यह तीन लाख एकड़ जमीन कहां है? सरकार इसका क्या कर रही है

Created on Monday, 02 October 2023 08:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश इस समय कठिन वित्तीय स्थिति से गुजर रहा है यह सरकार द्वारा राज्य विधानसभा के पटल पर रखे गये श्वेत पत्र से सामने आया है। इस वित्तीय स्थिति के परिदृश्य में प्रदेश की स्थिति श्रीलंका जैसे होने की आशंका भी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खु व्यक्त कर चुके हैं। अब प्रदेश में यह आपदा घट गयी है जिसमें करीब बारह हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है। केंद्र सरकार से आश्वासनो से अधिक कुछ मिल नहीं पाया है। प्रदेश सरकार अपने संसाधन बढ़ाने के लिये सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाने से अधिक कुछ सोच नहीं पा रही है। जबकि सरकार के पास तीन लाख एकड़ जमीन दो राजस्व भू अधिनियमों में हुये संशोधनों के माध्यम से आ चुकी है। लेकिन राज्य सरकार को यह जानकारी ही नहीं है कि उसकी यह जमीन है कहां पर। कहीं इस जमीन का लाभ कुछ अधिकारियों की मिली भगत से कुछ शातिर लोग ही तो नही उठा रहे हैं। क्योंकि जिस सरकार के पास तीन लाख एकड़ जमीन सरप्लस हो वह इतने बड़े कर्ज के चक्रव्यूह में कैसे फंस सकती है यह अपने में ही एक बड़ा सवाल बन जाता है।

स्मरणीय है कि देश की आजादी के बाद सरकार के पास सबसे बड़ा और प्रमुख सवाल भू-सुधारो का आया था। इन सुधारों के तहत 1953 में बड़ी जिमीदारी प्रथा उन्मूलन के लिये Abolition of Big Landed Estate Act.  लाया गया था। इस अधिनियम के तहत सौ रूपये या इससे भू-लगान देने वालों की सरप्लस जमीने सरकार के पास चली गयी थी। इसमें कई राजे, राणे और बड़े ज़िमीदार प्रभावित हुये थे। इसके बाद 1971 में प्रदेश में लैण्ड सीलिंग एक्ट आया। 1974 में पारित हुआ यह एक्ट 1973 से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत प्रदेश में कोई भी व्यक्ति 300 कनाल/161 बीघे से अधिक जमीन नहीं रख सकता। इन दोनों अधिनियमों के तहत हिमाचल सरकार के पास तीन लाख एकड़ जमीन आयी है। यह सरकार ने सर्वाेच्च न्यायालय में एक समय आयी याचिका में स्वीकार किया हुआ है। जबकि इस याचिका से पहले 1975 में आपातकाल के दौरान हर भूमिहीन को दस-दस कनाल जमीन दी गई थी। ऐसी जमीनों पर उगे पेड़ों की मलकियत भी इन लोगों को दे दी गयी थी। इस जमीन को बेचने का अधिकार इन लोगों को नहीं दिया गया था ताकि यह लोग फिर से भूमिहीन न हो जायें। इसलिए आज भी यदि कोई धारा 118 के तहत अनुमति लेकर जमीन खरीदता या बेचता है तो उसे यह लिखना पड़ता है कि वह उस जमीन को बेचकर भूमिहीन तो नहीं हो रहा है।

हिमाचल का हर राजा इन कानूनों के दायरे में आया हुआ है। लेकिन अब जब सुक्खु सरकार लैण्ड सीलिंग एक्ट में संशोधन लेकर आयी है तो स्वभाविक रूप से यह सवाल उठता है कि 1973 से लैण्ड सीलिंग अधिनियम लागू होने के बाद भी आज प्रदेश में किसी के पास भी तय सीमा से अधिक जमीन कैसे हो सकती है। निश्चित है कि यह संशोधन लाने पर सरकार ने इस दिशा में वांछित होमवर्क कर लिया होगा। क्योंकि शामलात जमीनें तो पंजाब और हिमाचल में एक अरसे से सरकार के पास चली गयी है। इन जमीनों को विलेज कॉमनलैण्ड कहा जाता है जिन्हें खरीदा या बेचा नहीं जा सकता। बल्कि सर्वाेच्च न्यायालय जनवरी 2011 में एक फैसले में यहां तक कह चुका है कि all though we have dismissed this appeal, it shall be listed before this court from time to time on dates (fixed by us) So that we can monitor implementation of our directions here in. List again before us on 3-5-2011 on which date all chief secretaries in India will submit their reports.

जगपाल सिंह एवं अन्य बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एवं अन्य मामला विलेज कॉमनलैंण्ड को लेकर था। कोर्ट के इस फैसले पर हिमाचल से भी रिपोर्ट गयी होगी और हिमाचल में भी विलेज कॉमन लैण्ड की खरीद बेच नहीं हो रही होगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के यह निर्देश प्रशासन के हर स्तर तक फील्ड में गये होंगे।
इस परिप्रेक्ष्य में यदि सरकार इस तीन लाख एकड़ जमीन को चिन्हित करके उसका सदुपयोग करती है तो उसे बढ़ते कर्ज से बाहर निकलने का रास्ता मिल जायेगा। लेकिन इवैक्यू प्रॉपर्टी के मामले की तरह नहीं जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार को जुर्माना लगाया है। कई जगह में ऐसी भी रिकॉर्ड पर रिपोर्ट है जहां विलेज कॉमन लैण्ड को अधिग्रहण करके सरकार प्राईवेट लोगों को सरकारी जमीन का ही मुआवजा दे रही है। जबकि यह जमीनें भूमिहीनों और एस सी, एस टी में बंटनी थी।