शिमला/शैल। जब से कांग्रेस हाईकमान द्वारा करवाये गये सर्वे में यह सामने आया है कि हिमाचल में कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट मिलने नहीं जा रही है और वरिष्ठ नेता ठाकुर कौल सिंह को हाईकमान ने दिल्ली बुलाया है तब से प्रदेश की राजनीति में हलचल बढ़ गयी है। यह चर्चा में आया है कि प्रदेश के हालात पर कॉल सिंह ने एक रिपोर्ट हाईकमान को सौंपी है जिसमें तेईस विधायकों और चार मंत्रियों के हस्ताक्षर हैं। यह चर्चा सामने आने के बाद मुख्यमंत्री भी दिल्ली गये। दिल्ली में मुख्यमंत्री की पहले दिन प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला फिर राहुल गांधी तथा देर शाम के.सी. वेणुगोपाल से मुलाकात हुई। दूसरे दिन फिर राजीव शुक्ला से दो दौर की बैठक हुई। अगले दिन प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई। इसी दौरान प्रदेश के मुख्य सचिव भी दिल्ली पहुंचे। शायद वह चिदम्बरम वाले आईएनएक्स मीडिया मामले में दिल्ली गये थे क्योंकि इसमें वह भी सह अभियुक्त हैं और माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले यह मामला निर्णायक बिंन्दु पर पहुंच जायेगा। इस समय सीबीआई कोर्ट में विचाराधीन चल रहा है।
मुख्यमंत्री की दिल्ली यात्रा के बाद मंत्रिमंडल में विस्तार और विभिन्न निगमों/बोर्डों में संभावित ताज पोशीयों को लेकर चर्चाएं गर्म हो गयी हैं। लेकिन इसी दौरान छः बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्व. वीरभद्र सिंह के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और कुछ अन्य मंत्री शिमला में मौजूद होने के बावजूद नहीं आये उससे न चाहते हुये भी प्रदेश की जनता में यह संदेश चला गया कि सरकार और संगठन में सब अच्छा नहीं चल रहा है। स्व. वीरभद्र सिंह का प्रदेश की राजनीति और प्रदेश की जनता के दिलों में जो स्थान है उसे काम के सहारे भी विस्थापित करने में लम्बा समय लगेगा। इसलिये सार्वजनिक आचरण में जरा सा भी है संकेत जाना कि उनकी अहमियत कम करने का प्रयास किया जा रहा है राजनीतिक रूप से आत्मघाती होगा। अभी तो अगले विधानसभा चुनाव में भी वीरभद्र सिंह प्रसांगिक रहेंगे। लेकिन इस मौके पर जो सियासत की गयी है उससे सरकार की प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगे हैं। यह सब कुछ रिपोर्ट हुआ है और दिल्ली तक पहुंचा है।
दूसरी ओर वित्तीय संकट चलते कर्मचारियों को समय पर वेतन का भुगतान तक नहीं हो पा रहा है। हजारों कर्मचारी हर महीने प्रभावित हो रहे हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती जायेगी यह शीर्ष प्रशासन ने भी मानना शुरू कर दिया है। इसी संकट के चलते सरकार गारंटीयां लागू नहीं कर पा रही है। ओ.पी. एस. बहाली से बड़ा मुद्दा 2021 में हुये वेतन मान संशोधन के फलस्वरूप 2016 से 2021 तक सेवानिवृत्त हुये कर्मचारियों को इस संशोधन के अनुसार एरियर का भुगतान न होना बनता जा रहा है। क्योंकि ओ.पी.एस. का असर सरकार के इस कार्यकाल में नहीं के बराबर पड़ना है। आरोप है कि सरकार के पास कर्मचारियों का 2000 करोड़ जमा है जिस पर सरकार चार सौ करोड़ से ज्यादा ब्याज कमा चुकी है। वित्तीय स्थिति के कारण यदि कर्मचारियों को भुगतान तक नहीं हो पा रहा है तो उस स्थिति में बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा किस आधार पर की जा रही है? क्या कर्ज लेकर बड़े ठेकेदारों को ही भुगतान किये जा रहे हैं यह सवाल उठने शुरू हो गये हैं। दिल्ली तक यह जानकारीयां भी पहुंच चुकी है। लेकिन मुख्यमंत्री इस सबको भ्रामक प्रचार कहकर जो
नकायने का प्रयास कर रहे हैं उससे स्थिति और भी हास्य पद होती जा रही है।
भ्रष्टाचार के किसी भी मामले पर कारवाई न करना सरकार की नीति बन गयी है। बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करने वालों की आवाज दबाने का प्रयास किया जा रहा है। इस परिदृश्य में यह स्पष्ट है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई सफलता मिलने वाली नहीं है। आने वाले दिनों में यह और भी रोचक हो जायेगा कि जिन चार प्रदेशों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं वहां पर भी जब हिमाचल की तर्ज पर कांग्रेस गारंटीयां घोषित करेगी तो वहां पर विपक्ष हिमाचल की सुक्खू सरकार की परफॉर्मेंस का लेखा-जोखा जनता के सामने रखकर कांग्रेस को परेशानी में डाल देगा। अभी जुलाई में विपक्ष की शिमला में बैठक होने जा रही है उस बैठक में शामिल होने वाले नेताओं को जब अपने स्तर पर ही प्रदेश सरकार की परफॉर्मेंस कि यह व्यवहारिक जानकारी मिल जायेगी कि यह सरकार गारंटीयां लागू करना तो दूर बल्कि समय पर वेतन का भुगतान भी नहीं कर पा रही है तब हाईकमान के लिये यह एक बहुत ही असहज स्थिति बन जायेगी। क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जिस तरह यह सरकार अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को ही सत्ता परिवर्तन का एहसास नहीं करवा पायी है उससे ज्यादा हास्यपद और कुछ नहीं हो सकता। भाजपा काल के प्रशासन को ही यह सरकार शीर्ष पर क्यों बैठाये हुए हैं इस सवाल का जवाब खोजने में शायद अब हाईकमान भी लग गयी है क्योंकि हिमाचल का प्रभाव दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा हाईकमान इससे चिन्तित है।