordance with the orders issued by the government.
(v) to consider refusal of extension in service or re-employment either under Government or in PSUs and
(vi) For non-sponsoring of names of such officials for foreign assignment /deputation/foreign trainings etc.
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
The question in the present case is whether the decision in Jankiraman was correctly applied in the present situation" fit Jankiraman itself, it his been pointed out halt the sealed cover procedure is to he followed where a government servant is recommended for promotion by the D.P.C. but before lie is actually promoted if he is either placed under suspension or disciplinary proceedings are taken against him or a decision has been taken to initiate proceedings or criminal prosecution is launched or sanction for Such prosecution has been issued or decision to accord such sanction is taken'. Thus the sealed cover procedure is attracted even when a decision has been taken to initiate disciplinary proceedings, or decision to accord sanction for prosecution is taken or criminal prosecution is launched or......... decision to accord sanction for prosecution is taken. The object of following the sealed cover procedure has been indicated recently in the decision in Civil Appeal No. 1240 of 1993 Delhi Development Authority, v.. H.C.Khurana -pronounced on April 7. 1993. and need not be reiterated.