शिमला/शैल। विधानसभा चुनावों के लिये प्रदेश के दोनों बड़े दल अभी तक अपने-अपने उम्मीदवारों की अधिकृत सूची जारी नहीं कर पाये हैं। बल्कि भाजपा ने प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह और अन्य बड़े नेताओं के दौरों से जो हवा पार्टी के हक में खड़ी थी वह हवा भी अब थम सी गयी है। क्योंकि इन बड़े नेताओं के दौरों से जहां हवा बनी थी वहीं पर उसी के साथ चुनावों में पार्टी टिकट पाने की इच्छ भी बहुत सारे कार्यकर्ताओं में स्वभाविक रूप से आ गयी। क्योंकि अधिकांश कार्यकर्ता अभी भी पार्टी को उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश केे आईने से ही देख रहे हैं। जबकि आज नोटबंदी जीएसटी तेल की कीमतें और रसोई गैस की कीमत बढ़ने से देश के अन्दर उभर रहे असन्तोष पर भाजपा के अपने ही बडे नेताओं यशवन्त सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरूण शौरी जैसे पूर्व मन्त्री मोदी सरकार की नीतियों पर खुलकर हमला बोलने लग गये हैं। इन हमलों से आम आदमी भी व्यवहारिकता से इस पर सोचने और समझने के लिये विवश हो गया है। पंजाब के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा का करीब दो लाख मतों से हारना इसी का संकेत है कि अब ‘‘मोदी लहर ’’ नाम की चीज फील्ड में नही रह गयी है।
लेकिन प्रदेश से लेकर दिल्ली तक भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी भी इस धरातल की स्थिति को समझने से इन्कार कर रहा है। हिमाचल में मुख्यमन्त्री नामित किये बिना चुनाव में उतरने के फैसले पर कायम है। चुनाव टिकटों के लिये उम्मीदवारों से आवेदन मांगने की बजाये मण्डल स्तर सेे लेकर प्रदेश स्तर तक सभी को यह निर्देश रहेे हैं कि केन्द्रिय समिति को केवल तीन-तीन नाम उम्मीदवारों के भेजे जायें। लेकिन संगठन के इन स्तरों से हटकर भी संघ परिवार की कुछ इकाईयों के माध्यम से कुछ सर्वे रिपोर्ट भी केन्द्रिय समिति तक पहुची हुई है। इन सारी सर्वे रिपोर्टों और संगठनों के माध्यम से आये नामों के बाद केन्द्रिय समिति को किसी एक नाम पर फैसला ले पाना कठिन हो गया है। यह पूरी स्थिति इतनी जटिल हो गयी है कि लगभग हर चुनाव क्षेत्र में विद्रोह की स्थितियां पैदा हो गई है जो कार्यकर्ता कल तक चुनाव अभियान में व्यस्त हो गया था वह अब उसेे स्थगित करके प्रत्याशीयों की घोषणा का इन्तजार करने बैठ गया है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को जो यह भरोसा था कि अनुशासन के नाम पर कार्यकर्ता उसके हर फैसले को आॅंख बन्द करके स्वीकार कर लेगा, वह अब खण्डित होता जा रहा है। मण्डी सदर के मण्डल द्वारा सुखराम परिवार के भाजपा में शामिल होने और अनिल शर्मा को टिकट दिये जाने के फैसलेे पर सामुहिक त्यागपत्र देने का फैसला लिया जाना इसका स्पष्ट उदाहरण है।
प्रदेश भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक लम्बे अरसे से वीरभद्र सरकार के गिरनेे और कांग्रेस के कई नेताओं के संपर्क में होेनेे के दावे करता आया है। आज सुखराम परिवार के भाजपा में शामिल होने केे साथ ही जीएस बाली और राजेश धर्माणी जैसेे नेताओं के भी भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं का उठना उसी दावेे का हिस्सा हो सकता है। लेकिन उस समय कांग्रेस के इन नेताओं के आने से वीरभद्र की सरकार गिरती थी और वह भाजपा की एक बड़ी सफलता होती। लेकिन आज कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल करना और उन्हें टिकट देना भाजपा की कमजोरी माना जायेगा। क्योंकि इस समय सरकार को गिराने के लिये जनता में नही जाया जा रहा है। बल्कि सरकार बनाने के लिये जनता का मत लिया जाना है। यदि आज भी इस मत के लिये कांग्रेस नेताओं का सहारा चाहिये तो क्या यह अपने आप में ही मोदी सरकार की नीतियों की जन स्वीकार्यता पर प्रश्नचिन्ह नही बन जायेगा। यह सही है कि आज से पूर्व जब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है तब कांग्रेस में किसी न किसी कारण से हुई तोड़फोड़ इसमें सहायक रही है। लेकिन उस समय केन्द्र में भाजपा की ऐसे प्रचण्ड बहुमत वाली सरकारें नही होती थी। परन्तु आज स्थिति भिन्न है। केन्द्र में सरकार है जो देश को कांग्रेस मुक्त करने का संकल्प लेकर बैठी है। लेकिन इस संकल्प को पूरा करने के लिये कांग्रेस के अन्दर तोड़फोड़ करके इसे हासिल करना कतई संभव नही हो पायेगा। क्योंकि जिन नेताओं को भाजपा में शामिल करवाया जा रहा उनके खिलाफ कभी स्वयं ही गंभीर आरोप लगा चुकी है। इस परिदृश्य में कांग्रेस नेताओं को भाजपा में शामिल करने को शीर्ष नेतृत्व में गंभीर मतभेद उभर चुके है। बल्कि सूत्रों के मुताबिक इन्ही मतभेदों के कारण पार्टी अभी तक उम्मीदवारो की अधिकृत सूची जारी नही कर पायी है। इन्ही मतभेदों के कारण वरिष्ठ नेता दिल्ली से अपने-अपने क्षेत्रों में वापिस आ चुके हैं। यह भी माना जा रहा है कि केन्द्र की सूची आने से पूर्व ही बहुत सारे संभावित उम्मीदवार नामांकन करने और इस माध्यम से नामाकंन के समय अपनी ताकत का प्रदर्शन करने की रणनीति अपनाने जा रहे हैं। धर्मशाला में पूर्व मन्त्री किशन कूपर द्वारा अपने समर्थकों का प्रदर्शन किया जाना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। जो हालात भाजपा में बनते जा रहे हैं वह एक विद्रोह का संकेत बनते जा रहे हैं और माना जा रहा है कि इस संभावित विद्रोह को नियन्त्रण मेे रखने के लिये पार्टी को नेता की घोषणा करने की बाध्यता आ सकती है।