घातक होगा प्रतिभा सिंह की चिन्ता और चेतावनी को नजर अन्दाज करना
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Created on Wednesday, 25 October 2023 18:34
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने पिछले वर्ष दिसम्बर में प्रदेश की सत्ता संभाली थी उस समय केवल मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री का ही शपथ ग्रहण हुआ था। एक माह बाद जनवरी में मंत्रिमंडल का विस्तार और इसमें तीन मंत्री पद खाली छोड़ दिये गये थे। लेकिन इस विस्तार से पहले छः मुख्य संसदीय सचिवों को मुख्यमंत्री ने शपथ दिला दी। जब मुख्यमंत्री का चयन हुआ था तब सुक्खू के साथ ही मुकेश अगनिहोत्री और हौली लॉज से प्रतिभा सिंह का नाम भी दावेदारों के रूप में चर्चा में आया था। लेकिन उस समय यह चर्चा भी बाहर आ गयी थी कि 20-21 विधायकों ने हाई कमान के प्रतिनिधियों को यह संकेत दे दिया था कि यदि सुक्खू को मुख्यमंत्री न बनाया गया तो वह पार्टी से बगावत कर देंगे। उस समय इन चर्चाओं को ज्यादा अधिमान नहीं दिया गया था। क्योंकि कांग्रेस के विधायकों को उस समय प्रदेश से बाहर ले जाने या किसी स्थान पर ऑपरेशन कमल के डर से बंधक बनाकर रखने की नौबत नहीं आयी थी। उस समय भाजपा की ओर से प्रत्यक्ष ऐसा कोई आचरण भी नहीं किया गया जिससे यह लगता कि भाजपा कुछ गड़बड़ कर सकती है।
लेकिन सरकार बनने के बाद से लेकर आज तक कांग्रेस का संगठन और उसके वरिष्ठ कार्यकर्ता जिस नजरअन्दाजी के साये में चल रहे हैं वह अब कांग्रेस अध्यक्षा प्रतिभा सिंह की मुखरता के मुकाम पर आ पहुंची है। कार्यकर्ताओं की अनदेखी को वह राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे और अन्य के संज्ञान में कई बार ला चुकी है। प्रदेश में संगठन पूरी तरह निष्क्रिय चल रहा है। जिस तरह से मुख्यमंत्री ने कुछ गैर विधायकों की ताजपोशियां कर रखी हैं उससे यही संकेत और संदेश गया है कि जब सुक्खू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष एक कठिन राजनीतिक दौर से गुजर रहे थे उस समय जिन मित्रों ने उनका साथ दिया था इस समय वही लोग उनकी प्राथमिकता हैं। उस समय भी एक हस्ताक्षर अभियान चला था। एक एन.जी.ओ. के अध्यक्ष और सुक्खू में हुआ राजनीतिक टकराव अदालत तक भी जा पहुंचा था। बल्कि उसी दौरान जब सुक्खू ने भाजपा पर शिमला सोलन और बिलासपुर में 15 करोड़ की जमीन खरीदने का आरोप एक पत्रकार वार्ता में लगाया। लेकिन इस आरोप की डिटेल जारी होने से पहले ही हमीरपुर में विधायक विजय अग्निहोत्री, नरेन्द्र ठाकुर, जिला अध्यक्ष अनिल ठाकुर और महामंत्री राजेश ठाकुर व अजय शर्मा ने एक संयुक्त प्रेस ब्यान में सुक्खू के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगा दिये। लेकिन दोनों ओर से यह आरोप ब्यानों से आगे नहीं बढ़े।
राजनीतिक विश्लेष्कों की नजर में इस समय कांग्रेस संगठन और सरकार के रिश्ते जो आकार लेते नजर आ रहे हैं उनका आकलन करने के लिए पूर्व में घटित इन स्थितियों को संज्ञान में रखना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि विधायकों की शपथ से पहले ही प्रोटेम स्पीकर द्वारा जयराम को नेता प्रतिपक्ष बना देना और उसके बाद मंत्रिमंडल बनते ही एक दर्जन भाजपा विधायकों द्वारा मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को उच्च न्यायालय में चुनौती दिया जाना एक सुविचारित योजना का हिस्सा माना जा रहा है। क्योंकि जब पूर्व में ऐसी नियुक्तियों को उच्च न्यायालय पहले ही निरस्त कर चुका है और उस पर सर्वाेच्च न्यायालय जुलाई 2017 में ही अपनी मोहर लगा चुका है। यह सब संज्ञान में होने के बावजूद ऐसी नियुक्तियां का किया जाना ही अपने में कई सवालों और संदेहों को जन्म देता है। ऐसी राजनीतिक वस्तुस्थिति में संगठन और सरकार में आकार लेता टकराव गंभीर माना जा रहा है। क्योंकि विश्लेष्कों की नजर में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को अभी इन लोकसभा चुनावों के बाद अगले विधानसभा चुनाव में भी अप्रसांगिक नहीं किया जा सकता। अभी जो कुछ घट रहा है उससे इन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का रास्ता आसान नजर नहीं आ रहा है।