सुक्खू सरकार के खिलाफ भी शुरू हुई पत्र बम्ब रणनीति

Created on Monday, 22 May 2023 12:14
Written by Shail Samachar

पॉवर प्रोजेक्टों के आर्बिट्रेशन मामलों में दस अरब का नुकसान होने से बढ़ी आशंकांये

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है? क्या सरकार के अपने ही उसके खिलाफ मोर्चा खोलने जा रहे हैं? क्या पूर्व की जयराम सरकार की तर्ज पर सुक्खू सरकार के खिलाफ भी पत्र बम्बों की रणनीति अपनाई जाने लगी है? यह सवाल इन दिनों सचिवालय के गलियारों से निकलकर सड़क-चौराहों पर चर्चा का विषय बनते जा रहे हैं। क्योंकि पिछले दिनों एक पत्र स्वास्थ्य विभाग को लेकर उप-मुख्यमंत्री के नाम लिखा गया था। इस पत्र में एक अधिकारी की संपत्तियों और उसके भ्रष्टाचार का जिक्र करते हुये इसमें गहन जांच की मांग की गयी थी। लेकिन यह पत्र सचिवालय तक पहुंच भी पाया और उस पर कोई कारवाई हुई या नहीं इसका कुछ भी आज तक सामने नहीं आ पाया है। अब एक और पत्र प्रधानमंत्री के नाम लिखा गया इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इस पत्र में आरोप लगाया है कि प्रदेश के ऊर्जा विभाग में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला हुआ है। इस पत्र में तीन अधिकारियों का जिक्र किया है। इन तीनों में से एक तो अभी भी विभाग में कार्यरत है और एक कुछ समय पूर्व तक विभाग से संबद्ध रह चुका है। तीसरे अधिकारी का विभाग से कभी कोई लेना-देना नही रहा है परन्तु उसे प्रभावशाली बताया गया है। उर्जा परियोजनाओं के कार्यान्वयन को लेकर गंभीर आरोप लगाये गये हैं। हवाला के माध्यम से लेनदेन का आरोप है। इस आरोप में जो आंकड़ा दिया गया है उसके आकार को देखते हुये यह संभव नही लगता कि यदि सही में इतना बड़ा लेनदेन हुआ है तो यह राजनेताओं की जानकारी के बिना ही संभव हो गया होगा।
उर्जा परियोजनाओं के कार्यान्वयन में सही में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है इसकी पुष्टि पिछले दिनों कुछ परियोजनाओं के आर्बिट्रेशन के चल रहे मामलों में आये फैसलों से हो जाती है। सरकार पिछले दिनों जो मामले हारी है और उनमें जो अप फ्रन्ट प्रिमियम ब्याज सहित संबद्ध कंपनियों को लौटाना पड़ेगा यदि उसको जोड़ा जाये तो यह रकम दस अरब से भी अधिक बन जाती है। अदानी पावर का मामला हारने के अतिरिक्त कुछ अन्य हारे मामलों में प्रमुख हैं चांजु-डूग्गर-सैली और ऊहल। इसमें दिलचस्प यह है कि यह सारे मामले विभाग की कार्यप्रणाली के कारण हारे हैं। इनमें प्रदेश और आम आदमी के पैसे का नुकसान हुआ है। लेकिन अरबों का नुकसान हो जाने के बावजूद किसी भी अधिकारी कर्मचारी की इसने आज तक कोई जिम्मेदारी तक तय नहीं की गयी है। क्या ऐसा राजनीतिक इच्छा के बिना हो सकता है यह सवाल उठ रहा है।
हिमाचल कांग्रेस ने चुनावों से पूर्व 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की भी गारन्टी दी है। सरकार ने अब कहा है कि वह पहले 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगी और उसके बाद मुफ्त बिजली का वादा पूरा करेंगे। इस दिशा में परियोजना के निर्माताओं से इसके निर्माण में तेजी लाकर इसे 2025 तक पूरा करने के निर्देश दिये हैं। स्मरणीय है कि यह परियोजना 2012 में आबंटित हुई थी। यह बहुत पहले तक ही पूरी हो जानी चाहिये थी। इसमें शायद दूसरी बार समय विस्तार दिया गया है। इस परियोजना के निर्माण में इसलिये देरी हुई है क्योंकि इसमें निर्माता कंपनी को समय पर ड्राइंग ही नहीं दिये गये। लेकिन इस देरी के लिये किसी भी अधिकारी कर्मचारी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। इस पत्र बम्ब में भी इस परियोजना को यह आरोप लगाया गया। यह पत्र सीधे प्रधानमंत्रा के नाम लिखा गया है और यह कहा गया है कि शिकायतकर्ता जांच होने पर इन आरोपों को प्रमाणित करने के लिये तैयार है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि सरकार ने समय रहते कदम न उठाये तो इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं।

यह पत्र बम्ब के कुछ अंश

आर्बिट्रेशन