नौ वर्षों में 35,000 करोड़ डकार चुके उद्योगों के लिये फिर मांगी गयी राहतें

Created on Tuesday, 23 January 2018 05:40
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कैग रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल के उद्योगों को 2009 से 2014 के बीच 35000 करोड़ की विभिन्न करों में राहत मिल चुकी है लेकिन इस राहत के बावजूद यह उद्योग प्रदेश के युवाओं को वांच्छित रोज़गार नही दे पाये हैं। 35000 करोड़ का यह आंकड़ा सरकारी फाईलों में दर्ज रिटर्नज़ पर आधारित है। यह दावा है केन्द्र के वित्त विभाग का जिसे प्रदेश की अफसरशाही मानने को तैयार नही हैं लेकिन कैग में दर्ज इस रिपोर्ट को प्रदेश के यह बड़े बाबू खारिज भी नही कर पाये हैं। 2017 में उद्योग विभाग ने प्रदेश में पंजीकृत छोटे बडे़ उद्योगों, उनमें हुए निवेश और इनमे मिले रोज़गार के आंकड़े जारी किये थे। इन आंकड़ो के मुताबिक प्रदेश में 40,000 उद्योग ईकाईयां पंजीकृत हैं जिनमें उद्योगपतियों का 17000 करोड़ का निवेश है तथा इन उद्योगों में 2,58,000 कर्मचारी कार्यरत है। इन आंकड़ोे से यह स्पष्ट होता है कि 52,000 करोड़ के निवेश से करीब तीन लाख लोगों को रोज़गार हासिल हुआ है। क्योंकि 40,000 उद्योपति और 2,58,000 कर्मचारी मिला कर तीन लाख का आंकड़ा बनता है। 35000 करोड़ की राहत तो 2009 से 2014 के बीच मिली है जबकि उद्योगों की ओर से 1977 से ही जब शान्ता कुमार के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तभी से विशेष ध्यान दिया जा रहा है। उसी दौरान परवाणु, मैहतपुर-पांवटा साहिब और डमटाल के ओद्यौगिक परिसरों की स्थापना हुई थी।
1977 से ही उद्योगों को राहतें प्रदान की जाती रही है और यदि तब से लेकर अब तक मिल चुकी राहतों के सारे आंकड़ो को इकट्ठा करके देखा जाये तो यह रकम एक लाख करोड़ से अधिक की हो जाती है। उद्योगों को सुविधायें देने के लिये ही वित्त निगम की स्थापना की गयी थी। प्रदेश का खादी बोर्ड भी उद्योगों की ही सेवा कर रहा था। इन संस्थानों के माध्यम से उद्योगों को ऋण सुविधा दी जाती रही है लेकिन आज यह दोनों संस्थान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। इनके प्रदेश मुख्यालय के बाहर के कई कार्यालय बन्द हो चुके हैं क्योंकि इनका दिया हुआ बहुत सारा कर्ज डूब चुका है। इस परिदृश्य में आज यह सबसे बड़ा सवाल बन चुका है कि क्या हमारी उद्योगनीति सही दिशा में रही या नहीं। आज उसका नये सिरे से आंकलन करने की आवश्यकता है लेकिन क्या प्रदेश की अफसरशाही यह आंकलन होने देना चाहेगी? क्योंकि वित्त निगम का तो पूरा प्रबन्धन अफसरशाही के ही पास रहा है। प्रदेश का मुख्य सचिव ही वित्त निगम का अध्यक्ष होता है और सचिव वित्त इसके निदेशकों में शामिल रहता है। इसी अफसरशाही के प्रबन्धन में चलता आ रहा वित्त निगम पूरी तरह फेल हो चुका है।
प्रदेश के उद्योगों और उद्योग नीति का निष्पक्ष और व्यवहारिक आंकलन राजनीतिक नेतृत्व को करना है लेकिन अभी दिल्ली में राज्यों के वित्त मन्त्रीयों की केन्द्रिय वित्त मन्त्री के साथ आयोजित बजट पूर्व बैठक में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने उद्योगों के लिये नये सिरे से राहत की मांग की है। उन्होनेे प्रदेश में लगने वाले उद्योगों के लिये पहले पांच वर्षों में सौ प्रतिशत और अगले पांच वर्षों में 50% करो में राहत प्रदान करने की मांग की है। इसी के साथ सात वर्षों की अवधि के लिये ब्याज में सात प्रतिशत की छूट दिये जाने की भी मांग की है। इसके तहत उद्योगपतियों को लम्बी अवधि के कर्जों और पूंजीगत कर्जों पर सात प्रतिशत ब्याज की राहत मांगी गयी है।