प्रदेश भाजपा में फिर शुरू हुआ अटकलों का दौर

Created on Tuesday, 14 August 2018 08:05
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या हिमाचल भाजपा में सब कुछ अच्छा ही चल रहा है? यह सवाल उठा है पार्टी के प्रदेश महासचिव राम सिंह के उस ब्यान के बाद जो उन्होने शिमला में हुई उनकी पत्रकार वार्ता में दागा है। प्रदेश महासविच ने बड़े स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को संगठन में काई बड़ी जिम्मेदारी दिये जाने की चर्चा केवल सोशल मीडिया में ही है और हकीकत में जमीनी स्तर पर कुछ नही है। महासचिव राम सिंह के इस ब्यान के बाद प्रदेश भाजपा के ही शीर्ष नेता पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार का ब्यान आ गया। उन्होने भी बडे़ स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि अगले लोकसभा चुनावों में भाजपा की सरकार तो बन जायेगी लेकिन निश्चित रूप से पार्टी की सीटें कम हो जायेंगी। पार्टी की सीटें कम होने का आकलन और भी कई कोनो से आ रहा है। यह सीटें कितनी कम होती है? सीटें कम होने के बाद सरकार बन पायेगी या नही। यह सब भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन जब भाजपा की सीटें कम होगी तो निश्चित रूप से उसके सहयोगी दलों की भी कम हांगी। इसी आशंका के चलते एनडीए के कई सहयोगी अपनी नाराज़गी दिखाने के लिये बहाने तलाशने पर आ गये हैं। जैसा कि रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति ने एनजीटी के नये अध्यक्ष जस्टिस आर्दश गोयल की नियुक्ति को ही बहाना बना लिया। चन्द्र बाबू नायडू की पार्टी तो एनडीए को छोड़कर लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तक ला चुकी है। इस तरह जैसे-जैसे विपक्ष इक्ट्ठा होता जा रहा है और सरकार के खिलाफ उसकी आक्रामकता बढ़ती जा रही है उसी अनुपात में मोदी सरकार की परेशानीयां बढ़ती जा रही हैं।
इस परिदृश्य में यह स्वभाविक है कि हर प्रदेश को लेकर संघ/भाजपा के कई संगठन और सरकारी ऐजैन्सीयां तक लगातार सीटों के आकलन में लगी हुई है बल्कि इस बार के लोकसभा चुनावों में तो अमेरीका, रूस और चीन की ऐजैन्सीयां भी सक्रिय रहेंगी इसके संकेत राष्ट्रीय स्तर पर आ चुके हैं। इन बड़े मुल्कां की ऐजैन्सीयां प्रदेशों के चुनावों पर भी कई बार अपनी नज़रें रखती हैं। इसका अनुभव हिमाचल के 2012 के विधानसभा चुनावों में मिल चुका है। जब अमेरीकी दूतावास के कुछ अधिकारियों ने शिमला में कुछ हिलोपा नेताओं के यहां दस्तक दी थी। इसलिये प्रदेशां को लेकर संघ/ भाजपा की सक्रियता रहना स्वभाविक है क्योंकि सीटें तो प्रदेशों से होकर ही आनी है। इसलिये हर प्रदेश की एक-एक सीट पर नजर रखना स्वभाविक है। पिछली बार हिमाचल से भाजपा को चारों सीटें मिल गयी थी। लेकिन इस बार भी चारों सीटें मिल पायेंगी इसको लेकर पार्टी नेतृत्व भी पूरी तरह आश्वस्त नही हैं। यह ठीक है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है लेकिन यह भी उतना ही सच्च है कि यदि विधानसभा चुनावों के दौरान धूमल को नेता घोषित नही किया जाता तो स्थिति कुछ और ही होती। क्योंकि लोकसभा चुनावों के दौरान वीरभद्र के जिस भ्रष्टाचार को भुनाया गया था उस दिशा में मोदी सरकार व्यवहारिक तौर पर कोई परिणाम नही दे पायी है। बल्कि आज तो वीरभद्र के भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस की ताकत बन जाता है। आज वीरभद्र और कांग्रेस मोदी पर यह आरोप लगा सकते हैं कि उनके खिलाफ जबरदस्ती मामले बनाये गये हैं। वीरभद्र और आनन्द चौहान ने जब दिल्ली उच्च न्यायालय के एक जज के खिलाफ यह शिकायत की थी कि उन्हे इस अदालत से न्याय मिलने की उम्मीद नही है तभी उन्होने इस बारे में अपनी मंशा सार्वजनिक कर दी थी। इस शिकायत के बाद भी ईडी वीरभद्र की गिरफ्रतारी नही कर पाया था जबकि इस मामले में सहअभियुक्त बनाये गये आनन्द चाहौन और वक्कामुल्ला चन्द्रशेखर की गिरफ्तारी हुई। आज मोदी सरकार और उसकी ऐजैन्सीयों के पास इसका कोई जवाब नही है। इसलिये आने वाले लोकसभा चुनावों में प्रदेश में जयराम सरकार वीरभद्र और उसकी सरकार के भ्रष्टाचार को कोई मुद्दा नही बना पायेंगे क्योंकि आठ माह के कार्याकाल में एक भी मुद्दे पर कोई मामला दर्ज नही हो पाया है।
