शिमला/बलदेव शर्मा सर्वोच्च न्यायालय ने धर्मशाला पुलिस द्वारा धारा 447 के तहत अनुराग ठाकुर और विशाल मरबाहा के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है। हिमाचल सरकार इस मामलें में अपील में सुप्रीम कोर्ट गयी थी इस एफआईआर का रद्द होना निश्चित रूप से अनुराग ठाकुर के लिये एक बड़ी राहत और सफलता है। जबकि सरकार के लिये यह एक करारा झटका है क्योंकि प्रदेश उच्च न्यायालय ने ही इसे एक कमजोर और ज़बरदस्ती बनाया गया मामला करार दिया था। लेकिन वीरभद्र के सलाहकारों ने इस पर सर्वोच्च न्यायालय में जाने का फैसला लिया और वहां हार का मुंह देखा। इसी तरह का परिणाम ए.एन. शर्मा मामलें में रहा है। लेकिन अब जब इस एफआईआर के रद्द होने की खबरें छपी तो यह संदेश गया कि एचपीसीए के खिलाफ विजिलैन्स के जिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल स्टे कर रखा है उसे रद्द कर दिया गया है। इन खबरों से परेशान होकर सरकार ने एक प्रैस नोट जारी करके स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि विजिलैन्स वाला मामला अब तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है और 29 मार्च को लगा है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया है कि विजिलैन्स के दो अन्य मामले भी एचपीसीए के खिलाफ अभी तक लंबित है।
स्मरणीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने एचपीसीए के जिस मामले पर ट्रायल स्टे किया हुआ है उसका सोसायटी से कंपनी बनाये जाने वाला मूल प्रकरण अभी तक आरसीएस और प्रदेश होईकोर्ट के बीच लंबित है। धर्मशाला में एक भूमिहीन प्रेमु की जमीन खरीदने का जो मामला अनुराग और अरूण के खिलाफ दर्ज हुआ था उसमें एसडीएम की रिपोर्ट काफी अरसा पहले आ चुकी है। उसमें एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट में इसे उच्च न्यायालय में उठाये जाने की संस्तुति की है। लेकिन वीरभद्र के सलाहकार इस मामले में अब तक उच्च न्यायालय नही गये है। आज यह चुनावी वर्ष है और राजनीतिक तथा प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा बनी हुई है कि प्रदेश विधान सभा के चूनाव मई-जून में हो सकते है। यह चर्चा कितनी ठीक निकलती है इसका पता तो आने वाले समय मे ही लगेगा। लेकिन इस चर्चा का यह लाभ अवश्य होगा कि वीरभद्र का प्रशासन और विजिलैन्स एचपीसीए और धमूल के कथित संपति मामलों में आने वाले समय में कुछ ठोस नही कर पायेंगे। भाजपा और धूमल के लिये यह स्थिति लाभदायक मानी जा रही है।
स्मरणीय है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में भी भ्रष्टाचार केन्द्रिय मुद्दा बना था। इस बार भी भ्रष्टाचार के नाम पर ही चुनाव लड़ा जायेगा। क्योंकि विकास के नाम पर हर चुनाव क्षेत्रा में इस कार्यकाल में वीरभद्र सिंह ने जितनी भी घोषणाएं की है वह सब पूरी नही हुई हैं। बल्कि अधिकांश तो केवल कोरी घोषणाएं होकर ही रह गयी है। फील्ड में हर कार्यालय में कर्मचारीयों के कई-कई स्थान रिक्त चले हुए है। जितने नये स्कूल खोलने की घोषणाएं हुई है उससे अधिक तो बन्द करने के आदेश जारी हो चुके हैं। ऐसे मे विकास के नाम पर वीरभद्र को वोट मांगना आसान नहीं होगा। इस परिदृश्य में यदि भाजपा वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को केन्द्रिय चुनावी मुद्दा बनाने में सफल हो जाती है तो कांग्रेस के पास इसका कोई जबाव नही होगा। लेकिन भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों पर अब तक सीबीआई और ईडी ने वीरभद्र को घेरा है वह आज ऐसे मोड़ पर आकर रूक गये है कि उनसे भाजपा को लाभ मिलने की बजाये नुकसान होने का खतरा बन गया है। क्योंकि सीबीआई के मामले में भले ही दिल्ली उच्च न्यायालय में फैसला रिर्जव चल रहा है लेकिन ईडी की शेष बची जांच का अब तक पूरा न होना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। ईडी ने आधी जांच करके आनन्द चैहान के संद्धर्भ में तो उसे गिरफ्रतार करके चालान भी ट्रायल कोर्ट में पहुंचा दिया है लेकिन सब जानते हैं कि इसमें आनन्द ही अन्तिम लाभार्थी नही है। आनन्द को जमानत न मिल पाने पर जन सहानुभूति उसके पक्ष में होती जा रही है। ईडी को अपनी शेष बची जांच को पूरा करने के लिये किसी अदालत से कोई रोक नही है। फिर ईडी में मनीलाॅंडरिंग के मामलों में जांच को जल्द से जल्द पूरा करवाने की जिम्मदारी तो जेटली के वित्त विभाग की है।
सीबीआई ने हिमाचल उच्च न्यायालय से मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में ट्रांसफर करवाने में जो कदम उठाये थे उससे यह मामला सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका को फजीहत से बचाने की टिप्पणी के साथ ट्रंासफर कर दिया था। फिर सीबीआई ने जब चालान की अनुमति के लिये आग्रह रखा तब दैनिक आधार पर इसकी सुनवाई हुई। लेकिन आज दो माह से अधिक समय से इसमें फैसला रिजर्व चल रहा है। इस रिजर्व फैसले को शीघ्र घोषित करवाने के लिये अब तक सीबीआई द्वारा कोई कदम ना उठाये जाने के कारण पूरा परिदृश्य बदलता नज़र आ रहा है। रिजर्व फैसला कितनी देर में घोषित हो जाना चाहिये इसको लंकर कानून में कुछ स्पष्ट नहीं है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इस संद्धर्भ में 1976 से लेकर अब तक कई बार दिशा निर्देश जारी कर चुका है। आर सी शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया, अनिल राय बनाम बिहार सरकार और बी. के. शर्मा बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया मामलों में इस संद्धर्भ में निर्देश आ चुके हैं। जस्टिस गांगूली ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 60 दिनों के भीतर रिजर्व फैसला घोषित हो जाना चाहिये। यदि इस मामले में शीघ्र फैसला नहीं आता है और इसकी पुनः सुनवाई स्थिति आ जाती है तो भ्रष्टाचार को केन्द्रिय मुद्दा बनाने के भाजपा के सारे प्रयासों पर पानी फिर जायेगा और यह भाजपा के लिये सबसे ज्यादा नुकसानदेह होगा।