960 मैगावाट की जंगी थोपन पवारी परियोजना अन्ततःअदानी को देने का रास्ता तैयार

Created on Tuesday, 27 September 2016 05:43
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। 960 मैगावाट की जंगी-थोपन पवारी हाईडल परियोजना का आवंटन एक बार फिर सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती बन गया है। क्योंकि रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर लि0 अचानक इससे पीछे हट गया है। जबकि रियांलय ने इसे हासिल करने के लिये 2009 से लेकर 2016 तक प्रदेश उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक एक लम्बी लड़ाई लड़ी है। रिलांयस क्यों पीछे हटा है और सरकार ने इसे पुनः विज्ञापित करने की बजाये इसे केन्द्र सरकार के उपक्रम को देने की संभावना तलाशने का फैसला क्यों लिया? यह सवाल प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में बेहद चर्चा का मुद्दा बन गया है। क्या प्रदेश की हाईडल नीति में फिर से परिवर्तन करने की आवश्कता आ गयी है? यह सवाल भी उठने लगा है क्योंकि वीरभद्र सरकार के इस कार्यकाल में हाईडल क्षेत्र में कोई भी बड़ा निवेशक नही आया है। इसी के साथ सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह बन गया है कि इस परियोजना को लेकर अब तक जो कुछ घट गया है उससे अदानी का आर्विट्रेशन के माध्यम से अपने 280 करोड़ वसूलने का रास्ता बड़े बाबूओं ने सरल तो नहीं कर दिया? क्योंकि परियोजना के पूरे घटनाक्रम पर नजर दौड़ाने से यह स्पष्ट हो जाता है।
स्मरणीय है कि छः हजार करोड़ की इस परियोजना के लिये 2006 में निविदायें आमन्त्रित की गयी थी। जो निविदायें आयी उनमें नीदरलैण्ड की कंपनी ब्रेकल एन वी की आफर सबसे बड़ी थी। रिलांयस इन्फ्रास्ट्रक्चर दूसरे स्थान पर थी और यह परियोजना ब्रेकल को दे दी गयी। परियोजना मिलने के बाद ब्रेकल को वान्च्छित अपफ्रन्ट प्रिमियम सरकार में जमा करवाना था जिसे वह कई नोटिस दिये जाने पर भी जमा नही करवा पाया। इसी बीच रिलांयस ने ब्रेकल के दस्तावेजों में कुछ कमीयां पाकर इस आवंटन को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी । रिलायंस की याचिका के साथ ही सरकार में भी ब्रेकल के दस्तावेजों और दावों की जांच शुरू हो गयी और ब्रेकल के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज करने की नौबत तक आ गयी । सरकार ने ब्रेकल को आवंटन रद्द करने तक का नोटिस थमा दिया। लेकिन इसी बीच ब्रेकल ने अदानी से 280 करोड़ लेकर सरकार में जमा करवा दिये। अदानी ने ब्रेकल को पैसे देने के बाद उसमें हिस्सेदार होने के लिये भी आवदेन कर दिया। सरकार ने सारे मामले की पड़ताल करने के लिये सरकार के वरिष्ठ सचिवों की एक कमेटी गठित कर दी और जब कमेटी ने ब्रेकल को अपना पक्ष रखने के लिये आमन्त्रित किया तो उस बैठक में अदानी के प्रतिनिधि भी शामिल हो गये। जबकि उस समय अदानी ब्रेकल का अधिकारिक सदस्य नही था। लेकिन सचिव कमेटी ने अदानी के प्रतिनिधियों की उपस्थिति पर कोई एतराज नही उठाया। सचिव कमेटी ने अपनी पड़ताल के बाद परियोजना को ब्रेकल को ही देने का निर्णय ले लिया। सरकार ने इस फैसले को मानते हुए ब्रेकल के पक्ष में आवंटन कर दिया।
सरकार के इस फैसले को रिलायंस ने फिर चुनौती दे दी। उच्च न्यायालय ने दो टूक फैसला दिया कि या तो यह परियोजना रिलायंस को दी जाये या इसकी फिर से बोली लगाई जाये। लेकिन सरकार ने फिर इसे ब्रेकल को ही देने का निर्णय लिया। रिलायंस ने इसे सर्वोच्च न्यायालय मे चुनौती दे दी। रिलायंस के बराबर ही ब्रेकल भी सर्वोच्च न्यायालय में चला गया। ब्रेकल के साथ ही अदानी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में एक अर्जी डालकर इसमें 280 करोड़ निवेश करने का पक्ष रख दिया। ब्रेकल और अदानी के सर्वोच्च न्यायालय में आने पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में यह कहा कि परियोजना में हुई देरी के लिये ब्रेकल को 2775 करोड़ के हर्जाने तथा अपफ्रन्ट मनी को जब्त करने का नोटिस दिया गया है। सरकार का यह स्टैण्ड सामने आने के बाद ब्रेकल ने अपनी याचिका वापिस ले ली। ब्रेकल के साथ ही अदानी की याचिका भी समाप्त हो गयी । लेकिन यह होने के बाद भी सरकार ने ना तो ब्रेकल से जुर्माने के 2775 करोड़ बसूलने के लिये और न ही अपफ्रन्ट मनी के 280 करोड़ जब्त करने के लिये कोई कदम उठाये।
