सवालो में विजिलैन्स की नीयत और नीति

Created on Monday, 08 October 2018 11:56
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रदेश विजिलैन्स ने 3.9.14 को संजौली निवासी एक शान्ता लाल चोपड़ा के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(1) (d) r/w 13(2) और आई पी सी की धारा 420/336/120-b के तहत एक एफ आई आर विजिलैन्स थाना शिमला में दर्ज की थी। इस एफ आई आर की संस्तुति थाना को एस पी विजिलैन्स के कार्यालय द्वारा प्रारम्भिक जांच करने के दौरान 270 पेज के दस्तावेज कब्जे में लेने के बाद 2.9.14 को की गयी थी। एस पी विजिलैन्स ने यह जांच अपनी ही सोर्स रिपोर्ट के आधार पर करके इस संद्धर्भ में एफ आई दर्ज करने के निर्देश दिये थे। जिन पर यह एफ आइ आर दर्ज भी हो गयी और नियमानुसार इसकी एक प्रति सूचनार्थ संबधित कोर्ट को भी भेज दी थी। सूत्रों के मुताबिक कोर्ट ने इस पर कुछ प्रश्न चिन्ह लगाकर इसे वापिस विजिलैन्स को भेज दिया था और उसके बाद शायद अब तक इसकी सूचना अदालत में नही पंहुची और न ही इस मामले में कोई जांच अब तक आगे बढ़ी। स्वाभिक है कि जब विजिलैन्स स्वंय अपनी ही सोर्स रिपोर्ट के आधार पर कोई मामला दर्ज करती है तो यह मामला उसकी नजर में एक गम्भीर मामला रहा होगा। लेकिन जब चार सालों में उस पर कोई जांच ही न हो तो यह सवाल उठना भी स्वभाविक है कि यह मामला दर्ज करके विजिलैन्स ने अपना ही बस्ता भारी क्यों कर लिया?
इस सवाल की पड़ताल के लिए इसमें दर्ज हुई एफ आई आर के आरोंपों पर नज़र डालना आवश्यक है। इसमें चोपड़ा के खिलाफ पांच आरोप है। पहला है कि उसने संजौली में एक सात मे जिला भवन का निमार्ण कर लिया है जबकि उसका नक्शा तीन मंजिलों का ही स्वीकृत था। इस भवन का रिर्वाइजड़ प्लान नगर से पास करवाने के लिये चोपड़ा अदालत में भी गये और अन्ततः 91852 रूपये जुर्माने के साथ इसे स्वीकृत भी कर लिया गया। यह भी एफ आई आर में ही दर्ज है। दूसरा आरोप है कि चोपड़ा ने 1986 में माल रोड़ शिमला पर एक रघुनाथ से पुराना भवन खरीदा जिसका उस समय तीन मंजिल तक का नक्शा पास था। लंकिन चोपड़ा ने इसमें भी स्वीकृति से अधिक निर्माण कर लिया। इस निर्माण को नगर निगम के अधिकारियों के साथ मिलिभगत करके नियमित करवाने का आरोप है। तीसरा आरोप है कि चोपड़ा बिना किसी पंजीकरण के बिल्डर का काम कर रहा है। नियमानुसार बिल्डर की परिभाषा में वह व्यक्ति आता है जो बीस या इससे अधिक फ्लैट/प्लाट एक वर्ष में निर्माण करके बेचे। चोंपड़ा ने कहां 20 फ्लैट बनाये और बेचे इसका कोई विविरण एफ आई आर में नही है। चौथा आरोप है कि चोपड़ा ने कुफ्टाधार में फ्लैट बनाये और बेच दिये। इसमें ज्यादा कीमत पर बेचने और उसे कम में दिखाने का आरोप है। पांचवा आरोप है कि चोपड़ा ने अपने आर्किटैक्ट प्लानर डी आर पवार के जाली दस्तख्त करके कुफ्टाधार का रिवाईजड़ प्लान 2009 में सौंपा था। डी आर पवार की मौत 2011 में हो चुकी है और यह एफ आई आर 2014 में हो रही है।
इस एफ आई आर को देखने से यह सामने आता है कि जो भी प्रापर्टी चोपड़ा ने खरीदी और उसमें निर्माण किया उसमें मूल स्वीकृत प्लान से अधिक का निर्माण कर लिया गया बाद में अधिकारियों से मिल मिलाकर उसे नियमित करवा लेने का आरोप है। यह आरोप कितने सही है यह तो जांच से पता चलेगा। लेकिन जब एफ आई आर में ही यह आ जाता है कि 91852 रूपये का जुर्माना देकर नियमित किया गया है तो उससे सारे आरोपों की विश्वसनीयता पर स्वंय ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। क्योंकि प्रदेश में अवैध निमार्णो को नियमित करने के लिए नौ बार रिटैन्शन पॉलिसिंया लायी गयी है।
सत्राह बार आन्तिरम प्लान में संशोधन हुए हैं इस मामले में भी जब एक लाख के करीब जुर्माने का तथ्य रिकार्ड पर है। तो उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सब रिटैन्शन पॉलिसी के तहत ही हुआ होगा। रिटैन्शन पॉलिसीयां तो अवैधताओं को नियमित करने के लिये ही लायी गयी है। इस एफआईआर को लेकर जब चोपड़ा से उसका पक्ष पुछा गया तो उसने स्पष्ट कहा कि उसने कोई भी काम नियमो के विरूद्ध नही किया है। सारे प्लान वाकायदा स्वीकृत है और उसपर लगाये जा रहे सारे आरोप एकदम वेबुनियाद है।
