शिमला/शैल। एच.पी.सी.ए. सोसायटी है या कंपनी यह विवाद पिछले छः वर्ष से भी अधिक सयम से आर.सी.एस. की अदालत में लंबित चला आ रहा है। जबकि एच.पी.सी.ए. को लेकर विजिलैन्स ने कई मामले दर्ज किये और उनके चालान भी अदालत तक पंहुचा दिये है। लेकिन इस प्रकरण में जो पहली एफआईआर दर्ज हुई थी जिसमें सानन आदि कई अधिकारी भी बतौर दोषी नामज़द हैं। उसका चालान जब धर्मशाला के ट्रायल कोर्ट में पंहुचा था और उसका संज्ञान लेकर अदालत ने अगली कारवाई शुरू की थी तब इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती देकर इस संद्धर्भ में दर्ज एफआईआर को रद्द किये जाने की गुहार एच.पी.सी.ए. के ओर से लगायी थी उच्च न्यायालय ने इस गुहार को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद इसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गयी थी । इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट की कारवाई स्टे कर दी थी। यह मामला अभी तक सर्वोच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है।
अब जब प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और जयराम सरकार ने घोषणा की कि राजनीतिक द्वेष से बनाये गये सारे मामले वापिस लिये जायेंगे तब सर्वोच्च न्यायालय में भी सरकार और एच.पी.सी.ए. दोनों की ओर से सरकार यह कथित फैसला सामने लाया गया। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकार मामला वापिस लेती है तो उसे कोई एतराज नही होगा। अन्यथा मामला मैरिट पर सुना जायेगा और उसका परिणाम कुछ भी हो सकता है। यहां यह भी स्मरणीय है कि इस मामले में एच.पी.सी.ए. ने वीरभद्र को भी उच्च न्यायालय में प्रतिवादी बनाया था और अब सर्वोच्च न्यायालय में भी वह पार्टी हैं । इस मामले मे जब भी सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुइ है तब तब वीरभद्र के वकील उसमें मौजूद रहे है। वीरभद्र इस मामले में दर्ज एफआईआर वापिस लिये जाने का विरोध करते आ रहे है। संभवता इसी कारण से मामला वापिस लेने की दिशा में सरकार की ओर से कोई व्यवहारिक कदम नही उठाया गया है। एच.पी.सी.ए. को अदालत ने अपने तौर पर मामला वापिस लेने का अवसर दिया था क्योंकि अपील में एच.पी.सी.ए.ही अदालत पंहुची है। इस वस्तुस्थिति में एचपीसीए ने अदालत से ही यह आग्रह किया है कि वही इस पर फैसला करे अब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला कब और क्या आता है इस पर सबकी निगांहे लगी हुई है।
लेकिन इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय ने जो प्रदेश सरकारों और उच्च न्यायालयों को विधायकों /सांसदों के आपराधिक मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर सुनिश्चित करने के लिये विशेष अदालतें गठित करने के निर्देश दिये थे। उस पर क्या अनुपालना हुई है इस पर रिपोर्ट तलब की है। अदालत ने इस पर केन्द्र सरकार से नाराज़गी भी जाहिर की है। यह विशेष अदालतें मार्च 2018 तक गठित की जानी थी। हिमाचल प्रदेश सरकार और उच्च न्यायालय की ओर से इस संद्धर्भ में कोई कदम नही उठाया गया है। इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को एक रिपोर्ट जनवरी में भेजी गयी थी। जिसमें कहा गया था कि प्र्रदेश में विधायकों /सांसदों के खिलाफ 84 मामले हैं इनमें 20 मामले 2014 से पहले के हैं और 64 मामले उसके बाद के है। सर्वोच्च न्यायालय को भेजी गयी रिपोर्ट में सूत्रों के मुताबिक मामलों की संख्या तो दिखायी गयी है लेकिन इसके लिये विशेष अदालत बनाने की आवश्यकता है या नही इस बारे में कुछ स्पष्ट नही किया गया है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस संद्धर्भ में फिर कड़ा रूख अपनया है। माना जा रहा है कि अदालत के रूख को भांपते हुए सरकार ने एच.पी.सी.ए. का जो मामला आर.सी.एस.के पास लंबित चल रहा था उसे वहां से हटाकर मण्डलायुक्त शिमला को सौंप दिया है।
स्मरणीय है कि पिछले दिनों हुए प्रशासनिक फेरबदल में सरकार ने ऐसे अधिकारी को आर.सी.एस. लगा दिया जो स्वयं एच.पी.सी.ए. में दोषी नामजद है। ऐसे में उस अधिकारी के लिये यह मामला सुन पाना संभव नही था। इसमें दो बार इस मामले की पेशीयां लगी और दोनों बार उसे छुट्टी पर जाना पड़ा। अब उसने सरकार के सामने लिखित में जब यह वस्तुस्थिति रखी तब सरकार ने यह मामला मण्डलायुक्त को सौंप दिया हैं अब मण्डलायुक्त इसमें कितनी जल्दी फैसला देते हैं इस पर सबकी निगांहे लगी है।