जब सचेतक नियुक्त ही नहीं तो सचेतकीय परिपत्र कौन जारी करेगा? क्रॉस वोटिंग का खतरा बढ़ा

Created on Saturday, 24 February 2024 17:07
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या 27 तारीख को होने जा रहे राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग होने जा रही है। यह सवाल इसलिये चर्चा में आया है क्योंकि 25 विधायकों वाली भाजपा ने राज्यसभा के लिये उम्मीदवार दिया है। भाजपा का उम्मीदवार पूर्व कांग्रेसी है। पार्टी छोड़ते समय वह कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष था। पूर्व मंत्री है और स्व. वीरभद्र सिंह के विश्वास पात्रों में रहा है। मुख्यमंत्री सुक्खू के साथ ही उसके संबंध जग जाहिर है। हर्ष महाजन की यह कांग्रेसी पृष्ठभूमि इस चुनाव में इसलिये महत्वपूर्ण हो जाती है कि कांग्रेस के इसी के उम्मीदवार देश के वरिष्ठ वकील सिंधवी प्रदेश से बाहर के हैं। इसी के साथ वह सुक्खू सरकार के वाटरसैस लगाने को चुनौती देने वाली कंपनियों के वकील हैं और यही कांग्रेस के लिये एक बड़ी हास्यस्पद स्थिति पैदा कर देती है। वाटरसैस लगाना सुक्खू सरकार का बड़ा फैसला है और इस फैसले का शीर्ष अदालत में विरोध करने वाले को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाना सरकार के हर फैसले पर सैद्धान्तिक प्रश्न चिन्ह खड़े कर देता है।
इस सैद्धान्तिक सुविधा के साथ यदि सरकार के गठन से लेकर अब तक की वस्तुस्थिति पर नजर डाली जाये तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की कथनी और करनी में दिन-रात का अन्तर रहा है। मंत्रिमण्डल के पहले विस्तार से पहले ही मुख्यमंत्री को छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां क्यों करनी पड़ी? यह मामला उच्च न्यायालय में भी पहुंचे चुका है लेकिन जनता में इसका जवाब नहीं आया है। प्रदेश की वित्तीय स्थिति को श्रीलंका जैसी बताने के साथ ही मुख्यमंत्री को एक दर्जन से अधिक गैर विधायकों को सलाहकारों आदि के रूप में ताजपोशियां क्यों देनी पड़ी? इन ताजपोशीयों के बाद सरकार को मित्रों की सरकार का तमगा क्यों मिला? मंत्रिमण्डल में क्षेत्रीय असन्तुलन दूसरे विस्तार के बाद भी बना हुआ है। पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ताओं का सरकार में उचित समायोजन न हो पाना लगातार मुद्दा बना हुआ है। इस आश्य की शिकायत हाईकमान तक पहुंची हुई है। बेरोजगारों के मुद्दे पर कांग्रेस के ही वरिष्ठ विधायक सरकार को खुला पत्र लिखने पर बाध्य हो गये हैं। कर्मचारियों के कई वर्ग धरने प्रदर्शनों तक पहुंच चुके हैं। गारंटीयां चुनावों में गले की फांस बनने जा रही है। लेकिन मुख्यमंत्री से लेकर हाईकमान तक इस लगातार बढ़ते रोष का संज्ञान नहीं ले रहा है। पार्टी में त्यागपत्रों की रणनीति अभिषेक राणा से शुरू होकर मण्डी के समस्त पदाधिकारी तक पहुंच गयी है और कहां रुकेगी यह आने वाला समय ही बतायेगा।
इस वस्तुस्थिति को लेकर पार्टी का हर बड़ा नेता चिन्तित है लेकिन मुख्यमंत्री पर किसी चीज का कोई असर नहीं है। वह अपने अपरिभाषित व्यवस्था परिवर्तन के जुमले को पकड़कर बैठे हुए हैं। ऐसे में जो लोग सही में प्रदेश और पार्टी की चिन्ता कर रहे हैं उनके सामने इस राज्यसभा चुनाव में अपने रोष को व्यवहारिक रूप से प्रकट करने के अतिरिक्त कोई विकल्प शेष नहीं बचा है। सरकार का बजट केवल कर्ज बढ़ाने वाला है इसमें बेरोजगारी और महंगाई से निपटने की कोई ठोस योजना नहीं है। ऐसे में हाईकमान को अपने रोष से व्यवहारिक रूप से अवगत करवाने के लिये इस चुनाव में क्रॉस वोटिंग ही एकमात्र विकल्प माना जा रहा है। क्रॉस वोटिंग से ऐसा करने वालों का कोई नुकसान नहीं हो रहा है। क्योंकि पार्टी अभी तक सचेतक नियुक्त नहीं कर पायी है। जब सचेतक है ही नहीं तो व्हिप कैसे जारी होगा? फिर जब व्हिप राष्ट्रपति चुनाव पर लागू नही होता है तो राज्यसभा सदस्य के चुनाव पर कैसे लागू होगा? व्हिप सदन की कार्यवाही पर लागू होता है। किसी विधेयक आदि के पारण में यह व्यवस्था लागू होती। क्योंकि सचेतक का प्रावधान संविधान में नहीं है और न ही सदन के नियमों में। जब 1992 में सचेतक का प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा था तब इसमें एक लाईन, दो लाईन और तीन लाईन के सचेतकीय परिपत्र की व्यवस्था की गयी थी। एक लाईन और दो लाईन के परिपत्र की उल्लंघना पर कोई कारवाई नही होती।
ऐसे में यह स्थिति बनी हुई है कि जब सचेतक नियुक्त ही नहीं है तो सचेतकीय परिपत्र कौन जारी करेगा? यदि पार्टी के नाराज विधायक बजट के भी विरोध में वोट कर देते हैं तब भी उनके खिलाफ कारवाई नही होगी। इस समय पार्टी जो ऐजैन्ट नियुक्त कर रही है वहां सचेतक की भूमिका नहीं निभा सकते। ऐजैन्ट केवल सदस्यता का सत्यापन कर सकता है वह वोट के लिये निर्देश जारी नहीं कर सकता। पार्टी जब मन्त्रियों को सचेतक बनाने का प्रयास करेगी तो अपरोक्ष में उसका अर्थ हो जाता है कि उसे मन्त्रियों पर भी भरोसा नहीं रहा है। मुख्यमंत्री ने एक समय स्वयं सचेतकों की नियुक्तियों को शायद लटकाया था और आज वही गले की फांस बन गया है। इसलिये यदि चुनावों में क्रॉस वोटिंग हो जाती है तो किसी के भी खिलाफ कारवाई नहीं हो सकती क्योंकि इससे सरकार नही गिरती।