क्या वीरभद्र के मांग पत्र का परिणाम है 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा जाना

Created on Saturday, 22 October 2016 10:31
Written by Shail Samachar

शिमला। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह अपने खिलाफ चल रही सीबीआई और ईडी जांच के लिये पूर्व मुख्य मन्त्री प्रेम कुमार धूमल, उनके सांसद बेटे अनुराग ठाकुर तथा मोदी के वित्त मंत्री अरूण जेटली को लगातार कोसते आ रहे हैं। ऐसे में जब मोदी तीन जल विद्युत परियोजनाओं के लोकार्पण के लिये प्रदेश में आये तो यह स्वाभाविक था कि वह वीरभद्र के प्रति अक्रामकता अपनाते और उनके भ्रष्टाचार को एक बार फिर जनता के बीच उछालते। क्योंकि भाजपा के लिये चुनावी माहौल बनाने के लिये यह आवश्यक भी था और मोदी ने ऐसा किया भी। मोदी ने बिना नाम लिये वीरभद्र के भ्रष्टाचार पर निशाना साधा और साथ ही राज्य सरकार से 72 हजार करोड़ का हिसाब भी मांग लिया लेकिन वीरभद्र-मोदी और प्रदेश भाजपा नेतृत्व की इस चाल को पहले ही भांप चुके थे। इसी लिये लोकार्पण के अवसर पर वह मोदी के साथ रहे और उन्हें एक लम्बा चैड़ा मांग पत्र भी थमा दिया। अब वीरभद्र का मांग पत्र और मोदी द्वारा 72 हजार करोड़ का हिसाब मांगा जाना दोनो बराबर के मुद्दे हैं। अब आने वाले दिनों में पता चलेगा कि इन मुद्दों को कौन कितना समझता और उछालता है। 

