कांग्रेस के आरोपों पर भारी पड़ा महेन्द्र सिंह का खुलासा

Created on Tuesday, 03 April 2018 07:50
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। बजट सत्र के एक सप्ताह के ब्रेक के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ऊना गये थे। वहां एक आयोजन में उन्होने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक सत्तपाल सत्ती के साथ मंच सांझा करते हुए ऊना की जनता को विश्वास दिलाया कि भले ही सत्ती इस बार चुनाव हार गये हैं लेकिन सरकार में उचित आदर सम्मान प्राप्त रहेगा और उनके क्षेत्र के प्रति आये सुझावों को गंभीरता से लेेेेते हुए उन्हे पूरा अधिकार देगी। स्वभाविक है कि कोई भी मुख्यमन्त्री जहां भी जायेगा और उसे जो भी मिलेगा उसके विचारों, सुझावों को इसी तरह की भाषा में अधिमान देगा। फिर सत्ती तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और उन्हें अधिमान देना सरकार का दायित्व भी है। लेकिन कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के इस कथन को ऊना के चुने हुए विधायक की नज़रअन्दाजी करार देकर सदन में इस विषय पर नियम 67 के तहत चर्चा का प्रस्ताव दे दिया। सदन संचालन के नियमों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि स्थगन प्रस्ताव उसी स्थिति में लाये जायें जबकि विषय इतना आक्समिक और गंभीर हो कि उस पर किसी अन्य नियम में चर्चा संभव न हो। फिर बजट सत्र में तो स्थगन प्रस्ताव से बिल्कुल ही परहेज किया जाना चाहिये।
इस परिदृश्य में जब अध्यक्ष ने स्थगन प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तब कांग्रेस ने सदन में हंगामा, नारेबाजी करके सदन से वाक्आऊट कर दिया। कांग्रेस का आरोप था कि सरकार जनता द्वारा चुने हुए विधायकों को अधिमान नही दे रही है। कांग्रेस के इस आरोप का सिंचाई एवम् जन स्वास्थ्य मन्त्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने 1997 में उनके साथ घटे व्यवहार का सदन में खुलासा रखते हुए जब ब्यान दिया तो इस ब्यान से न केवल वीरभद्र शासन और स्वयं वीरभद्र की तानाशाही प्रवृति का लेखा जोखा ही सदन के रिकार्ड पर दर्ज हुआ बल्कि आगे के लिये कांग्रेस के हाथ से यह मुद्दा भी निकल गया। 1997 में महेन्द्र सिंह ठाकुर कांग्रेस के विधायक थे और सुखराम खेमे के माने जाते थे। 1993 में जब सरकार का गठन हुआ था उस समय विधायकों का बहुमत पंडित सुखराम के साथ था। लेकिन वीरभद्र ने उस समय जिस तरह से अपनेे समर्थकों से विधानसभा का घेराव करवा कर मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर कब्जा किया था इसे पूरा प्रदेश जानता है। सुखराम अपने समर्थकों के साथ चण्डीगढ़ ही बैठे रहे और वीरभद्र मुख्यमन्त्री बन गये थे। महेन्द्र सिंह उस समय सुखराम के एक जबरदस्त समर्थक माने जाते थे और इसलिये उन्हे प्रताड़ित करने के लिये वीरभद्र ने पब्लिक के मंच पर ही जो व्यवहार किया था वह खुलासा महेन्द्र सिंह ने इस प्रकार सदन में रखा।
उन्होंने कहा कि 1997 में वह धर्मपुर हलके से कांग्रेस के विधायक थे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री व वाॅकआउट कर गए वीरभद्र सिंह दिसंबर 1997 को उनके हलके में आए। सभा हुई और तब के उद्योग मंत्री रंगीला राम राव को मंच पर बोलने को बुलाया गया। वहीं पर कांगेस के नत्थाराम भी थे। उन्होंने कहा कि तब उन्होंने वीरभद्र सिंह से आग्रह किया कि वह स्थानीय विधायक हैं, उन्हें बोलने दिया जाए। वह स्थानीय समस्याओं को सरकार के समक्ष रखना चाहते हैं। इतना कहने पर वीरभद्र सिंह ने वहां खड़े एसपी को आदेश दिए किए विधायक को गिरफ्तार किया जाए। वहां सादी वर्दी में कई युवक थे। उन्होंने सोचा कि ये युवा कांग्रेस या एनएसयूआई के कार्यकर्ता हैं। लेकिन वह पुलिस के लोग थे।
उन्हें पकड़ा गया और आठ फुट ऊंचे मंच से नीचे फैंका गया। इसके बाद चारों टांगों से बकरे की तरह उठाकर जिप्सी में डाल दिया गया। दो डीएसपी पहले ही जिप्सी के पास थे। वहां पर स्कूली बच्चे व स्थानीय लोग थे। उन्हें पुलिस के लोगों ने लाते मारी। मुख्यमंत्री मंच पर बैठे रहे। वहां बीस किलोमीटर दूर थाना था। उन्हें वहां नहीं ले जाया गया जोगेंद्रनगर के थाने में ले जाया गया और जेल में बंद कर दिया। मुख्यमंत्री का अगले दिन का कार्यक्रम उन्हीं के हलके में मढ़ी में था। लोगों ने पूछा कि हमारा विधायक कहां है। उनकी छोटी बेटी जो उस समय 14 साल की थी व उनकी पत्नी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
बिल्कुल खामोश सदन में महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि रात को 11 बजे दो डीएसपी जेल में आए व बोले कि आपकी जमानत करानी है। आपको मंडी एडीएम के समक्ष पेश करना है। उन्होंने कहा कि एसडीएम भी और मंडी का एडीएम भी एचएएस अधिकारी हैं तो यहीं जमानत करा लीजिए। करीब तीन बजे उन्हें जिप्सी में डाला और जिप्सी डेढ घंटे बाद मंडी से सुंदरनगर की ओर चल पड़ी। पूछने पर पुलिस ने बताया कि उन्हें आदेश है कि जब तक मुख्यमंत्री का प्रवास धर्मपुर का है तब तक महेंद्र सिंह को धर्मपुर से बाहर रखा जाए। उन्होंने कहा कि उन्हें पौने चार बजे गोहर थाने में बंद कर दिया। जब तक वीरभद्र सिंह धर्मपुर में रहे उन्हें अलग-अलग थानों में घुमाया जाता रहा। उन्होंने कहा कि ये वाॅकआउट करने वाले सवाल उठाते हैं कि जयराम सरकार विधायक की संस्था को कमतर कर रहे हैं। यह तो बात तक नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि वह तीस सालों से विधानसभा में लगातार चुनकर आते रहे हैं। लेकिन वाइएएस परमार को छोड़कर उनका अब तक के हरेक मुख्यमंत्री के साथ वास्ता पड़ चुका है। लेकिन जितने मिलनसार व सरल अब के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हैं इतना कोई नहीं था। उन्होंने वीरभद्र सिंह की ओर ईशारा करते हुए कहा कि जिस तरह से उन्होंने कागज टेबल पर फैंके वह उनकी उम्र के तकाजे के हिसाब से भी शोभनीय नहीं है। महेंद्र सिंह ठाकुर ने इस तरह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को सीधे निशाने पर ले लिया।