ब्रेकल के सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आने के बाद रिलायंस और सरकार में फिर कुछ घटा और यह परियोजना रिलायंस को देने का फैसला हो गया। इस फैसले के बाद रिलायंस को इस आश्य का पत्र भी चला गया। रिलायंस ने इसे स्वीकार भी कर लिया और सरकार को पत्रा लिखकर परियोजना के लिये पर्यावरण से जुडी स्वीकृतियां भारत सरकार से हालिस करने का आग्रह भी कर दिया। इसके लिये रिलायंस को सर्वोच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस लेनी थी। इसमें सरकार ने भी रिलायंस के साथ मिलकर यह सयुंक्त आग्रह करना था। पहले सरकार रिलायंस के साथ मिलकर सयुंक्त आग्रह के लिये तैयार थी परन्तु बाद में मुकर गयी। पर्यावरण से जुडी स्वीकृतियां हासिल करने में भी रिलायंस की मदद करने से इन्कार कर दिया। जब ब्रेकल सर्वोच्च न्यायालय से बाहर आया तो उसके बाद अदानी ने अपने 280 करोड़ वापिस किये जाने के लिये भी सरकार को पत्र लिखे।ं इन पत्रों का असर यह हुआ कि जब रिलायंस को यह प्रौजैक्ट देने का फैसला लिया गया तो उसमें मान लिया गया कि रिलायंस से अपफ्रन्ट मनी मिलने पर अदानी का 280 करोड़ वापिस कर दिया जायेगा।
अब जब रिलायंस पीछे हट गया तो एक बार फिर अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने निदेशक एनर्जी और कुछ अन्य संबंधित विभागों को पत्र लिखकर यह राय मांगी कि क्या इस परियोजना को फिर से ब्रेकल को दिया जा सकता है या इसकी दोबारा बोली लगायी जाये या केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के किसी उपक्रम को दिया जाये। निदेशक पावर ने इसे केन्द्र सरकार के किसी उपक्रम के साथ संभावनाएं तलाशने का सुझाव दिया है। अब यह परियोजना किसे मिलती है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा लेकिन अब पत्र लिखकर ब्रेकल को लेकर राय मांगने के पीछे क्या मंशा है? क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रौजैक्ट के लिये ब्रेकल का अर्थ है अदानी। अदानी के दावे को कई बार रिकार्ड पर लाया जा चुका है। क्योंकि ब्रेकल ने अदानी से लेकर 280 करोड़ सरकार में जमा करवाये हैं। ब्रेकल ने अपनी वित्तिय स्थिति को लेकर जो दस्तावेज सौंपे थे उनकी प्रमाणिकता पहले ही संदिग्ध हो चुकी है अर्थात् ब्रेकल के पास अपने स्तर पर कोई पैसा नहीं है। अदानी ने ब्रेकल को 280 करोड़ दिया है यह कई बार रिकार्ड पर आ चुका है। कानून के जानकारो के मुताबिक इस सब से अदानी को आरविट्रेशन में राहत मिलने के पुख्ता आधार बन चुके है। वैसे भी यदि केन्द्र का कोई उपक्रम तैयार नही होता है तो फिर राज्य सरकार के उपक्रमों की बारी आती है। सरकार और उसके उपक्रमों की स्थिति वैसे ही अच्छी नही है। ऐसे में अन्ततः ब्रेकल-अदानी के पक्ष मे फैसला लेने का रास्ता आसान हो जाता है। क्योंकि जब सरकार को अदानी के 280 करोड़ वापिस करने की स्थिति आयेगी तो उस स्थिति में यह परियोजना ही अदानी को देने का फैसला लेना ही ज्यादा बेहतर विकल्प बन जाता है। वैसे भी पिछले दिनों मुख्यमन्त्री के एक निकटस्थ नौकरशाह और अदानी के बीच हुई बातचीत की रिकार्डिंग चर्चा में रह चुकी है। अब अतिरिक्त मुख्य सचिव पावर ने जिस तरीके से पत्र लिखकर ब्रेकल के बारे में राय पूछी है उससे भी यही संकेत उभरते हैं।