जयराम और सत्ती के लिये खड़ी हुई चुनौती
शिमला/शैल। दस माह के इन्तजार के बाद अन्ततः दस और नेताओं को ताजपोशीयों का उपहार नवरात्रों में नसीब हो गया है। इनमें अकेले गणेश दत्त ही हिमफैड की अध्यक्षता प्राप्त कर पाये हैं और बाकी नौ को उपाध्यक्ष की कुर्सी से हीे संतोष करना पड़ा है। इस ताजपोशी से पहले सरकार बनते ही चारों संसदीय क्षेत्रों के संगठन मंत्री और एक मीडिया सलाहकार को ताजपोशियां मिल गयी थी। उसके बाद तीन महिला नेत्रियां तथा कुछ सेवानिवृत अधिकारियों को भी ऐसे ही सम्मान के साथ नवाजा गया था। बल्कि इनमें एक नेत्री तो इतनी भाग्यशाली रही है कि उन्हे कांग्रेस सरकार में भी ताजपोशी प्राप्त थी और अब फिर हासिल हो गयी है। इसी के साथ दो विधायकों नरेन्द्र बरागटा और रमेश धवाला को भी मन्त्री स्तर का सम्मान हासिल हो गया है। इस तरह जयराम सरकार ने भी अब तब तीन दर्जन से अधिक नेताओं को अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के रूप में सम्मान से नवाजा है। अभी कई महत्वपूर्ण कुर्सीयां खाली हैं और उम्मीद की जा रही है कि उन्हंे भी लोकसभा चुनावों से पूर्व भर दिया जायेगा। क्योंकि पार्टी को फिर से लोकसभा की चारों सीटों पर जीत हासिल करनी है और इसके लिये यदि ताजपोशीयों का आंकड़ा कांग्रेस के आंकड़े से भी बढ़ाना पड़ेगा तो जयराम इसमें भी गुरेज नही करेंगे।
लेकिन क्या इस सबके बावजूद जयराम चारों सीटों पर जीत हालिस कर पायेंगे यह सवाल भी साथ ही खड़ा हो गया है। क्योंकि इन ताजपोशीयों के बाद हमीरपुर के भोरंज और कांगड़ा के इन्दौरा में नाराजगीे के स्वर मुखर होकर पार्टी की चैखट लांघकर सड़क तक आ पहंुचे हैं। मनोहर धीमान से तो पद वापिस लेने तक की मांग रख दी गयी है। फिर जब दो विधायकों बरागटा और ध्वाला को ताजपोशी दे दी गई है तो उसी तर्क पर अन्य विधायकों को इससे वंचित कैसे रखा जा सकेगा। जयराम सिद्धान्त रूप से इतनी ताजपोशीयों के पक्षधर नही रहे हैं यह उन्होने ऊना के बंगाणा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए स्पष्ट कहा था। लेकिन अब जब उन्हे यह ताजपोशीयां देनी पड़ी है तो स्वभाविक है कि यह सब उन्हे भारी राजनीतिक दबाव में करना पड़ा है। पार्टी में किस तरह से आन्तरिक समीकरण उलझ चुकेे हैं इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जहां-जहां जिला परिषदों और ब्लाॅक समीतियों में पासे बदलवा कर सत्ता पर कब्जा करने का प्रयास किया गया वहां पर पूरी तरह सफलता नही मिल पायी है। बंजार में तो जनता ने ही भाजपा के खिलाफ वोट दिया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नही चल रहा है।
