काॅलिज का आवासीय परिसर गिराये जाने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर भूल वश हुई रद्द

Created on Tuesday, 20 November 2018 09:42
Written by Shail Samachar

                      इसी प्रकरण में दर्ज पहली एफ.आई.आर. राजनीतिक

                            प्रतिशोध का परिणाम-सर्वोच्च न्यायालय
शिमला/शैल। सर्वोच्च न्यायालय ने दो नवम्बर को दिये फैसले में एचपीसीए के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर 12 of 2013 ओर 14 of 2013 को एक ही काॅमन आदेश के साथ रद्द कर दिया था। लेकिन अब इसमें एफआईआर 14 of 2013 को भूलवश रद्द कर दिया जाना मानते हुए इस फैसले को वापिस ले लिया है। इस तरह यह एफआईआर अभी तक अपनी जगह बनी हुई है। स्मरणीय है कि धर्मशाला के राजकीय महाविद्यालय का एक दो मंजिला आवासीय परिसर क्रिकेट स्टेडियम के साथ लगता बना हुआ था और इसमें काॅलिज के प्राध्यापक आदि रह रहे थे। इस परिसर को क्रिकेट खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिये खतरा माना जा रहा था। वैसे क्रिकेट स्टेडियम के लिये करीब 49 हज़ार वर्ग मीटर भूमि 2002 में ही दे दी गयी थी। इसकी लीज़ 29 जुलाई 2002 को हस्ताक्षरित हुई थी और इस पर स्टेडियम का निर्माण भी शीघ्र ही हो गया था। लेकिन काॅलिज का आवासीय परिसर खिलाड़ीयों की सुरक्षा के लिये खतरा हो सकता है यह सवाल 2008 में उठा जब इस आश्य की एक बैठक तत्कालीन जिलाधीश केे.के.पन्त की अध्यक्षता में 4.4.2008 को संपन्न हुई। इस बैठक में जिलाधीश के अतिरिक्त एसडीएम धर्मशाला, कार्यकारी अभियन्ता और सहायक अभियन्ता लोक निर्माण विभाग धर्मशाला, प्रिंसिपल राजकीय महाविद्यालय धर्मशाला और एचपीसीए के पदाधिकारी संजय शर्मा भी शामिल हुए। 

