शिमला/शैल। जिस जयराम को वीरभद्र राजनीति में बच्चा करार देते आ रहे हैं उसने पांच माह में ही एशियन विकास बैंक से 4378 करोड़ की योजनाएं पर्यटन, पेयलन और बागवानी क्षेत्रा मे स्वीकार कर वीरभद्र और अपने विरोधीयों को बड़ा करारा जबाव दिया है। यही नहीं बल्कि 4751 करोड़ की एक और योजना भी स्वीकृति के कगार पर पंहुच चुकी है। जबकि वीरभद्र के शासनकाल में केवल 2011 में ही एक 600 करोड़ की एक योजना पर ही काम हो पाया है। यह जानकारी मुख्यमन्त्री जयराम ने शिमला में अपना पदभार संभालने के बाद आयोजित हुई पहली पत्रकार वार्ता में रखी।
पर्यटन के क्षेत्र में 1892 करोड़ की येजना स्वीकार हुई है और इसका प्रारूप प्रधानमन्त्री को 26 फरवरी 2018 को भेजा गया था। इस योजना को लेकर पत्रकार वार्ता में जो पत्र जारी किया गया है उसमें यह दावा किया गया है कि इस योजना का प्रारूप तैयार करने से पहले प्रदेश के 324 स्थलों का सर्वेक्षण किया औ 90,000 पर्यटकों से पर्यटन के विकास के लिये राय मांगी है। स्वभाविक है कि इतनी बड़ी योजना तैयार करने के लिये इस स्तर का ग्रांऊड वर्क किया जाना आवश्यक है लेकिन क्या पर्यटन विभाग ने दो माह में ही 324 स्थलों का सर्वेक्षण भी कर लिया और 90,000 पर्यटकों से राय भी ले ली? इतना आधारभूत काम करने के लिये तो कम से कम एक वर्ष का समय चाहिये जबकि अभी सरकार को सत्ता में आये छः माह भी पूरे नही हुए हैं। लेकिन मुख्यमन्त्रा ने पत्रकार वार्ता में दावा किया है कि यह योजना एकदम मौलिक है और पूर्व सरकार के समय इसका स्वप्न तक नही लिया गया था। स्वभाविक है कि दावा विभाग द्वारा दी गयी फीडबैक पर आधारित रहा होगा जिसकी व्यवहारिक प्रसांगिकता पर किसी ने ध्यान नही दिया है।
इसी तरह बागवानी के क्षेत्र में भी 1688 करोड़ की योजना स्वीकृत होने का दावा किया गया है। इस योजना से प्रदेश के निचले क्षेत्रों के किसान और बागवान लाभान्वित होगें। इस योजना से पहले भी एशियन विकास बैंक से पोषित एक योजना बागवानी के क्षेत्र में चल रही है जिसको लेकर वर्तमान बागवानी मंत्री मेहन्द्र सिंह ठाकुर और पूर्व मन्त्री विद्या स्टोक्स में काफी लंबी जुबानी जंग भी रही है क्योंकि विद्या स्टोक्स यह दावा करती रही है कि पूर्व योजना में भी प्रदेश के निचले क्षेत्रा बराबर शामिल रहे हैं लेकिन महेन्द्र सिंह स्टोक्स के इस दावे को सिरे से खारिज करते रहे हैं। इस योजना के आकार लेते समय यह सवाल अवश्य उठेगा कि एक ही ऐजैन्सी एक ही योजना पर दो बार सही में ही धन दे रही है या इसमें भी विभाग द्वारा मन्त्री के सामने तथ्य रखने में कोई चूक हुई है। इसपर स्थिति तब स्पष्ट होगी जब विकास बैंक की टीम डीपीआर का आकलन करने आयेगी।
