शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के मनीलाॅंडरिंग प्रकरण में गिरफ्तार उनके एल आई सी ऐजैन्ट आनन्द चौहान की न्यायिक हिरासत चार दिन के लिये और बढ़ा दी गयी है। अब उन्हें सात तारीख को फिर अदालत में पेश किया जायेगा। इस बार फिर ईडी ने इस मामले की जांच अभी तक पूरी न होने का तर्क अदालत में रखा है। ईडी ने इस मामले की जांच में 23 मार्च को करीब आठ करोड़ की चल-अचल संपत्ति अटैच की थी। इस संपत्ति में वीरभद्र, प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य और अपराजिता कुमारी के कुछ एफडीआर, एलआईसी पालिसियां और कुछ बैंक खातों के अतिरिक्त ग्रेटर कैलाश में प्रतिभा सिंह के नाम मकान शामिल है। 23 मार्च के आदेश में सारा कुछ एलआईसी पालिसीयों और संशोधित आयकर रिर्टनज तथा सेब बागीचे की आये के गिर्द ही है। इस आदेश में वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से जुडे प्रकरण की जांच अभी तक पूरी न होने का स्पष्ट उल्लेख है।
वक्कामुल्ला चन्द्र शेखर से करीब चार करोड़ का मुक्त ऋण लेने का खुलासा प्रतिभा सिंह के चुनाव शपथ पत्र से सामने आया है। इसी खुलासे के बाद वक्कामुल्ला की एक कंपनी से विक्रमादित्य की कंपनी के नाम भी ऋण लिया जाना सामने आया है। महरौली में फार्म हाऊस की खरीद भी इसी के बाद सामने आयी है और इस प्रकरण की जांच अब सूत्रों के मुताबिक लगभग पूरी हो चुकी है। पिछले दिनों जब आनन्द चौहान की जमानत याचिका खारिज हुई थी उस आदेश में भी जांच को लेकर खुलासे सामने आये हैं। करीब 28 पन्नो के इस आदेश के मुताबिक वक्कामुल्ला से जो ऋण लिया दिखाया गया है। उसकी प्रमाणिकता पर भी सन्देह है। ईडी के उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक यह सारा ऋण भी केवल कागजी कारवाई है और ऋण के माध्यम से इस धन का भी शोधन किया गया है। कुछ और स्थानों पर भी संपत्तियां होने की संभावना जताई गयी है। इस सबमें प्रतिभा सिंह और विक्रमादित्य सिंह की सक्रिय भूमिका से ही यह लाॅंडरिंग हुई है। इस लाॅंडरिंग में आनन्द चौहान तथा चन्द्र शेखर की भी भूमिका मानी जा रही है और इसी के स्पष्टीकरण के लिये इन सबको ईडी में तलब भी किया गया था। माना जा रहा है कि इस संद्धर्भ में भी एक और अटैचमैन्ट आर्डर जारी किया जा सकता है।
ईडी के प्रकरण के साथ ही सीबीआई की चार्जशीट का मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है और उसमें अन्ततः चालान दायर करने की अनुमति मिलेगी ही। इस चालान का ठोस आधार आनन्द चौहान और वीरभद्र सिंह के बीच 15.6.2008 को हस्ताक्षिरत हुआ एग्रीमैन्ट हैं। क्योंकि एक एग्रीमैन्ट विश्म्बर दास के साथ 17.6.2008 को होता है। दोनो अनुबन्धों की प्रमाणिकता संदिग्ध है तथा इनमें प्रयुक्त स्टांप पेपर तो नासिक प्रैस से आये ही बहुत बाद में हैं। अनुबन्धों को लेकर उठे यह सवाल ही पूरे प्रकरण की आपराधिक धुरी बन गये हैं। इन तथ्यों के आधार पर सीबीआई को चालान पेश करने की अनुमति मिलना तय माना जा रहा है। इस तरह वीरभद्र का यह सारा प्रकरण अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है। जंहा से कांग्रेस की राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय है क्योंकि इस प्रकरण में आरोप तय होने के साथ राजनीति में गर्माहट आ जायेगी।