क्या न्यू शिमला के ग्रीन एरिया और पार्कों में निर्माण करवाये जा सकते थे -उठा यह बड़ा सवाल

Created on Tuesday, 27 March 2018 05:51
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सरकार के अपने ही बनाये हुए नियमों/ कानूनों की धज्जियां उसके अपने ही विभाग/ उपक्रम कैसे तोड़ते हैंइसका एक नग्न उदाहरण एनजीटी के उस आदेश से सामने आया है जिसमें एनजीटी ने प्रदेशभर में नये निर्माणों पर रोक लगा दी है। क्योंकि यह निर्माण तय नियमों की सीधी-सीधी अनेदखी करके हो रहे थे। एनजीटी ने अपने फैसले में साफ कहा है कि

"If such unplanned and indiscriminate development is permitted, there will be irreparatable loss and damage to the environment, ecology and natural resources on the one hand and inevitable disaster on the other''
"Beyond the core, green /forest area and the areas falling under the authorities of the Shimla Planning Area, the construction may be permitted strictly in accordance with the provisions of the Town and Country Planning Act. Development Plan and the Municipal laws in force. Even in these areas, construction will not be permitted beyond two storeys plus attic floor."
However, if any construction particularly public utilities (buildings like hospitals, schools and offices of essential services but would definitely not include commercial, private builders and any such allied buildings) are proposed to be constructed beyond two storeyes plus attic floor then the plans for approval or obtaining NOC shall be submitted to the authorities concerned having jurisdiction over the area in question."