सिंचाई एवम् जनस्वास्थ्य विभाग के तहत 2001 से पहले की निर्मित 1421 पेयजल योजनाओं के संवर्द्धन के लिये 798.19 की करोड़ की एक योजना स्वीकृत हुई है। इस योजना के लिये 80% धन एशियन विकास बैंक उपलब्ध करवायेगा और 20% (159.54 करोड़) राज्य सरकार को अपने साधनों से जुटाना होगा यह जानकारी इस आश्य के जारी हुए प्रेस नोट में दी गयी है। जबकि मुख्यमन्त्री के प्रधान सचिव जो पहले वित्त सचिव भी थे ने यह दावा किया है कि इन योजनाओं के लिये राज्य सरकार को केवल 10% के ही अपने हिस्से के रूप में देना होगा। 10% के हिस्से की शर्त एशियन विकास बैंक की सभी योजना पर लागू होगी या केवल पर्यटन और बागवानी पर ही होगी यह स्पष्ट नही हो पाया है।
एशियन विकास बैंक की इन योजनाओं को जमीनी आकार लेने में समय लगेगा। क्योंकि यह स्वीकृतियां अभी सिन्द्धात रूप में ही मिली है। इसके बाद इनकी डीपीआर बनेगी और उसका निरीक्षण विकास बैंक की टीम करेगी उसके बाद ही एम ओ यू साईन होंगे। इतना योजनाओं की सैद्धान्तिक स्वीकृति मिलना भी अपने में एक उपलब्धि है। लेकिन इसको लेकर समय समय पर खबरें छपती भी रही हैं ऐसे में क्या इन योजनाओं को लेकर इस स्टेज पर ही मुख्यमन्त्री द्वारा पत्राकार वार्ता किया जाना आवश्यक था या नही इसको लेकर भी चर्चाएं चल पड़ी है। क्योंकि इन योजनाओं को इस अंजाम तक पंहुचाने में संबधित मन्त्रीयों का भी योगदान रहा है ऐसे में इस मौके पर संवद्ध मन्त्री का भी साथ होना बनता था। फिर राजधानी में मुख्यमन्त्री बनने के बाद यह जयराम की पहली प्रैस वार्ता थी। विपक्ष इस समय सरकार और मुख्यमनी पर यह आरोप लगा रहा है कि सारे मन्त्री और विधायक उन्हे सहयोग नही दे रहे हैं। इस पत्रकार वार्ता में किसी भी मन्त्री का उनके साथ शामिल न रहना केवल यही संकेत देता है कि यह वार्ता अधिकारियों की सलाह पर बुलायी गयी थी क्योंकि इसकी जानकारी मीडिया को केवल तीन घन्टे पहले ही दी गयी थी। फिर इस वार्ता में पर्यटन को लेकर मुख्यमन्त्री से यह दावा करवा दिया गया कि यह विचार यह विज़न केवल अभी की उपज है जबकि प्रैस नोट में दर्ज आंकड़े इसको सत्यापित नही करते है। स्वभाविक है कि सरकार द्वारा स्वयं अपने ही प्रैस नोट में दिये गये आंकड़ों के आधार पर मुख्यमन्त्री के दावे पर विपक्ष सवाल खड़े करेगा जिनका कोई तर्क संगत जवाब नही होगा।
मुख्यमन्त्री ने पत्रकार वार्ता में जिस तर्ज पर वीरभद्र और मुकेश अग्निहोत्री पर हमला बोला है उसकी धार के पहली ही प्रैस वार्ता में मन्त्रीयों और पार्टी के पदाधिकारियों का साथ न होना स्वयं ही कुन्द कर जाता है। इस वार्ता से स्वतः ही यह संदेश गया है कि मुख्यमन्त्री अपने मन्त्रीयों से अधिक अधिकारियों पर ज्यादा निर्भर कर रहे हैं और यह भूल रहे हैं कि कल तक यही अधिकारी वीरभद्र के हर फैसले का ऑंख बन्द करके अनुमोदन कर रहे थे। इन्ही के गलत फैसलों का परिणाम है कि आज स्कूलों में अध्यापकों के लिये बच्चों को हड़ताल करनी पड़ रही है और दवाब में एक प्रधानाचार्य की हार्टअटैक से मौत तक हो गयी है।