नेतृत्व के प्रश्न पर भाजपा की चुप्पी घातक हो सकती है

Created on Tuesday, 24 January 2017 09:33
Written by Shail Samachar

 शिमला/बलदेव शर्मा
प्रदेश भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनावों के लिये पचास प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य घोषित किया है। लेकिन इस लक्ष्य की सफलता को लेकर अभी से प्रश्न चिन्ह लगने शुरू हो गये हैं। क्योंकि जब वीरभद्र सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर राज्यपाल को सरकार के खिलाफ आरोप पत्र सौंपा गया था उस समय कुछ कार्यकर्ताओं ने जो नारे प्रेम कुमार धूमल के पक्ष में लगाये थे उन पर प्रदेश अध्यक्ष को यह कहकर विराम लगवाना पडा कि इस अवसर पर व्यक्ति केन्द्रित नारे नही लगेंगे। अध्यक्ष के निर्देश पर यह नारे बाजी रूक तो गयी लेकिन कार्यकर्ताओं ने इस टोकने का बुरा मनाया। आरोप पत्र कार्यक्रम के कुछ दिनों बाद बद्दी में प्रदेश कार्य समिति की बैठक हुई। इस बैठक में रखे गये राजनीतिक प्रस्ताव में यह कहा गया कि जो आरोप पत्रा राजयपाल को सौंपा गया है उसे प्रदेश के हर घर तक ले जाया जायेगा। 2012 के विधान सभा चुनावों में पार्टी को सफलता क्यों नही मिल पायी थी इसका जिक्र भी इस बैठक में आया। कार्य समिति की इस बैठक में केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जगत प्रकाश नड्डा दिल्ली में व्यस्त होने के कारण शामिल नही हो सके थे। कार्यसमिति की बैठक के बाद पत्रकारों को ब्रीफ करने के लिये केवल प्रेम कुमार धूमल ही उपलब्ध रहे और इसमें सत्ती और शान्ता की गैर मौजूदगी को लेकर कार्यकर्ताओं में भी दबी जुबान में चर्चा रही है। इस कार्य समिति की बैठक के कुछ अरसे बाद यह खबर छप  गयी कि अभी  पांच राज्यों के चनावों के बाद नड्डा को प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष भी बना दिया जायेगा। इस समाचार में यह सन्देश देने का भी प्रयास किया गया है कि नड्डा प्रदेश के अगले मुख्यमन्त्री होंगे। पार्टी में आगे चलकर क्या घटता है इसका खुलासा तो आने वाला समय ही करेगा।  लेकिन इस समय भाजपा को ही कांग्रेस के विकल्प के रूप में प्रदेश में देखा जा रहा है। क्योंकि और कोई दल सामने है ही नही। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों के लिये भाजपा की गतिविधियों पर ही बारीक नजर रखना स्वाभाविक है।
भाजपा को कांग्रेस नही बल्कि वीरभद्र से सत्ता छीननी है। वीरभद्र भाजपा में केवल धूमल और उनके परिवार को ही  उठते-बैठते कोसते हैं। अपने खिलाफ चल रहे सीबीआई ईडी और आयकर मामलों के पीछे धूमल परिवार का ही हाथ मानते है। धूमल के अतिरिक्त शान्ता और नड्डा की तो वीरभद्र कभी-कभी तारीफ भी कर देते हैं। वीरभद्र का राजनीतिक व्यवहार इसका प्रमाण है कि वह केवल धूमल से ही आंतकित और आशंकित रहते हैं और यही धूमल की राजनीतिक ताकत बन जाता है। लेकिन कांग्रेस के मुकाबले भाजपा का हाईकमान बहुत ताकतवर है वहां वीरभद्र की तरह आंख दिखाकर हाईकमान को चुप नही करवाया जा