पहले 2000 मेगावाट का उत्पादन होगा उसके बाद दी जाएगी 300 यूनिट बिजली मुफ्त

Created on Monday, 27 March 2023 10:32
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांग्रेस ने चुनावों से पूर्व प्रदेश की जनता को जो दस गारंटीयां दी है उनमें से एक गारंटी 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की भी है। यह गारंटीयां इसलिए दी गयी थी ताकि हर आदमी के जीवन स्तर की में गुणात्मक सुधार लाया जा सके। हर आदमी की क्रय शक्ति बढ़े। इन गारंटीयों के परिणाम स्वरूप प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया और कांग्रेस की सरकार बन गयी। सरकार बनने के बाद वायदे के मुताबिक प्रदेश के कर्मचारियों को ओल्ड पैन्शन योजना का लाभ मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में दे दिया गया। इसके बाद 18 से 60 वर्ष की महिलाओं को जो पंद्रह सौ रूपये प्रति माह देने की गारंटी थी उसमें करीब 11 लाख महिलाएं चिन्हित हुई हैं और उन्हें चरणबद्ध तरीके से यह लाभ देने की बात कही जा रही है अर्थात कुछ महिलाओं को इसी वर्ष से यह लाभ मिलना शुरू हो जायेगा। लेकिन तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने के मामले में अब यह कहा गया है की सरकार 3 वर्षों में 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन बढ़ायेगी और फिर 300 यूनिट बिजली मुफ्त बिजली उपभोक्ताओं को देगी। सरकार यह लाभ तुरन्त प्रभाव से इसलिए नहीं दे पा रही है क्योंकि उसे विरासत में एक अच्छी आर्थिक स्थिति नहीं मिली है। सरकार ने आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ उपाय किये हैं जिनमें एक शराब के ठेकों की नीलामी की प्रक्रिया में बदलाव करना था। इस बदलाव के परिणाम सकारात्मक रहे हैं और इससे अच्छा लाभ भी मिला है।
इसी तर्ज पर एक उपाय जल विद्युत परियोजनाओं पर जल उपकर लगाकर की चार हजार करोड़ की आय होने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन इस उपकर पर जिस तरह से पंजाब और हरियाणा सरकारों ने एक ही दिन अपनी अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कर एतराज जताया है उसे स्पष्ट हो जाता है कि यह उपकर मामला एक बार अदालत में जरूर पहुंचेगा और इसके परिणाम आने में समय लगेगा। उपकर के अतिरिक्त 2000 मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। स्मरणीय है कि हिमाचल में जितनी जल विद्युत दोहन चिन्हित की गयी थी उसके आधार पर हिमाचल को उर्जा राज्य प्रचारित किया गया। इसी प्रचार पर प्रदेश में उद्योगों की आमंत्रित किया गया। 24500 मेगावाट की कुल क्षमता में से 11149 मेगावाट का दोहन किया जा चुका है। इससे प्रदेश को कर और गैर कर से इस वर्ष 2249.77 करोड़ की आय होने का अनुमान है। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार 680 करोड़ की आय अधिक होने का अनुमान है और यह माना जा रहा है कि इस आय का बड़ा हिस्सा बिजली की दरें बढ़ने से होगा।
