प्रदेश के माननीयों के खिलाफ खडे़ हैं 84 आपराधिक मामले
शिमला/शैल। संसद से लेकर राज्यों की विधान सभाओं तक करीब राज्यों में आपराधिक छवि के लोग माननीय बनकर बैठे हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार से लेकर गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं। संसद और विधान सभाओं को ऐसे लोगों से मुक्त करवाने के लिये कोई बार दावे और वायदे किये गये हैं। सर्वोच्च न्यायालय तक ने इस पर चिन्ता व्यक्त की है। ऐसे मामलों को प्राथमिकता के आधार पर दैनिक सुनवाई करके एक वर्ष के भीतर निपटाने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय अधीनस्थ अदालतों को दे चुका है। यहां तक निर्देश रहे हैं कि यदि कोई अदालत एक वर्ष के भीतर मामले को नही निपटा पाती है तो उसे संवद्ध उच्च न्यायालय को उसके कारण बताकर सुनावई के लिये समय की बढ़ौत्तरी की अनुमति लेनी होगी।
2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान नरेन्द्र मोदी ने भी संसद को अपराधियों से मुक्त करवाने का वायदा किया था। सरकार बनने के बाद इसे लोकसभा के सदन में दोहराया भी था। लेकिन इस दिशा में कोई कदम नही उठाये क्योंकि भाजपा ने ही सबसे ज्यादा टिकट आपराधिक छवि के लोगों को दिये थे। सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक मामले झेल रहे माननीयों के मामलों को एक वर्ष के भीतर निपटाने और आवश्यक होने पर इसके लिये विशेष अदालतें गठित करने के निर्देश 2017 में दिये थे। इन निर्देशों के अनुसार ऐसी विषेश अदालतों का गठन मार्च 2018 के शुरू होने तक हो जाना था। दिल्ली आदि कई राज्यों में प्रथम मार्च 2018 से ऐसी विशेष अदालतों ने अपना काम भी शुरू कर दिया है।
लेकिन हिमाचल में अभी तक अदालतों के गठन के लिये न तो उच्च न्यायालय ने कोई सक्रियता दिखाई हैऔर न ही सरकार ने। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को माननीयों के खिलाफ खड़े मामलों की जानकारी उपलबध करवाई है। इस जानकारी के मुताबिक प्रदेश के माननीयों के खिलाफ कुल 84 मामले खड़े हैं। इस जानकारी में इन मामलों को 2014 से पहले के और 2014 से बाद के दो भागों में बांटा गया है। इसके अनुसार 2014 से पहले के 20 मामलें लंबित हैं और 2014 से बाद के 64 मामलें खड़े हैं। गृह विभाग ने कई मामलों को राजनीति से भी प्रेरित करार दिया है। प्रदेश का गृह विभाग 84 मामलों को निपटाने के लिये विशेष अदालत गठित किये जाने का पक्षधर नही है। लेकिन गृह विभाग द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को भेजी गयी जानकारी के मुताबिक 20 मामले ऐसे हैं जो 2014 से पहले के चले आ रहे हैं। यदि यह मामले अपने में गंभीर नही होते या सिर्फ राजनीति से ही प्रेरित होते तो यह अब तक खत्म हो गये होते। लेकिन ऐसा हुआ नही है। जिसका अर्थ है कि यह मामले गंभीर प्रकृति के हैं। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि यह मामले दर्ज होने के बाद से अब तक कम से कम दो चुनाव तो प्रदेश में हो ही गये हैं। पहला 2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि 20 मामले झेल रहे माननीय आज भी सदन में मौजूद हैं। क्योंकि यह जानकारी हारे हुए लोगों के बारे में तो सर्वोच्च न्यायालय को नही भेजी जानी थी। इससे यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि आज सभी लंबित 84 मामलों में यदि वास्तव में ही एक वर्ष के भीतर फैसला हो जाता है और इनमें से कुछ एक को सजा़ भी हो जाती है तो प्रदेश की राजनीति का सारा संद्धर्भ ही बदल जायेगा। यदि सभी 84 मामलों का निपटारा सही में ही एक वर्ष के भीतर हो जाता है प्रदेश की राजनीति का तो पूरा ढांचा ही बदल जायेगा। क्योंकि इन माननीयों में वीरभद्र, धूमल,अनुराग ठाकुर, विरेन्द्र कश्यप, राजीव बिन्दल, किश्न कपूर, रमेश धवाला, आशा कुमारी, विनय कुमार जैसे कई महत्वपूर्ण नाम शामिल हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश माननीयों के मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर हर हालत में करने का है। विशेष अदालत का गठन तो आवश्यकता पर निर्भर करता है। इसमें तो पहली मार्च तक इनके मामलों के निपटारे के लिये अदालत चिन्हित हो जानी चाहिये थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को सूचना भेजकर क्या इसमें और समय निकालने का रास्ता नही निकाला गया है। क्या इससे अदालत और सरकार दोनों की ही गंभीरता पर सवाल नही उठ जाते हैं।