हिमाचल जैसे प्रदेश को 72 करोड़ केन्द्र द्वारा दिया जाना एक बहुत बड़ी बात हैं इस रकम के खर्चे का हिसाब मांगा जाना भी स्वाभाविक और आवश्यक है। लेकिन इस हिसाब -किताब के बीच वीरभद्र ने मांग पत्र का जो तीर छोड़ा है उससे बचना प्रदेश भाजपा के लिये आसान नही होगा। इस मांग पत्र का समर्थन करना भाजपा के लिये एक कड़ी परीक्षा सिद्ध होगा। मांगपत्र के अनुसार यह मुद्दे उठायेे गये हैं।
1. 1000 करोड़ की विशेष श्रृतिपूर्ति अनुदानः अन्र्तराष्ट्रीय पर्यावरणीय आवश्यकताओं और अपेक्षाओं की अनुपालना के तहत सारे पर्वतीय क्षेत्रों में हरित कटान पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा हुआ हैं इस प्रतिबन्ध के कारण इन क्षेत्रों की आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इस नुकसान की प्रतिपूर्ति के आंकलन के लिये एक समय योजना आयोग ने वी के चुतवेर्दी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने सिफारिश की थी कि सकल बजटीय सहयोग का दो प्रतिशत इन प्रभावित पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष अनुदान दिया जाये। लेकिन इस कमेटी की सिफारिशों पर अब तक अमल नही हो सका है और अब वीरभद्र ने इस संद्धर्भ में मोदी से एक हजार करोड़ के विशेष अनुदान की मांग कर डाली है।
2. जल विद्युत परियोजनाओं को त्वरित प्रभाव से पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की जाये। वीरभद्र के मांगपत्र के अनुसार हिमाचल प्रदेश कुल भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत में वन क्षेत्र होने की शर्त को पूरा करता है। इस लिये प्रदेश की सभी लंबित जल विद्युत परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्वीकृतियां तुरन्त प्रभाव से प्रदान की जायें ।
3. शिमला हवाई अड्डे से व्यवसायिक उड़ाने शुरू की जाये। शिमला ही एक मात्रा ऐसा राजधानी शहर है जहां कोई भी हवाई सुविधा नही हैं अब यहां पर अधोसंरचनात्मक सुविधाओं का भी स्तरोन्यन किया गया है। इसलिये यहां से व्यवसायिक उड़ाने शीघ्र शुरू की जानी चाहिये।
4. सतलुज जल विद्युत निगम के पास फालतू बड़ी भूमि को राज्य सरकार को वापिस किया जाये। 1980 के दशक में इस निगम को कार्यालय एंव्म आवास काॅलोनी के निमार्ण के लिये जमीन दी गयी थी जो कि अब तक अनुपयोगी पड़ी हुई हैं और सरप्लस है। इसे राज्य सकरार को वापिस किया जाये ताकि इसे इंजीनियरिंग काॅलिज की स्थापना के लिये इस्तेमाल किया जा सके।
5. भाखंड़ा व्यास प्रबन्धन बोर्ड में पूर्ण कालिक सदस्य का दर्जा दिया जाये। क्यांेकि भाखंड़ा परियोजना के कारण 103425 एकड़ और व्यास परियोजना के कारण डैहर तथा पौंग बांध में 65563 एकड़ प्रदेश की कृषि भूमि जलमग्न हुई है। इसके अतिरिक्त 16 अगस्त 1983 को पत्र व्यवहार के दिशा निर्देशानुसार 19/20 जनवरी 1987 को हुई बोर्ड की 124वीं बैठक में हिमाचल को सहयोगी राज्य का दर्जा दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी 27.9.11 के अपने फैसले में हिमाचल की 7.19प्रतिशत की भागीदारी को स्वीकार किया है। लेकिन इन फैसलों पर अब तक अमल नही हो सका है। इस पर शीघ्र अमल करवाया जाये।
6. भाखंड़ा नंगल समझौता 1959 तथा 31 दिसम्बर 1998 के अन्र्तराष्ट्रीय समझौतों के अनुसार हिमाचल को सतलुज, रावी तथा व्यास से पानी का कोई आंवटन नही हुआ है । इन नदियों से हिमाचल के जल उपयोग अधिकारों को देखते हुए इन परियोजनाओं से लगते ग्रामीण क्षेत्रो की जलापूर्ति के लिये अनापति प्रमापत्र की आवश्यकता समाप्त की जाये।
7. हिमाचल प्रदेश राज्य ने पंजाब तथा हरियाणा राज्यों के विरूद्ध बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन में 3957 करोड़ रुपये के विद्युत एरियर दावों को 5 जुलाई 2011 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप प्रस्तुत किया था। भारत सरकार ने यद्यपि अलग से एनएफएल दरों की संस्तुति की थी, जो हिमाचल प्रदेश को मान्य नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के दावों को केवल राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटिड की दरों तक सीमित रखना न केवल घोर अन्याय है, बल्कि सहभागी राज्यों की भावनाओं के विरूद्व भी है क्योंकि एनएफएल की दरों को रियायती दरें माना जाता है तथा रियायती दरें कभी भी समझौते की दरें नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री को इस मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया गया।
8. एफसीएए 1980 के अंतर्गत प्रदेश को सड़कों के निर्माण के लिये वन भूमि के उपयोग के एवज में सीए तथा एनपीवी जमा करना होता है, जो अनिवार्य है। गत तीन वर्षों में प्रदेश ने विभिन्न प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की सड़कों के लिये सीए तथा एनपीवी के रूप में लगभग 60 करोड़ रुपये जमा किए हैं। निकट भविष्य में स्थिति और गंभीर होने वाली है, क्योंकि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत आने वाली लगभग सभी सड़कें वन क्षेत्र से गुजरती हैं। प्रदेश की कठिन वित्तीय स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री से आग्रह किया गया कि प्रदेश में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजनाओं की एनपीवी केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाए।
9. प्रधानमंत्री से भारत सरकार द्वारा एआईबीपी तथा एफएमपी के अंतर्गत पूर्व स्वीकृत योजनाओं के लिये धनराशि जारी करने का आग्रह किया गया। अधिकांश ऐसी परियोजनाओं के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा निजी संसाधनों से ही भारी धनराशि व्यय की जा चुकी है तथा इसका भुगतान करना केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा अभी भी शेष है।
10. मनरेगा के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश के लिये उपयोगी और अधिक गतिविधियों को शामिल किया जाए। भांग के पौधे हिमाचल प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर पर उगते हैं। यह एक गंभीर सामाजिक खतरा बन जाता है। प्रदेश सरकार ने आग्रह किया है भांग के पौधों को उखाड़ना भी मनरेगा की पात्र गतिविधि शामिल किया जाए। ग्रामीण विकास विभाग ने पहले ही 22 अगस्त, 2016 से 5 सितम्बर, 2016 तक भांग/अफीम उन्मूलन अभियान शुरू किया था तथा इस अभियान के अंतर्गत 2145.79 हेक्टेयर क्षेत्रा से भांग उखाड़ी गई।
11. प्रदेश में छोटे तथा मझौले किसानों द्वारा चाय की खेती की जाती है, न कि असम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों की तरह जहां बड़े किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं। मुख्यमंत्री ने आग्रह किया कि चाय बागानों के पुनर्जीवन को भी मनरेगा गतिविधि में शामिल किया जाए।
12. प्रदेश सरकार ने स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत हिमालयन सर्किट के तहत 100 करोड़ रुपये की परियोजनाऐं केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय को वित्त पोषण हेतु सौंपी हैं। मुख्यमंत्री ने हिमालयन सर्किट योजना के अंतर्गत धनराशि जारी करने के लिये भी केन्द्र सरकार से आग्रह किया।