सकता। इस परिदृष्य में राजनीतिक वस्तुस्थिति का आकलन करते हुए जो सवाल उभरतेे है वह महत्वपूर्ण हैं। शिमला प्रदेश की राजधानी है और सरकार के हर सही/गलत कार्य की पहली जानकारी यहीं पर सुगमता से जुटायी जा सकती है जिस पर तुरन्त राजनीतिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता  रहती है। लेकिन यह पहली बार हुआ है कि शिमला में भाजपा का मुख्यालय होते हुए भी यहां पर पार्टी का कोई प्रवक्ता मौजूद नही है। वीरभद्र अपने  खिलाफ चल रहे मामलों को धूमल जेटली और अनुराग का षडयंत्र करार देते आ रहे हंै लेकिन प्रदेश भाजपा एक लम्बे अरसे से इस मोर्चे पर खामोशी ओढ़कर बैठी हुई है। अभी भाजपा ने सरकार के खिलाफ एक लम्बा-चैड़ा आरोप पत्र राज्यपाल को सौंपा है। इस आरोप पत्र को घर-घर तक पहुंचाने का राजनीतिक प्रस्ताव भी पारित किया है। लेकिन व्यवहारिक रूप से आरोप पत्र सौंपने के बाद भाजपा के किसी भी नेता ने इसमें दर्ज आरोपों पर मुंह नही खोला है जबकि वीरभद्र ने आरोप पत्र को कूड़दाने में फैंकने लायक करार दिया है। भाजपा ने इससे पहले भी आरोप पत्र सौंपे हंै जिन्हे सांैपने के बाद स्वयं ही भूल गयी है। इससे अब भी यही लगता है कि इस आरोप पत्र को लेकर भी केवल एक राजनीतिक रस्म की ही अदायगी मात्र की गयी है और इसमें दर्ज आरोपों के प्रति कोई ईमानदारी और गंभीरता नही है।
 भाजपा के भीतर अंगडाई लेते नये समीकरणों की गन्ध को सूंघते ही वीरभद्र ने धर्मशाला को प्रदेश की दूसरी राजधानी घोषित कर एक राजनीतिक मुद्दा बसह के लिये उछाल दिया है। भाजपा इस मुद्दे पर अभी तक कोई बड़ी प्रतिक्रिया जारी नही कर पायी है। जबकि वीरभद्र अब इसे आगे बढ़ाने में लग गये हैं। एक हजार करोड़ का कर्ज संभवतः इसी मुद्दे को सामने रखकर लिया जा रहा है। वीरभद्र दूसरी राजधानी के मुद्दे को इतना विस्तार देने का प्रयास करेगें ताकि और उठने वाले मुद्देे इसके आगे गौण हो जायें। वह 2017 का चुनाव इसी मुद्दे के गिर्द केन्द्रित करना चाहते हैं। वीरभद्र ने इस पर अपनी चाल चल दी है। भाजपा इसका कारगर जवाब देने की बजाये अगले नेतृत्व के प्रश्न पर ही ऐसे उलझने जा रही है जिससे समय रहते बाहर निकल पाना आसान नही होगा। क्योंकि नड्डा के अध्यक्ष बनाये जाने के प्रचार पर अभी तक किसी की भी कोई अधिकारिक प्रतिक्रिया या खण्डन नही आया है। नड्डा का नाम ऐसे वक्त पर प्रचारित और प्रसारित हुआ है कि यदि समय रहते यह स्थिति स्पष्ट न हो पायी तो इससे राजनीतिक नुकसान होना तय है। भाजपा के भीतर उभरती इस असमंजस्ता से पार्टी के घोषित चुनावी लक्ष्य की सफलता पर अभी से प्रश्न चिन्ह लगने स्वाभाविक हैं। क्योंकि पिछले दिनों नड्डा के स्वास्थ्य मन्त्रालय के प्रबन्धन पर भी गंभीर सवाल उठे चुके हैं। संजीव चतुर्वेदी ने जो सवाल उठाये थेे उनका अभी तक कोई जवाब नही आ पाया है इस मुद्दे की संसद तक में उठने की संभावना बन चुकी है। ऐसे में नेतृत्व के लिये नड्डा का नाम उछलने के बाद तो आवश्यक हो जाता है कि इस संद्धर्भ में जल्द-जल्द स्थिति स्पष्ट हो ।