यह मामला विजिलैन्स ने अपनी सोर्स रिपोर्ट के आधार पर दर्ज किया है। इससे अवैध निर्माणों को लेकर विजिलैन्स की चिन्ता और यह सक्रियता स्वागत योग्य हैं यहां विजिलैन्स से यह अपेक्षा है कि अभी अवैध निर्माणों को लेकर एनजीटी ने 16.11.17 को जो फैसला दिया है कि उसे आधार बनाकर इस संद्धर्भ में कारवाई करे। एनजीटी के फैसले में यह आया है कि शिमला में ही आठ हज़ार से अधिक ऐसे निर्माण हुए है जिसका कभी कोई नक्शा - पर्चा बना ही नही है औरे वह सिर से एकदमे अवैध है। नगर निगम क्षेत्रा में सात मंजिलों से लेकर ग्यारह मंजिलों तक बने भवनों की सुची तो विधानसभा के पटल तक आ चुकी है जिनके खिलाफ कोई कारवाई नही हुई है। आज भी नगर निगम के हर वार्ड में ऐसे निर्माण चल रहे मिल जायेंगे जिनके खिलाफ एनजीटी के फैसले के बाद कारवाई करनी ही पड़ेगी। ऐसे में जब विजिलैन्स चोपड़ा के खिलाफ अपनी सोर्से रिपोर्ट के आधार पर मामला दर्ज कर सकती है तो जो रिकॉर्ड अब अदालती फैसलों के माध्यम से सामने आया है और उसके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश हैं तो उन निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिये कोई कदम क्यो नही उठाये जा रहे हैं। यही नहीं विजिलैन्स के पास सरकार द्वारा 31 अक्तूबर 1997 को अधिसूचित रिवार्ड स्कीम के तहत आयी दर्जनों शिकायतें आज भी वर्षो से लंबित चली आ रही है। लेकिन उन पर भी कारवाई का साहस नही जुटा पा रही है। क्या विजिलैन्स अपने पुराने रिकॉर्ड को खंगाल कर उन शिकायतों पर कारवाई सुनिश्चित करेगी। अब तो सरकार ने विजिलैन्स के लिये एक पुलिस के ही अधिकारी को सचिवालय में प्रधान सचिव विजिलैन्स की जिम्मेदारी दे रखी है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि विजिलैन्से एनजीटी के फैसलों पर अमल सुनिश्चित करने के लिये कारगर कदम उठायेगी। अन्यथा विजिलैन्स पर ही यह आरोप लगेगा कि कुछ निहित स्वार्थो के लिये ही लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करके उन्हे वर्षो तक लटकाये रखा जाता है। विजिलैन्स की सुविधा के लिये एनजीटी के फैसले का एक निर्देश सामने रखा जा रहा है। ॅी

Wherever unauthorised structures, for which no plans were submitted for approval or NOC for development and such areas falls beyond the Core and Green/ Forest area the same shall not be regularised or compounded. However, where plans have been submitted and the construction work with deviation has been completed prior to this judgement and the authorities consider it appropriate to regularise such structure beyond the sanctioned plan, in that event the same shall not be compounded or regularised without paymentof environmental compensation at the rate of Rs. 5,000/- per sq. ft. in case of exclusive selfoccupied residential construction and Rs. 10,000/- per sq. ft. in commercial or residential-cum-commercial buildings. The amount so received should be utilised for sustainable development and for providing of facilities in the city of Shimla, as directed under this judgement.
No construction of any kind, i.e. residential, commercial, institutional or otherwise would be permitted within three meters from the end of the road/national highways in the entire State of HP, particularly, in Shimla Planning Area. We direct that all the concerned authorities shall duly enforce the valley view regulation and direct the same.