नियमों/कानूनों की शर्मनाक अवहेलना का दूसरा उदाहरण अब न्यू शिमला के निर्माणों में सामने आ रहा है। स्मरणीय है कि प्रदेश भर में सुनियोजित निर्माण सुनिश्चित करने के लिये 1977 में टीसीपी एक्ट पारित किया गया था जो कि पूरे प्रदेश में लागू है। इसी एक्ट की धारा 42 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए साडा का गठन किया गया ताकि आवश्यकता होने पर किसी भी आवासीय कलौनी के निर्माण के लिये सरकार जबरन भी भूमि का अधिग्रहण कर सके। इसके तहत साडा ने 1988 -89 में शिमला में 193.5 बीघा (1,45,324.10व.मी.) भूमि का अधिग्रहण किया और 1989 में दो योजनाएं 5 और 6 घोषित कीं। योजना 5 आंशिक स्वतः पोषित थी और 6 पूरी स्वतः पोषित थी। इन योजनाओं की घोषणा के साथ पूरा प्रारूप भी जारी किया गया। इसमें कहां प्लाॅट, मकान, प्लैट, पार्क, ग्रीन एरिया, व्यवसायिक परिसर, स्कूल, सड़क और अधोसरंचना से जुड़ी अन्य चीजें रहेगी इसका पूरा अलग-अलग विवरण दिखाया गया था। यह योजना घोषित होने के बाद लोगों ने इसके लिये आवेदन किये। आवेदनों के बाद आंवटन हुआ। यह योजना क्योंकि स्वतः पोषित थी तो इसके लिये आवंटितों से पूरे 1,45000 वर्ग मीटर की कीमत ली गयी है। जबकि प्लाटों के तहत केवल 29950 वर्ग मीटर एरिया ही है और बिक्री योग्य कुल एरिया 74213 वर्ग मीटर चिन्हित किया गया था। इससे स्पष्ट है कि शेष एरिया सड़क, पार्क और ग्रीन तथा अन्य अधोसंरचना के लिये था। लेकिन आवंटितों से पूरी ज़मीन की वह कीमत जो इसके मूल मालिको को मुआवजे के रूप में दी गयी और इसके हर तरह के विकास पर आयी कीमत के साथ 10% प्रशासनिक खर्च और निर्माण लागत तथा निर्माण पर हुए निवेश पर लगा ब्याज आदि सब कुछ वसूल किया गया। बल्कि अदालत के रिकार्ड पर तो यहां तक आ चुका है कि हिमुडा ने आवंटितों से आये पैसे को अन्यत्र निवेश करके 12.38 करोड़ का ब्याज तक कमा लिया है। शुरू में आवंटितों से इसकी कीमत 800 रू0 वर्ग मीटर ली गयी लेकिन बाद में बढ़ाकर 1415 रूपये वसूल की गयी। यही नही इसके बाद 613 रूपये वर्ग मीटर और मांगे गये जिसके विरोध में यहां के आवासीयों की वेल्फेयर सोसायटी उच्च न्यायालय गयी और तब अदालत ने यह ज्यादती रोकी और यह सामने आया कि हिमुडा ने तो 12.38 करोड़ का ब्याज तक कमा लिया है। इस सारे विविरण से स्पष्ट हो जाता है कि इस कालोनी की भूमि के मालिक इसके आवंटित है न कि हिमुडा।
इस कालोनी के लिये ज़मीन का अधिग्रहण साडा ने किया था जो अब हिमुडा बन गया है लेकिन 1998 में हिमुडा से इसे नगर निगम को हस्तांरित कर दिया गया है। इस हस्तांतरण में नगर निगम को इसका मालिक बना दिया गया है। कानून के मुताबिक तो हिमुडा इसका ट्रस्टी है मालिक नही। फिर जो स्वयं ही मालिक नही है वह दूसरे को इसके मालिकाना हक कैसे ट्रांसफर कर सकता है यह एक और बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है। इसके अतिरिक्त हिमुडा ने कई लोगों को पार्क और ग्रीन एरिया में निर्माणों की अनुमति दे रखी है जो कि नियमों/कानूनों की खुली अवेहलना है। क्योंकि इसका जो विकास का प्लान एक बार स्वीकृत हो चुका है उसमें कतई बदलाव नही किया जा सकता है। इसमें नियमों/कानूनों की अवहेलना और विशेष रूप से Development Plan की उल्लघंना को लेकर उच्च न्यायालय में एक याचिका विचारधीन चल रही है। इसमें अदालत ने 16.10.2017 को यह आदेश पारित किया था। All plans lying with the authorities be it HIMUDA/Department of Town and Country Planning or Municipal Corporation Shimla shall be made available for inspection of all the parties on 22nd November 2017 when the matter is listed before the Additional Registrar ( Judicial) लेकिन अब जब 20 मार्च को यह मामला फिर सुनवाई के लिये लगा तब यह प्लान अदालत में नही रखा गया। उच्च न्यायालय ने 15.01.2013 को  CMP No. 16245/2012. ग्रीन एरिया में निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था Heard. Respondents are restrained from raising any further construction over the green area in New shimla. We, however make it clear that the construction already raised will abide by the outcome of the writ petition '' 
लेकिन इस आदेश के बाद ब्लाॅक 50 A और 50 B के 1250 वर्ग मीटर ग्रीन एरिया में 16 फ्रलैटस बना दिये गये हैं। आरटीआई में 29.05.2017 को Development Plan की काॅपी मांगी गयी थी लेकिन इसके जवाब में प्लान की जगह टीसीपी अधिनियम के अध्याय चार और पांच की फोटो काॅपी भेज दी गयी। जबकि  CWP 669 of 1994 में उच्च न्यायालय के फैसले में यह रिकार्ड पर आ चुका है कि Our attention is drawn to two plans, The plan which was originally published along with the original scheme and the plan which was later approved by the authorities after the adjustments were made. लेकिन अब इस प्लान को अदालत के सामने न आने देने के प्रयास किये जा रहे हैं। जबकि 28.04.2012 हिमुडा स्वयं नगर निगम को यह नोटिस दे चुका है कि वह ग्रीन एरिया में शौचालय का निर्माण कर रहा है।
अब सरकार और नगर निगम के लिये एक ऐसी स्थिति खड़ी हो गयी है कि एक ओर तो इस कालोनी में कुछ लोगों को व्यवसायिक गतिविधियों को चलाने के लिये अनुमतियां प्रदान की गयी हैं जिन्हें दिखाने के लिये जारी किये गये नोटिसों में कहा गया है। लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह खड़ा होता है कि जब इस कालोनी के निर्माण की योजना के प्रारूप में ही व्यवसायिक गतिविधियों के लिये अलग से स्थान चिन्हित थे तो फिर रिहायशी मकानों /फ्लैटों में ऐसी गतिविधियों की अनुमति कैसे दी जा सकती थी? इसके स्वीकृत प्लान में भू-उपयोग के बदलाव की अनुमति कैसे दी जा सकती थी क्योंकि इसी प्लान से आकर्षित होकर तो लोगों ने यहां पर प्लाट/मकान/ फ्लैट लिये। इस परिदृश्य में हिमुडा से लेकर नगर निगम तक का सारा प्रबन्धन ग्रीन एरिया और पार्क एरिया में निर्माणों का दोषी होने के साथ ही इसके लिये भी दोषी है कि यहां पर कुछ लोगों को भू-उपयोग बदलने की अनुमतियां कैसे दे दी गयी। बल्कि लाॅईन्ज़ क्लब को 13.06.12 को 300 वर्गमीटर जगह दी गई लेकिन यह क्लब अभी तक कहीं नही है।
इस तरह एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि जिन लोगों ने व्यवसायिक गतिविधियां चला रखी हैं उन्हे दण्डित करने के साथ ही क्या संवद्ध प्रशासन को भी दण्डित किया जायेगा जिसने अपने ही बनाये नियमों/ कानूनों की धज्जियां उड़ाई हैं? क्या सारा प्रबन्धन नौकरशाहों और राजनेताओं को लाभ देने के लिये इस तरह के कारनामों को अन्जाम दे रहा था। क्योंकि इस कालोनी में कई वर्तमान और पूर्व नौकरशाहों से लेकर वीरभद्र और जयराम ठाकुर तक भू-उपयोग बदलने वालों में शामिल हैं।