शिमला/शैल। हिमफैड और होटल लैण्ड मार्क के बीच पिछले ग्यारह वर्षों से चल रहा मानहानि का विवाद नये अध्यक्ष गणेशदत्त के लिये एक कसौटी बनने जा रहा है। होटल लैण्ड मार्क के खिलाफ मानहानि का यह मामला हिमफैड ने 2007 में दायर किया था। 2017 में लैण्ड मार्क की ओर से गोपाल मोहन ने हिमफैड से संपर्क करके इसमें समझौते की पेशकश की थी। इस पेशकश को जब बीओडी के सामने रखा गया तब बोर्ड ने परूे विचार विमर्श के बाद इसे अस्वीकार कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक अब हिमफैड में नये अध्यक्ष और बोर्ड की नियुक्ति के बाद इसमे समझौते के प्रयास फिर से शुरू हो गये हैं। लेकिन इन प्रयासों पर यह सवाल उठ रहा है कि पिछले ग्यारह वर्षों से यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में चल रहा है। अदालत की ओर से इसमें लोकल कमीशनर नियुक्त किया गया था। कमीशनर की रिपोर्ट हिमफैड के आरोप को प्रमाणित करती है। इस रिपोर्ट के बाद यह फैसला हिमफैड के पक्ष में आने की पूरी संभावना मानी जा रही है और यदि फैसला हिमफैड के हक में आ जाता है तो लैण्डमार्क को होटल में आने के लिये बनाया रैंप तोड़ना पड़ता है। रैंप के टूटने से होटल के व्यापार पर असर पड़ेगा। इसलिये लैण्डमार्क अब इसमें समझौते के प्रयास कर रहा है ताकि रैंप न तोड़ना पड़े। दूसरी वर्तमान स्थिति में हिमफैड पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। संभवतः इसी को सामने रखकर हिमफैड बोर्ड ने समझौते से इन्कार कर दिया था। ऐसे में अब पिछले बोर्ड के फैसले को बदलकर लैण्डमार्क की पेशकश को स्वीकार करना नये बोर्ड के लिये एक संवदेनशील मुद्दा बन गया है।
स्मरणीय है कि जब 1986 में हिमफैड का निर्माण किया गया था तब इसकेे निर्माण से एक तिलक राज की 36.4 वर्ग गज ज़मीन का नुकसान हो गया था। इस नुकसान पर तिलक राज ने हिमफैड को 81000/- रूपये के हर्जाने का नोटिस दे दिया और दावा दायर कर दिया। इसके बाद 29-8-1986 को इसमें 48000 रूपये पर समझौता हो गया और तिलक राज ने यह 36.4 गज जमीन हिमफैड के नाम करवा दी। इसके बाद 1989 में तिलक राज और हिमफैड में दफतर के सामने पड़ी खाली जमीन के उपयोग को लेकर फिर झगड़ा हो गया और 20-12-1995 को फिर समझौता हो गया और तिलक राज ने इसके उपयोग को हिमफैड को एनओसी दे दिया। इस समझौते के बाद 2002 में तिलकराज की मौत हो गयी और उसके वारिसों रणवीर शर्मा और अरूणा शर्मा ने यह संपत्ति 23-10-2002 मूल कृष्ण और गोपाल कृष्ण को बेच दी। इस बिक्री के बाद नये खरीदारों ने 20-12-1995 को तिलक राज के साथ हुए समझौते को मानने से इन्कार कर दिया और हिमफैड के सामने लोहे का गेट लगा दिया। इस गेट के लगने से हिमफैड और लैण्डमार्क में यह नया विवाद खड़ा हुआ है जो ट्रायल कोर्ट से होकर उच्च न्यायालय में 2007 में पहुंच गया और अब तक लंबित चल रहा है। हिमफैड और तिलक राज में समझौता 1995 में हो गया था और लैण्डमार्क के मालिकों ने यह संपत्ति 2002 में खरीदी यह मामला एक बार सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंच गया था और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे उच्च न्यायालय में उठाने के निर्देश दिये थे।