न्यू-शिमला प्रकरण का अन्त भी कसौली जैसा होने की संभावना बढ़ी

Created on Tuesday, 10 July 2018 10:15
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार ने 1986 में शिमला के उपनगर न्यू शिमला में एक पूरी तरह स्व वित्त पोषित हाऊसिंग कालोनी बनाने बसाने की योजना बनायी थी। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिये साडा का गठन किया। साडा के माध्यम से इस कालोनी के लिये भूमि का अधिग्रहण किया गया और 83.84 लाख में जमीन खरीदी गयी जिसमें से 50315 वर्ग मीटर भूमि प्लाटों के लिये चिन्हित की गयी और शेष भूमि अन्य आधारभूत सुविधाओं के निर्माण के लिये रखी गयी। इन अन्य आधारभूत सुविधाओं में सड़कें, पार्क, ग्रीन एरिया तथा पेयजल और सीवरेज आदि लाईनों का प्रावधान आदि शामिल था। इन्हीं सारी सुविधाओं के प्रावधानों के साथ इस योजना को विज्ञापित किया था और ईच्छुक लोगों से आवेदन आमंत्रित किये थे। इस आवासीय कालोनी के निर्माण के लिये एक विस्तृत सैक्टरवाईज विकास योजना का प्रारूप विज्ञापित किया गया था।
सरकार/साडा द्वारा विज्ञापित इन सारी सुविधाओं के लिये किये गये अलग- अलग प्रावधानों से प्रभावित होकर ही लोगों ने यहां प्लाट/फ्लैट आदि खरीदने के लिये आवदेन किये। साडा ने जब प्लॉट एरिया की प्रतिवर्ग मीटर कीमत तय की तब उसमें पूरी जमीन की कीमत के साथ इन आधारभूत सुविधाओं सड़क, पार्क, ग्रीन एरिया और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं पर होने वाले खर्च को भी जमीन की कुल कीमत में जोड़ा। इस तरह जो जमीन मूलतः 83.84 लाख में खरीदी गयी थी उसमें 234.03 लाख आधारभूत सरंचनाओं के लिये 60 लाख सार्वजनिक बिजली लाईटों के लिये तथा 75.35 लाख इसकी निगरानी और लाभ आदि के चार्ज कर 83.84 लाख की जमीन की कीमत 457.22 लाख तक पंहुचा दी। फिर इसे जब 50315 वर्ग मीटर के प्लॉट एरिया पर विभाजित किया गया तो 457.22 लाख बढ़कर 910 लाख बन गया। इस तरह प्लॉट एरिया की कीमत 910 रूपये प्रति वर्ग मीटर की दर पर खरीददारों से वसूली गयी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस कालोनी की एक-एक इंर्च जमीन की सारी कीमत सारे खर्चों और लाभ सहित यहां के प्लॉट मालिकों से वसूली गयी है। इस नाते यहां की सड़के, पार्क, ग्रीन एरिया और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं के मालिक यहां के निवासी है न की सरकार या उसके संबधित विभाग। इनकी भूमिका कानून के मुताबिक एक ट्रस्टी संचालक की ही रह जाती है बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि सरकारी तन्त्र ने जब 83.84 लाख खर्च करके 9 करोड़ 10 लाख वसूले हैं तो वह तो प्राईवेट बिल्डर से भी कई गुणा ज्यादा शोषक जैसा हो जाता है। कीमत वूसली की यह सारी जानकरी स्वयं हिमुडा ने उच्च न्यायालय में रखी है।
इस कालोनी का निर्माण विज्ञापित विकास प्रारूप के अनुसार होना चाहिये था। क्योंकि कालोनी को शुद्ध रूप से आवासीय कालोनी के नाम पर विज्ञापित और प्रचारित किया गया था इसके प्रारूप में व्यवसायिक गतिविधियों के लिये कोई स्थान चिन्हित नही किये गये थे। शुद्ध आवासीय चरित्रा रखने के लिये ही यहां पर मूलतः अढ़ाई मंजिल के निर्माण की ही सीमा तय की गयी थी। लेकिन जब इसका वास्तविक निर्माण शुरू हुआ और लोगों को प्लाटों का आवंटन किया गया तब पूर्व विज्ञापित प्रचारित वकास प्रारूप को पूरी तरह नज़रअन्दाज कर दिया गया। विकास प्रारूप में जो स्थल पार्क, ग्रीन एरिया आदि के लिये मूलतः चिन्हित और निर्धारित थे वह इस समय व्यवहार में वैसे नहीं रह गये हैं। आवासीय कालोनी व्यवसायिक कालोनी की शक्ल ले चुकी है। लैण्डयूज़ पूरी तरह से बदल गया हैं बिना अनुमतियों के बदले गये लैण्डयूज़ का जब उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया तब संवद्ध प्रशासन ने जांच शुरू की और ऐसे सैंड़कों लोगो को उनके बिजली, पानी कनैक्शन काटने की नौबत आयी।