प्रदेश में बिजली का उत्पादन केंद्रीय क्षेत्र संयुक्त और निजी क्षेत्र में हो रहा है। संयुक्त और केंद्रीय क्षेत्र से 12% तक मुफ्त बिजली ली जा रही है। कुल उत्पादन का करीब 46% दोहन इस क्षेत्र के पास है। निजी क्षेत्र से 30% तक मुफ्त बिजली ली जा रही है। राज्य क्षेत्र से 3800 मेगावाट की विभिन्न योजनाएं कार्यशील हैं और इनमें 12% मुफ्त बिजली का प्रावधान रखा गया है। जबकि निजी क्षेत्र में बन रही परियोजनाओं में हस्ताक्षेप अनुबंधों की अनुपालन न होने पर कोई दंडात्मक कारवाई का प्रावधान नहीं है। कडच्छम वांगतू परियोजना 1045 मेगावाट हस्ताक्षरित हुयी थी और 2021 में इसके साथ अनुपूरक अनुबंध हुआ क्योंकि इसमें 45 मेगावाट क्षमता बढ़ा ली थी। परंतु इस बढ़ौतरी पर सरकार को कोई अतिरिक्त बिजली नहीं मिल रही। अब मार्च में इसे नोटिस जारी करना पड़ा है। लेकिन बोर्ड प्रबंधन के खिलाफ कोई कारवाई नहीं की गयी है। प्रदेश में स्थापित 172 परियोजनाओं में से 108 परियोजनाएं उत्पादन के बाद एल.ए.डी.एफ. नहीं दे रही है क्योंकि 2009 की अधिसूचना में इसके लिए प्रावधान ही नही किया गया। 18 परियोजना निर्माताओं ने इस अधिसूचना के खिलाफ अदालत से स्टे ले रखा है। राज्य क्षेत्र में जो परियोजनाएं चल रही हैं वह वर्ष में इतना समय रिपेयर आदि के नाम पर बन्द रहती हैं कि उसी से हानि की स्थिति पैदा हो जाती है जबकि निजी क्षेत्र की परियोजनाओं में रिपेयर आदि के लिए बहुत ही अल्प समय के लिए इन्हें बंद रखना पड़ता है। इसी में एक बड़ा खेल हो जाता है और किसी का ध्यान नहीं जाता। यही नहीं विद्युत ट्रांसमिशन की सारी जिम्मेदारी सरकार ने अपने ऊपर ले रखी है। इसी ट्रांसमिशन में 40% बिजली रास्ते में ही गायब हो जाती है जिसकी कीमत सरकार को चुकानी पड़ती है।
दूसरी ओर अपफ्रन्टमनी की करोड़ों की देनदारी सरकार के नाम पढ़ रही है जबकि यह परियोजनाएं लगने से पहले ही इनका आबंटन रद्द हो गया। आबंटितों ने नियमानुसार इनके लिए अपफ्रन्ट प्रीमियम जमा करवा रखा है लेकिन प्रशासनिक सहयोग समयानुसार न मिलने के कारण योजनाएं लग नहीं पायी और आबंटन रद्द हो गये। अब यह लोग अपना-अपफ्रन्ट वापस मांग रहे हैं। अदाणी पावर से शुरू हुई यह मांग ऊल डुग्गर और सैली परियोजना तक पहुंच गयी है। यह कंपनियां अपफ्रन्ट वापस दिये जाने के आदेश अदालतों से ले चुकी है। इनकी रकमों पर ब्याज की अदायगी भी करनी पड़ रही है। एक और सरकार ऊर्जा से आय बढ़ाने के प्रयासों में लगी है तो दूसरी और प्रशासन की नालायकी इस तरह से सरकार के प्रयासों पर भारी पड़ रही है। क्योंकि कंपनियां तो परियोजनाएं लगाने आती हैं लेकिन प्रशासन समय पर औपचारिकताएं पूरी नहीं करता है और परिणामस्वरूप परियोजनाओं का आबंटन रद्द हो जाता है और संबंधित प्रशासन की कोई जिम्मेदारी तय नहीं की जाती है। ऐसे में जब तक संबंधित प्रशासन की जवाबदेही तय नहीं की जाती है तब तक उर्जा क्षेत्र से अपेक्षित लाभ मिल पाना संभव नहीं होगा। क्या सुक्खू सरकार व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर प्रशासन को जवाबदेह बना पाती है या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि जिस तरह की चाल अब तक प्रशासन चलता आया है उसके चलते 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की गारंटी तीन साल बाद भी पूरी होना कठिन है।