इसके अतिरिक्त आने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को लेकर भी स्थिति बहुत सहज नही होने वाली है। क्योंकि इस समय पार्टी के शिमला और हमीरपुर के सांसदों के खिलाफ मामले अदालत में चल रहे हैं यदि पार्टी इन लोगों को फिर से उम्मीदवार बनाती है तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार इनके मामलों को पार्टी को चुनावों के दौरान पूरी तरह प्रचारित करके मतदाताओं के सामने रखना होगा। ताकि मतदाताओं को इनके खिलाफ चल रहे मामलों की विस्तृत जानकारी मिल सके। इसमें जब ‘‘कैशआॅन कैमरा’’ जैसा आरोप जनता के सामने जायेगा तो उससे निश्चित रूप से पार्टी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ेगा। ऐसे में यह चुनाव सरकार को अपनी ही छवि पर लड़ना पड़ेगा। इस परिदृश्य में शिमला और हमीरपुर के वर्तमान सांसदों के स्थान पर नये उम्मीदवार लाने की मांग उठ सकती है। कांगड़ा के सांसद शान्ता कुमार तो पहले ही कह चुक हैं कि वह अगला चुनाव लड़ने के ज्यादा इच्छुक नही हैं। इसी के साथ यह सवाल भी उठेगा कि पार्टी किसी महिला को भी चुनाव में उतारती है या नही और उसके लिये कौन सी सीट रखी जाती है। मण्डी से मुख्यमन्त्री की पत्नी के भी उम्मीदवार होने की चर्चाएं काफी समय से चल निकली है और किसी ने इन अटकलों को खारिज भी नही किया है। लेकिन मण्डी से पंडित सुखराम ने भी उनके पौत्र को टिकट दिये जाने की मांग छेड़ दी है ऐसे में इस बार का लोकसभा चुनाव 2014 की तरह आसान रहने वाला नही है।
2014 के चुनाव में भाजपा ने वीरभद्र सिंह के खिलाफ लगेे आरोपों को खूब भुनाया था। लेकिन इस बार वही आरोप सरकार के गले की फांस बनने वाले हैं। क्योंकि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का अपना ही रिकार्ड बहुत अच्छा नही है। केन्द्र की ऐजैन्सी एनपीसीसी ने ही प्रदेश को आठ करोड़ का चूना लगा दिया है। लेकिन संवद्ध तन्त्र इस पर आॅंखे मूंदे बैठा है। जबकि कांग्रेस विधायक राम लाल ठाकुर पूरेे दस्तावेज़ी साक्ष्यों के साथ एक पत्रकार वार्ता में इस आरोप को उछाल चुके हैं। इसी तरह जहां सरकार 118 की जांच करवा रही है वहीं पर स्वयं इसमें नियमों/कानूनांे को अंगूठा दिखा रही है। ऐसे बहुत सारे प्रकरण घट चुके हैं और उनके दस्तावेजी साक्ष्य भी बाहर आ चुके हैं। सरकार और संगठन इन मुद्दों के प्रति पूरी तरह बेखबर होकर चल रहा है। बल्कि आपस में ही उलझा हुआ है और इस उलझन का आलम यहां तक पंहुच गया है कि पिछले दिनों अमितशाह को जयराम और पवन राणा को इक्कठे बैठाकर लम्बा प्रवचन पिलाना पड़ा है।
यह है नई ताजपोशियां
प्रदेश सरकार ने राज्य के विभिन्न बोर्डों व निगमों के लिए एक अध्यक्ष व नौ उपाध्यक्षों की नियुक्ति की है। गणेश दत्त को हिमफैड का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। हमीरपुर के विजय अग्निहोत्री को हिमाचल पथ परिवहन निगम के उपाध्यक्ष, ऊना के राम कुमार को एचपीएसआईडीसी का उपाध्यक्ष, पूर्व मंत्री प्रवीण शर्मा को हिमुडा का उपाध्यक्ष, किन्नौर के सूरत नेगी को वन निगम का उपाध्यक्ष, शिमला की रूपा शर्मा को सक्षम गुड़िया बोर्ड का उपाध्यक्ष, कांगड़ा के मनोहर धीमान को जीआईसी का उपाध्यक्ष, सोलन के दर्शन सैनी को हिमाचल जल प्रबन्धन बोर्ड का उपाध्यक्ष, सिरमौर के बलदेव तोमर को हि.प्र. खाद्य एवं आपूर्ति निगम का उपाध्यक्ष तथा कुल्लू के राम सिंह को एचपीएमसी के उपाध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया है।