मैडिकल सर्टीफिकेट जारी करने में घपला होने की आशंका

Created on Tuesday, 30 October 2018 05:27
Written by Shail Samachar

 शिमला/शैल। जिला शिमला के सांख्यिकीय कार्यालय में तैनात वरिष्ठ सहायक प्रेम ठाकुर ने 21.5.2018 से 13.7.2018 तक मैडिकल सर्टीफिकेट अपने विभाग में सौंपा हैं क्योंकि इस दौरान वह छुट्टी पर थे। यह 55 दिन का मैडिकल सर्टीफिकेट आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डा.राहुल गुप्ता के हस्ताक्षरों से जारी हुआ है। जब यह मैडिकल विभाग को प्रस्तुत किया गया तभी इसके जाली होने की शिकायत हिमाचल प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के महासचिव द्वारा कर दी गयी। शिकायत आने के बाद विभाग ने अपने स्तर पर जांच करने के बाद पाया कि डा. राहुल गुप्ता आईजीएमसी के वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद पर ही तैनात नही है और यह सर्टीफिकेट जारी करने के लिये अधीकृत हैं। क्योंकि वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक के पद पर डॉ.जनक राज तैनात हैं और यह पद पूरी तरह प्रशासनिक है। जबकि डा. राहुल गुप्ता ने जो बीमारी प्रमाण पत्र में बताई है वह अस्थि विभाग या न्यूरो विभाग से संबधित है और डा. राहुल गुप्ता फॉरेंसिक विभाग में सहायक आचार्य हैं तथा रिकार्ड रूम का कार्य भी देख रहे हैं।

जिला अनुसंधान अधिकारी ने 24 जुलाई 2018 को इस संद्धर्भ में पत्र लिखकर आईजीएमसी के प्रधानाचार्य और अस्थि विभाग से जानकारी हासिल की। इस पर अस्थि विभाग ने 28.7.18 को सूचित किया कि यह प्रमाण पत्र अस्थि विभाग द्वारा जारी नही किया गया है जबकि जो बीमारी बताई गयी है वह अस्थि/न्यूरो विभाग से ताल्लुक रखती है। आईजीएमसी से यह स्पष्टीकरण आने के बाद विभाग ने इसे पूरी तरह धोखाधड़ी का मामला मानते हुए 19.9.2018 को इसी की शिकायत पुलिस अधीक्षक शिमला को कर दी। इस शिकायत में इसी कर्मचारी का एक 26.6.2014 का चिकित्सा प्रति पूर्ति का दावा भी उठाया है। जिसमें आईजीएमसी के हृदय विभाग के एक डॉ. मनीश से ईलाज करवाया बताया गया है। जबकि विभाग में इस नाम का कोई डाक्टर ही तैनात नही है। इस तरह यह चिकित्सा प्रतिपूर्ति का दावा भी धोखाधड़ी माना गया है। विभाग आईजीएमसी से विस्तृत जानकारी जुटाने के बाद ही इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि संबंधित कर्मचारी ने शुद्ध रूप से यह धोखाधड़ी की है और तभी इसकी शिकायत पुलिस अधीक्षक शिमला से की है।
मैडिकल सर्टीफिकेट कितने दिनों तक का किस डॉक्टर द्वारा जारी किया जाता है यह प्रदेश सरकार की 19 जुलाई 2006 की अधिसूचना No HFN-B(A) 12-9/79/(1/N) में पूरी तरह स्पष्ट किया गया है। इसके अनुसार मैडिकल अफसर केवल सात दिन तक का ही सर्टीफिकेट जारी कर सकता है इससे अधिक के लिये बीमार को विशेषज्ञ को रैफर करना होता है। लेकिन इस केस में ऐसा नही किया गया। इससे सवाल पैदा होता है कि क्या डॉक्टरों को इस संबंध में उनके अधिकारों की जानकरी ही नही है। या फिर इसमें कोई बड़े स्तर का घपला चल रहा है। इसी के साथ विजिलैन्स और पुलिस की कारवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि विभाग के कर्मचारी संघ की शिकायत पर विजिलैन्स ने 20 जुलाई को शिकायत दर्ज कर ली थी लेकिन इस पर आज तक कोई कारवाई नही हुई है। इसी तरह जिला सांख्यिकी अनुसंधान अधिकारी ने पुलिस अधीक्षक शिमला को 19-9-2018 को वाकायदा पत्र लिखकर अधिकारिक तौर पर यह शिकायत भेजी है परन्तु अभी तक कोई एक्शन सामने नही आया है। इसी बीच आईजीएमसी के वरिष्ठ अधीक्षक जनक राज ने 7-7-2018 को अपनी शक्तियां डा. राहुल गुप्ता को डैलीगेट कर दी हैं। डा. जनक राज अब केवल 10% मामले ही अपने स्तर पर देखेंगे। यह शक्तियां डैलीगेट 7-7-2018 को हाती है यदि सही में हुई हैं तो। लेकिन क्या इससे फॉरेंसिक का डाक्टर अस्थि विभाग का प्रमाण पत्र जारी करने के लिये पात्र हो जाता है? इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से सारा घटनाक्रम घटा है उससे स्पष्ट हो जाता है कि यदि इसमें गहनता से जांच होगी तो बहुत कुछ सामने आयेगा।