शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के आठ माह के कार्यकाल में पावर कॉरपोरेशन की कार्य प्रणाली को लेकर दूसरा पत्र वायरल होकर चर्चा में आ गया है। यह पत्र सी.बी.आई. निदेशक के नाम लिखा गया है। पत्र में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। आरोपों की छाया मुख्यमंत्री तक आ रही है। पत्र लिखने वाले ने अपना नाम अनमोल सिंह ठाकुर बताते हुये स्वयं को इसी कॉरपोरेशन का सहायक प्रबंधक होने का दावा किया है। भ्रष्टाचार का आकार सैकड़ों करोड़ का कहा गया है। अपने आरोपों के साक्ष्य के रूप में इस पत्र के साथ 38 पन्नों के दस्तावेज भी संलग्न करने का दावा है। यह आरोप लगाने वाला अनमोल सिंह इसी कॉरपोरेशन का सहायक प्रबंधक है या नहीं इसकी कोई पुष्टि नहीं है। लेकिन इसको लेकर कॉरपोरेशन या सरकार की ओर से कोई अधिकारिक खंडन भी जारी नहीं हुआ है। लेकिन कॉरपोरेशन के सूत्रों का यह भी दावा है कि बिना आग के धुआं नहीं उठता। जब इसी कॉरपोरेशन को लेकर पहला पत्र बम्ब जारी हुआ था तब यह कहा गया था कि पत्र और उसमें दर्ज आरोपों की प्रमाणिकता सत्यापित करने के निर्देश जारी किये गये हैं। लेकिन इन निर्देशों का परिणाम क्या रहा है यह अब तक सामने नहीं आया है। वह पत्र प्रधानमंत्री को भेजा गया था और आरोपों पर सी.बी.आई. जांच की मांग की गयी थी। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी उस पत्र को सी.बी.आई. को सौंपने की मांग की थी। तब इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि जयराम जिससे चाहे जांच करवा लें। वह पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय से होकर सी.बी.आई. तक पहुंच गया था। क्योंकि पटेल इंजीनियरिंग कंपनी जम्मू-कश्मीर के प्रोजेक्ट के संदर्भ में पहले से ही सी.बी.आई. के राडार पर चल रही है। हिमाचल पॉवर कॉरपोरेशन भी आई.डी.बी.आई.आदि बैंकों के माध्यम से धन का जुगाड़ कर रही है। इन ऋणों के लिए केंद्र सरकार की गारन्टी रहती है। 90ः10 के अनुपात में मिलने वाले इन ऋणों के कारण केंद्रीय एजैन्सी सी.बी.आई. का दखल भी इस मामले पर बन जाता है। पावर कॉरपोरेशन को कुछ और जल विद्युत परियोजनाओं के निष्पादन का काम भी सरकार ने सौंप रखा है। इस परिदृश्य में यदि वर्तमान पत्र को देखा जाये तो यह भी संकेत उभरता है कि कहीं सी.बी.आई. ने पावर कॉरपोरेशन से कोई रिकॉर्ड तो तलब नहीं कर लिया है। कुछ सूत्रों का यह भी दावा है कि यह पत्र उसी कड़ी में है। इन पत्रों की जांच हो पाती है या नहीं? उस जांच का परिणाम क्या रहता है? क्या इन पत्रों और इन पर उठी जांच की मांग का कोई संबंध आने वाले लोकसभा चुनावों से भी निकलता है या नहीं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन कॉरपोरेशन को लेकर आये दोनों पत्रों की आंच का मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचना इसका निश्चित संकेत है कि मुख्यमंत्री को घेरने के लिए एक पुख्ता योजना पर काम हो रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री के अपने खिलाफ जो थ्प्त् का मामला अदालत में लंबित चल रहा है वह भी चुनावों में एक विषय बनेगा। इस परिदृश्य में लोकसभा चुनावों तक जो राजनीतिक घटनाक्रम उभरता नजर आ रहा है उसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं। क्योंकि लोकसभा जीतने के लिए भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है। इन पत्रों में मुख्यमंत्री के अपने कार्यालय पर छीटें आना और मुख्यमंत्री द्वारा कोई कारवाई न कर पाना अपने में बहुत कुछ कह जाता है।
यह है पत्र