न्यू शिमला में विज्ञापित विकास प्रारूप को नज़रअन्दाज किये जाने की जानकारी जब बाहर आयी तब प्रदेश उच्च न्यायालय में एक याचिका CWP No. 10772 of 20122 दायर हुई थी। इस याचिका की सुनवायी के दौरान यह मूल प्रश्न उठा है कि मूल रूप से विज्ञापित विकास प्रारूप की अवहेलना कहां -2 और कैसी हुई है इसके लिये संवद्ध विभागों से उच्च न्यायालय ने विकास प्रारूप तलब किया था लेकिन यह प्रारूप अभी तक अदालत के सामने नही रखा जा सका है। न्यू शिमला के निवासियों की एक कल्याण सोसायटी भी बनी हुई है। पिछले दिनों उच्च न्यायालय ने सरकार के महाधिवक्ता के माध्यम से संवद्ध विभागों को निर्देश दिया था कि वह इन निवासियों की कल्याण सोसायटी के साथ बैठक करके इसके सारे पक्षों पर विस्तार से चर्चा करें। उच्च न्यायालय के निर्देशां पर हुई इस बैठक के बाद निवासियों की इस सोसायटी की शीर्ष कार्यकारणी ने 26.6.2018 को बैठक करके एक प्रस्ताव पारित करके महाधिवक्ता को देकर उनसे यह अनुरोध किया कि प्रस्ताव में चिन्हित किये गये बिन्दुओं को अदालत के माध्यम से हल करवाने का प्रयास करे। इस प्रस्ताव में प्रारूप के विरूद्ध हुई गतविधियों की एक विस्तृत सूची दी गयी है और मांग की गयी है कि प्रशासन के जिन लोगों के सामने यह अवहेलनाएं हुई हैं उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करके कारवाई की जाये। सोसायटी ने एक पत्रकार वार्ता में इस प्रस्ताव को रखते हुए अवहेलनाओं के सनसनीखेज़ खुलासे किये है। आवासीय कालोनी में व्यवसायिक गतिविधियों की सीमा कहां तक जा पंहुची है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक रसूखदार पूर्वे नौकरशाह भवन मालिक को बिजली के एक ही भवन में सोलह कनैक्शन दिये गये हैं। उच्च न्यायालय ने यहां निर्माणों पर रोक लगा रखी है और इस रोक के बाद भी हिमुण्डा द्वारा सैक्टर चार के ग्रीन एरिया ब्लॉक 50 और 50 ए का निर्माण और बिक्री की गयी है। यही नही डीएवी स्कूल सैक्टर चार में भारी भरकम प्लाट दिया गया है जिसमें उनसे करीब 13 करोड़ रूपये प्लाट विकास के नही लिये गये हैं। जबकि बाकी सभी से यह चार्जिज लिये गये हैं। इसमें भारी घपला किये जाने की आशंका व्यक्त की गयी है। इसी तरह की स्थिति लॉईनज़ क्लब की भी कही जा रही है। सांसद निधि, विधायक निधि और अमृत योजना के नाम पर किये जा रहे खर्चो की वास्तविकता पर भी गंभीर प्रश्न लग रहे हैं। कुल मिलाकर न्यू शिमला में जिस तरह से विज्ञापित विकास प्रारूप को नज़रअन्दाज करके आवंटन और निर्माण हुए हैं उससे उच्च न्यायालय के सामने कई गंभीर कानूनी सवाल खड़े हो गये हैं। माना जा रहा कि कानून का शासन व्यवहारिक रूप से स्थापित करने के लिये उच्च न्यायालय कोई बड़ा आदेश पारित कर सकता है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कसौली प्रकरण में किया है। क्योंकि सरकार के संज्ञान में यह सबकुछ लम्बे अरसे से चल रहा है लेकिन कोई कारवाई नही की गयी है।