शिमला/शैल। प्रदेश में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की संभानाओं पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। इस बार इन चर्चाओं को परिवहन मन्त्री जी एस बाली को केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के भाजपा में शामिल होने के लिये आये खुले निमन्त्रण ने जन्म दिया है। मजे की बात यह है कि इस निमन्त्रण पर बाली ने भी कोई प्रतिक्रिया नही दी है। कुछ दिनों से बाली और वीरभद्र के रिश्तों को लेेकर भी काफी चर्चाएं हैं। इन्ही चर्चाओं के बीच स्वास्थ्य मन्त्री ठाकुर कौल सिंह के विक्रमादित्य के प्रति आये बदलाव ने भी कई हल्कों में कई अटकलों को जन्म दे दिया है। यह संयोग है कि इन अटकलों के संकेत उभरने के बाद ही सीबीआई ने वीरभद्र सिंह से पूछताछ का दौर शुरू किया है। माना जा रहा है कि इस पूछताछ के दौर के शुरू होने के बाद शीघ्र ही इस संद्धर्भ में चालान अदालत में दायर होने की संभावना भी बढ़ जायेगी। जून के अन्त तक सीबीआई और ईडी की जांच प्रक्रिया भी पूरी हो जाने की उम्मीद है।
सीबीआई और ईडी की जांच में अब तक जो कुछ सामनें आ चुका है। उसके बाद यह तय है कि इन जांचोें के अन्तिम परिणाम स्वरूप जो चालान अदालत में जायेंगे उनपर चार्ज लगने की संभावनाएं पक्की हैं। चार्ज लगने के बाद कांगे्रस हाईकमान और स्वयं वीरभद्र पर भी नेतृत्व में बदलाव के लिये दवाब बढ़ जायेगा। यह वह स्थिति होगी जिसमें कांगे्रस विधायक दल के अन्दर भी हर रोज समीकरण बनने और बदलने शुरू हो जायेगे। वीरभद्र इस स्थिति में यदि विधानसभा भंग करवाकर समय से पहले ही चुनाव करवाने का प्रस्ताव रखेंगे तो शायद उनके प्रस्ताव को पूरा समर्थन नहीं मिल पायेगा। क्योंकि वीरभद्र के पास अब ऐसी ऐज और स्टेज नही बची है जिसमें एक बार फिर उनसे नेतृत्व की उम्मीद की जा सके। राजनीतिक विश्लेषक और सीबीआई तथा ईडी में चल रहे मामलों पर पैनी नजर रखने वाले आश्वस्त हैं कि अब इस प्रकरण में वीरभद्र और उनके सलाहकार जिस तरह की गल्तीयां कर चूके हैं उनको सामने रखते हुए उनके बच निकलने के रास्ते लगभग बन्द हो चुके हंै। जानकार मानते हैं ईडी मामलें में पूरे परिवार के साथ कुछ अन्य संबधियों के लिये भी कठिनाई खड़ी हो सकती है।
विश्लेषकों का मानना है किइस बार वीरभद्र की विजिलैन्स उनको वांच्छित परिणाम नहीं दे पायी है क्योंकि जिस स्तर पर धूमल के खिलाफ कारवाई शुरू की गयी थी उसके इस संद्धर्भ में अब तक ठोस परिणाम सामने आ जाने चाहिए थे। लेकिन इन मामलों में करोडों रूपये वकीलों को फीस देने के बाद भी परिणाम का शून्य रहना पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खडे़ करता है। इसमें भी सबसे हैरत वाली बात तो यह है कि वीरभद्र इन मामलों पर जितने ब्यान और दावे दागते रहे हैं उस अनुपात में उनकी नाक के नीचे जो कुछ पकता रहा उसे वह समझना तो दूर सूंघ भी नही पाये। जब सीबीआई और ईडी ने उनके खिलाफ मामले बनाये थे उन्हें तभी ही मुख्यमन्त्री की कुर्सी छोड़कर पार्टी की बागडोर अपने हाथ में ले लेनी चाहिए थी। क्योंकि इन मामलों में कहां क्या चूक हो चुकी है। इसके बारे में उनसे ज्यादा और कोई नही समझ सकता था। बल्कि इस मामले में जिस तरह से परिवार के सदस्यों की भूमिका सामने आ रही है उसे देखते हुए यह लगता है कि इन लोगों में भी राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी रही है। क्योंकि सलाहकारों के तो अपने अपने स्वार्थ थे जो कि वीरभद्र के सत्ता में रहने से ही पूरे होने थे। यदि उस समय मुख्यमन्त्री पद को छोड़कर पार्टी की अध्यक्षता संभाली होती तो उस समय राज्यसभा में जाने से भी कोई रोक नही पाता । राज्यसभा में छः वर्ष का कार्यकाल मिल जाता और इस अवधि में परिवार को भी प्रदेश की राजनीति में स्थापित कर पाते। लेकिन आज वीरभद्र के हाथ से यह सारे विकल्प निकल चुके हैं। अब केवल यह देखना वाकी है कि वह बदली परिस्थितियों में किस तरह का कदम उठाते हैं।
लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अब नेतृत्व परिवर्तन के सवाल को ज्यादा समय तक टाला नही जा सकेगा।