क्या कांग्रेस में उन विद्रोहियों की वापसी हो रही है जिन्होंने चुनावों में गद्दारी की है

Created on Wednesday, 09 August 2023 17:24
Written by Shail Samachar
जल उपकार आयोग में हुई ताजपोशीयों से उठी चर्चा
क्या जल उपकर आयोग वांछित परिणाम दे पर पायेगा
 
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने पिछले दिनों जल उपकर आयोग का गठन किया है। इसमें एक अध्यक्ष और तीन सदस्य नियुक्त किये गये हैं। आयोग का अध्यक्ष जल शक्ति विभाग से सेवानिवृत्त हुये सचिव अमिताभ अवस्थी को लगाया है। अवस्थी कांगड़ा के धर्मशाला के रहने वाले हैं जबकि तीनों सदस्य जिला शिमला के रहने वाले हैं। इनमें से धरेला सेवानिवृत्त इंजीनियर है और जोगिन्दर कवंर तथा अरुण शर्मा राजनीतिक कार्यकर्ता है। अरुण शर्मा एक समय शिमला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन जोगिन्दर कंवर कांग्रेस के पिछले विधानसभा चुनावों में मुखर विरोधी रहे हैं। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष एवं विधायक कुलदीप राठौर के विरुद्ध उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी विजय पाल खाची का हर तरह से खुलकर समर्थन किया है। शिमला और अन्य स्थानों में पर भी उन्होंने चुनावों में भाजपा का खुलकर समर्थन किया है। जोगिन्दर कंवर कॉलेज और विश्वविद्यालय में शायद मुख्यमंत्री के निकट सहयोगी रहे हैं। वैसे जोगिन्दर कंवर एक अच्छे राजनीतिक कार्यकर्ता और भरोसेमंद मित्र माने जाते हैं। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस के अन्दर इस ताजपोशी से सवाल उठे हैं यदि समय रहते उन्हें शान्त न किया गया तो कभी भी एक बड़ा विस्फोट सरकार और संगठन के बीच हो सकता है। क्योंकि सुक्खू की सरकार पर मित्रों की सरकार होने का जो आरोप विपक्ष लगा रहा था वही आज कांग्रेस के अपने भीतर से भी उठने लग पड़ा है।
जल उपकर अधिनियम सुक्खू सरकार ने ही पारित किया है। लेकिन भारत सरकार ने इस अधिनियम को गैर कानूनी और असंवैधानिक करार देते हुये केन्द्र के स्वामित्व वाली जल विद्युत परियोजनाओं के प्रबंधन को बाकायदा पत्र भेजकर यह उपकर न देने और इसका पुरजोर विरोध करने का निर्देश दिया है। सरकार के मुताबिक कुछ प्राइवेट सैक्टर के उत्पादकों ने यह उपकर लागू करने पर सहमति जताई है। लेकिन कुछ उत्पादकों ने इस अधिनियम को उच्च न्यायालय में चुनौती भी दे रखी है और मामला अदालत के विचार अधीन है। इस अधिनियम को उच्च न्यायालय ने स्टे नहीं किया है इसीलिए सरकार जल उपकर आयोग का गठन कर पायी है। यदि उच्च न्यायालय इस अधिनियम के पक्ष में भी निर्णय देता है तो भी यह मामला अपील में सर्वाेच्च न्यायालय जायेगा। क्योंकि केन्द्र सरकार इसका विरोध कर रही है। जिन राज्यों ने ऐसा जल उपकर लगा रखा है वहां पर शायद केन्द्र के सीधे स्वामित्व वाली परियोजनाएं नहीं है। पंजाब और हरियाणा की सरकारें भी इस उपकर का विरोध कर रही हैं। अभी हिमाचल सरकार ने किसी भी जल विद्युत उत्पादक को जल उपकर के बिल नहीं भेजे हैं। माना जा रहा है कि यह उपकर देने वाली हिमाचल सरकार के स्वामित्व वाली परियोजनाएं ही न रह जायें। वैसे भी जल उपकर आयोग का दखल तो इस उपकर के तहत उत्पादक को दिये जाने वाले बिल और जल शक्ति विभाग के मध्य आये किसी विवाद पर ही शुरू होगा। ऐसे में इस उपकर के माध्यम से जो राजस्व जुटाने की योजना बनायी गयी थी उसे पूरा होने में लम्बा समय लगेगा। तब तक यह आयोग एक राजनीतिक बहस का विषय होकर ही रह जायेगा।
