रामदेव प्रकरण में वीरभद्र का यू टर्न क्यों?

Created on Monday, 20 February 2017 14:57
Written by Shail Samachar

शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सिंह ने शासनकाल के अन्तिम वर्ष में योग गुरू रामदेव के भूमि प्रकरण में यू-ट्रन लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कांे में एक चर्चा को जन्म दिया है जिसका प्रभाव दूरगामी होगा। क्योंकि 2012 के चुनावों से पूर्व जब वीरभद्र ने प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभाला था उस समय धमूल शासन के खिलाफ एक ही बड़ा आरोप ‘हिमाचल आॅन सेल’ का लगाया गया था। आरोप था कि हिमाचल गैर हिमाचलीयों को बेचा जा रहा है क्योंकि प्रदेश के भू- सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत गैर हिमाचली और गैर कृषक प्रदेश में सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जमीन नहीं खरीद सकते। इस अधिनियम के तहत बने नियम 38 -। के मुताबिक गैर कृषक और गैर हिमाचली सरकार की अुनमति के साथ भी आवास के लिये 500 वर्ग मीटर और दूकान/उद्योग आदि के लिये 300 वर्ग मीटर से अधिक की, खरीद नही कर सकते। इस अधिनियम में 1988 और 1994 में हुए संशोधन में भी नियम 38-। में कोई बदलाव नही लाया गया था। इससे अधिक जमीन केवल जनहित में ही खरीदी जा सकती है अन्यथा नही। धूमल शासन में बाबा रामदेव के ट्रस्ट पतंाजलि योगपीठ के नाम पर सोलन के कल्होग में 96.2 बीघा जमीन खरीद की अनुमति दी गयी थी। लेकिन इस अनुमति के तहत 17,81,214 रूपये मंे जो 96.2 बीघा जमीन खरीदी गयी वह राजस्व दस्तावेजों के अनुसार आचार्य बाल कृष्ण के नाम है न कि पतंाजलि योगपीठ के।क्योंकि इसमें बालकृष्ण खरीददार हैं और उनका पता पतंाजलि योगपीठ है यदि खरीददार पतांजलि योगपीठ होता तो उसमें बालकृष्ण का नाम पतांजलि योगपीठ द्वारा बालकृष्ण आना चाहिये था जो कि ऐसा है नही। शैल ने 6 जून 2011 के अंक में दस्तावेजों सहित यह प्रकरण पाठकों के सामने रखा था।
वीरभद्र सरकार ने इसी आधार पर 2013 में इस खरीद को रद्द किया और फिर संबधित अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला तक दर्ज किया गया जो कि अभी तक लंबित है। पतांजलि योगपीठ ने सरकार द्वारा इस खरीद को रद्द किये जाने को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है। यह मामला भी उच्च न्यायालय में लंबित है यह पूरा मामला इसी स्थिति में बना हुआ है। ऐसे में अचानक वीरभद्र द्वारा इस मामले में यू टर्न लेना स्वाभाविक रूप से सवाल खडे़ करेगा ही। इस मामले में सरकार के दो मन्त्रिायों ने भी यू टर्न लिये जाने का विरोध किया है। क्योंकि इस यू टर्न से यह स्थापित होता है कि वीरभद्र सरकार ने धूमल शासन में घटे जिन भी मामलों में कारवाई की है वह सब राजनीति से प्रेरित रही हैं। वीरभद्र सरकार बदले की भावना से कार्य करती रही है। वीरभद्र सरकार हिमाचल आॅन सेल के एक भी आरोप को अब तक प्रमाणित नही कर पायी है ऐसे में शासन काल के इस अन्तिम वर्ष में इस तरह का यू टर्न लेना आने वाले चुनावों में कांग्रेस की सेहत के लिये किसी भी गणित से लाभदायक सिद्ध नहीं हो सकता है। यह तय है। क्योंकि वीरभद्र सरकार जब यह जमीन रामदेव को वापिस देने के लिये तैयार हो गई है उसने मन्त्रिमण्डल की बैठक में इस आश्य का फैसला ले लिया है तो इसका अर्थ होता है कि धूमल शासन ने इसमें कुछ भी गलत नही किया था। क्यांेकि हर्बल गार्डन की स्थापना को जनहित करार दिया जा सकता है। फिर जिन अधिकारियों के खिलाफ इस संद्धर्भ में मामला दर्ज किया गया है अब वह सरकार के खिलाफ प्रताड़ना और उत्पीड़न का मामला दर्ज कर सकते हैं। जिन अधिकारियों ने इस खरीद को रद्द करने की संस्तुति की है उनके खिलाफ भी ट्रस्ट के उत्पीड़न का मामला बनता है। वीरभद्र के इस यू-टर्न से यह सारे पक्ष जुड़े हुए हैं।
अब यह सवाल उठता है कि जब इस फैसले से जुड़े अधिकारियों के खिलाफ मामला बन सकता है और कांग्रेस को भी चुनावों में इससे कोई लाभ नही मिलेगा तो फिर वीरभद्र ने इन सारे तथ्यों को नजर अन्दाज करके ऐसा फैसला क्यों लिया जिसमें कुछ मन्त्री भी सहमत नही रहे हांे। क्या इसमें सबसे हटकर वीरभद्र का कोई और बड़ा हित छिपा है। सचिवालय के गलियारों में फैली चर्चा के अनुसार इस यू ट्रन के लिये वीरभद्र के खिलाफ चल रहे सीबीआई, ईडी और आयकर के मामलों को आधार बनाया गया है। चर्चा है कि पिछले दिनों प्रदेश के पुलिस प्रमुख को बदलने और उनके स्थान पर नये व्यक्ति को लाने का जो ताना बाना बुना गया था उसमें यह परोसा गया था कि नया व्यक्ति बाबा रामदेव के निकट है और उसकी निकटता का लाभ उठाकर उसके माध्यम से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंचा जा सकता है। चर्चा है कि इसमें ऐसे पत्राकारों ने भी भूमिका अदा की है जो कि राजभवन के भी निकट हैं। संयोगवश जब पुलिस प्रमुख को बदलने की चर्चा उठी उसी दौरान बाबा रामदेव के प्रसंग मंे भी कारवाई शुरू हुई जो कि मन्त्रिमण्डल के फैसले तक पहुंच गयी। अब रामदेव के मामले में तो सरकार अन्तिम बिन्दु तक पहुंच गयी है। यदि अब सरकार इससे पीछे हटना चाहे तो भी नहीं हट पायेगी। क्योंकि सरकार के फैसले का रामदेव को अदालत में लाभ मिल जायेगा। लेकिन क्या इस सारी यू टर्न से वीरभद्र का नरेन्द्र मोदी से मिलना संभव हो पायेगा? जिस स्टेज पर वीरभद्र के मामले पहुंच चुके हंै वहां क्या इन मामलों को अब खत्म किया जा सकेगा।