हिमाचल में लोकसभा का यह चुनाव मोदी और जयराम सरकार की उपलब्धियों पर लड़ा जायेगा मोदी सरकार की उपलब्धियां का ताजा प्रमाण पत्र अभी दिल्ली में रॅफाल सौदे पर हुई यशवन्त सिन्हा, अरूण शौरी और प्रंशात भूषण की संयुक्त पत्रकारा वार्ता है। इस वार्ता के बाद आया शान्ता कुमार का ब्यान भी उपलब्धियों का प्रमाण पत्रा बन जाता है। मोदी सरकार से हटकर जब जयराम सरकार पर चर्चा आती है तो इस सरकार के नाम पर भी सबसे बड़ी उपलब्धि हजा़रो करोड़ के कर्जो का जुगाड़ है। लेकिन इन कर्जो से हटकर प्रदेश स्तर पर राजस्व के नये स्त्रोत पैदा करने और फिजूल खर्ची रोकने को लेकर कोई कदम नही उठाये गये हैं। बल्कि उल्टे सेवानिवृत से चार दिन पहले तक सारे नियमां/ कानूनो को अंगूठा दिखाकर एक बड़े बाबू को स्टडीलीव ग्रांट करना है। यही नही एक और बड़े बाबू के मकान की रिपेयर हो रहा आधे करोड़ से ज्यादा का खर्चा भी सचिवालय के गलियारों में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। क्योंकि दो मकानां का एक मकान बनाया जा रहा है। अदालतों में सरकार की साख कितनी बढ़ती जा रही है यह भी सबके सामने आ चुका है। इस वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि संघ/भाजपा प्रदेश की इस स्थिति का आकलन कैसे करती है। यह भी सबको पता है कि विधानसभा चुनावों से पूर्व नड्डा नेतृत्व की रेस में सबसे आगे थे। उनके समर्थकों ने तो जश्न तक मना लिये थे। लेकिन उस दौरान भी जब संघ के आंकलन में स्थिति संतोशजनक नही आयी तब धूमल को ही नेता घोषित करना पड़ा। जब धूमल हार गये तब भी विधायकों का एक बड़ा वर्ग उनको नेता बनाये जाने की मांग कर रहा था। लेकिन धूमल, नड्डा के स्थान पर जयराम को यह जिम्मेदारी मिल गयी। परन्तु इन आठ महीनों में ही चर्चा यहां तक पंहुच गयी है कि कुछ अधिकारी और अन्य लोग ही सरकार पर हावि हो गये हैं। आठ माह में पार्टी कार्यकर्ताओं कोजो ताजपोशीयां मिलनी थी वह संभावित सूचियों के वायरल करवाये जाने की रणनीति से टलती जा रही हैं। कार्यकर्ताओं में रोष की स्थिति आ गयी है। सत्रों की माने तो मोदी-अमितशाह ने इस वस्तुस्थिति का संज्ञान लेते हुए धूमल को दिल्ली बुलाया था। लेकिन जैसे ही धूमल का मोदी-शाह को मिलने बाहर आया तभी प्रदेश में महासचिव के माध्यम से यह चर्चा उठा दी गयी कि धूमल को कोई बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा रही है। लेकिन धूमल की इस मुलाकात के बाद जयराम भी दिल्ली गये। वहीं पर हिमाचल सदन में शान्ता और जयराम में एक लम्बी मंत्रणा हुई। इस मंत्रणा से पहले शान्ता कुमार का ब्यान भी आ चुका था। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यदि हिमाचल से सीटों को लेकर हाईकमान आश्वस्त नही हो पाता है तो प्रदेश में कुछ भी घट सकता है। क्योंकि यह भी चर्चा है कि इन दिनों केन्द्र की ऐजैन्सीयों ने धूमल- एचपीसीए के खिलाफ चल रहे मामलों के दस्तावेज जुटाने शुरू कर दिये हैं। वैसे इन मामलों को वापिस लेने के लिये राज्य सरकार की ओर से कोई ठोस कदम भी नही उठाये गये हैं और संभवमः हाईकमान ने इस स्थिति का भी संज्ञान लिया है। यही नही राजीव बिन्दल का मामला वापिस लेने में भी सरकार की नीयत और निति सपष्ट नही रही है। इसी 8 माह के अल्प कार्यकाल में ही कई आरोपी पत्र और एक मन्त्री के डीओ लेटर तक वायरल हो गये हैं। यह सारी स्थितियां किसी भी हाईकमान के लिये निश्चित रूप से ही चिन्ता का विषय रहेंगी। माना जा रहा है कि इन्ही कारणों से अमितशाह का दौरा एक बार फिर रद्द हो गया है।