इस परिदृश्य में सरकार पर अपनो के ही जो आक्षेप आने शुरू हो गये हैं उनके परिणाम गंभीर होने की आशंका बढ़ती जा रही है। क्योंकि अब तक सरकार ने जितनी गैर विधायकों की ताजपोशीयां की हैं उनमें शायद 95ः से भी अधिक अकेले जिला शिमला से ही है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या जिला शिमला के बाहर कांग्रेस संगठन और कार्यकर्ता है ही नहीं? यह भी चर्चा है कि इतनी सारी ताजपोशीयां शिमला से ही करके यहां के चुने हुये विधायकों के खिलाफ भी समानान्तर सत्ता केन्द्र तो नहीं खड़े किये जा रहे हैं। क्योंकि लोगों को मुख्यमंत्री से काम करवाने के लिये यह सत्ता केन्द्र आसानी से उपलब्ध रहेंगे। इसी के माध्यम से लोगों का अपने मंत्रियों विधायकों के पास या हॉली लॉज जाना भी कम हो जायेगा। इस समय यह आरोप तो मंत्रियों से भी आने शुरू हो गये हैं कि मुख्यमंत्री की अप्रूवल के बाद भी सचिव और विभागाध्यक्ष के स्तर पर इनके काम नहीं हो रहे हैं। शायद सारे अधिकारी मुख्यमंत्री ने अपने ही पास केंद्रित कर रखे हैं।
यहां तक चर्चाएं चल पड़ी हैं कि कल तक जो विधायक आगामी मंत्रिमंडल विस्तार में जगह पाने के लिये प्रयास कर रहे थे अब वह भी मन्त्री बनने के ज्यादा इच्छुक नहीं रह गये हैं। माना जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच काफी तनावपूर्ण राजनीतिक स्थितियां बनेंगी। एक-एक सीट के लिये मारकाट होगी। भाजपा अभी से आक्रामक होती जा रही है। जबकि कांग्रेस के पास भाजपा के खिलाफ कुछ नहीं है। जो आरोप कल तक बतौर विपक्ष कांग्रेस भाजपा पर सदन के भीतर और बाहर हमले करती थी उन हमलों की धार इन आठ माह में बुरी तरह पूर्ण हो चुकी है क्योंकि सरकार व्यवस्था बदलने में लगी थी। इसी सूत्र के कारण आज भी कांग्रेस कार्यकर्ता स्वयं ही आश्वस्त नहीं हो पा रहा है कि सही में सत्ता बदल चुकी है। सरकार ने अपने आठ माह के कार्यकाल में अपनों से ज्यादा भाजपाइयों के हितों की रक्षा की है। शिमला कांग्रेस का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता था लेकिन अनुपात से अधिक ताजपोशीयों ने इस दुर्ग को भी अन्दर से खोखला कर दिया। इसका असर पूरे प्रदेश पर पढ़ने जा रहा है। क्योंकि जितना प्रतिनिधित्व अकेले शिमला को दे दिया गया उतना अन्य जिलों को दिया जाना संभव ही नहीं होगा। इसके परिणाम स्वरूप कल लोकसभा चुनावों में न विधायकों और न कार्यकर्ताओं के पास कुछ परोसने को होगा। हां यह माना जा रहा है की जोगिन्दर कंवर की ताजपोशी के बाद कांग्रेस के हर उस विद्रोही की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया है जिस पर चुनावों में पार्टी के साथ गद्दारी करने के आरोप लगे हैं।