इस बैठक में खिलाड़ियों की सुरक्षा आवासीय परिसर की जर्जर हालत के कारण इसे किसी दूसरे स्थान पर तामीर करने पर विचार किया गया। बैठक में फैसला लिया गया कि काॅलिज प्रिंसिपल आवासीय परिसर को लेकर लोक निर्माण विभाग से अधिकारिक रिपोर्ट लेंगे। तहसीलदार को पत्र लिखकर इस परिसर के लिये सरकार द्वारा किसी अन्य स्थान पर भूमि उपलब्ध करवाने का आग्रह करेंगे। शिक्षा सचिव को पत्र लिखकर आवासीय परिसर के निर्माण के लिये धन उपलब्ध करवाने का आग्रह करेंगे। इसी के साथ यह भी फैसला हुआ कि एचपीसीए भी इसके निर्माण के लिये धन देगी। इस बैठक के फैसलों की अधिकारिक जानकारी 24.5.2008 को उच्च शिक्षा निदेशक और मुख्यमंत्री कार्यालयों को भी भेज दी गई। इसमें यह भी कह दिया गया कि यह बैठक मुख्यमंत्री के निर्दशों पर बुलाई गयी थी। यह बैठक सरकार के अधिकारियों की अधिकारिक बैठक थी लेकिन इसमें एचपीसीए के संजय शर्मा के शामिल होने से इसका पूरा चरित्र ही बदल गया। इस बैठक में जो फैसले लिये गये उन पर अमल की स्थिति क्या है इसकी कोई रिपोर्ट आने से पूर्व ही इस परिसर को गिरा दिया गया। यह परिसर 720 वर्गमीटर भूमिे पर स्थित था और इस तरह एचपीसीए ने इस पर अपने आप ही कब्जा कर लिया। यहां तक हुआ कि तत्कालीन शिक्षा सचिव पीसी धीमान ने तो दो कदम आगे जाते हुए यह कह दिया कि आवासीय परिसर के निर्माण के लिये एचपीसीए से धन लेने की आवश्यकता नही है। लेकिन इस 720 वर्ग मीटर भूमि को लेने के लिये एचपीसीए का आवेदन 3.7.2008 को आया। इससे यह सवाल खड़ा हुआ कि 4.4.2008 की बैठक में एचपीसीए के संजय शर्मा कैसे शामिल हो गये। यह 720 वर्ग मीटर भूमि एचपीसीए को आज तक आंबटित नही लेकिन इस पर कब्जा एचपीसीए ने कर रखा है और इसी अवैध कब्जे और आवासीय परिसर को अवैध रूप से गिराये जाने को लेकर ही दूसरी एफआईआर 14 of 2013 को दर्ज हुई थी। जो अब तक रद्द नही हुई है।
पहली एफआईआर 12 of 2013 स्टेडियम के लिये जमीन लीज पर दिये जाने को लेकर हुई थी। यह लीज 2002 में हस्ताक्षरित हुई थी जिसमें 49 हजार वर्ग मीटर से अधिक भूमि दे दी गयी जबकि उस समय के लीज रूल्ज के मुताबिक खेल संघों को दो बिस्वे से अधिक जमीन नही दी जा सकती थी। इस लीज का किराया भी टोकन एक रूपये किया गया है। 2002 में दी गयी लीज नियमों के विरूद्ध थी इसी को लेकर एचपीसीए के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। इसमें जब एचपीसीए ने सरकार से जमीन मांगी थी तब उसने इसका उद्देश्य क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण करना स्पष्ट रूप से कहा है स्वभाविक है कि स्टेडियम का निर्माण दो बिस्वा में नही हो सकता। नियम दो बिस्वा का था तो इसकी जानकारी संबंधित अधिकारियों को सरकार के सामने रखनी थी जो नही रखी गयी। इस सब में तकालीन निदेशक युवा सेवाएं एवम् खेल सुभाष आहलूवालिया और सचिव टीजी नेगी ने विशेष भूमिका निभायी है बल्कि इन्ही के कारण एचपीसीए को यह जमीन मिली है। यह उस समय सरकार को फैसला लेना था कि प्रदेश में एक अच्छा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम चाहिये या नही लेकिन इन अधिकारियों ने सरकार के सामने यह सब नही रखा। अन्यथा संभव था कि सरकार लीज नियमों में उस समय संशोधन कर लेती जो 2012 में किया गया। सरकार बदलने के बाद जब विजिलैन्स ने इस पर मामला दर्ज किया तब इस मामले में प्रभावी भूमिका निभाने वाले अधिकारियों को दोषी नामजद नही किया गया।
इस मामले में सुभाष आहलूवालिया, सुभाष नेगी, टीजी नेगी, अजय शर्मा, दीपक सानन, गोपाल चन्द, के.के.पन्त, पी.सी.धीमान और देवी चन्द सहित नौ अधिकारियों की प्रमुख भमिका रही है। बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि यदि इस पूरे प्रकरण में कोई पहले दोषी बनते है तो यही अधिकारी हैं क्योंकि इन्होंने कभी भी रिकार्ड पर सरकार के सामने सही स्थिति नही रखी। यदि इन अधिकारियों ने नियमों की सही जानकारी राजनीतिक नेतृत्व के सामने रखी होती और नेतृत्व इसे अनदेखा करके अधिकारियों को लीज हस्ताक्षरित करने के निर्देश दे देता तो सिर्फ नेतृत्व की ही जिम्मेदारी हो जाती परन्तु ऐसा हुआ नही। लेकिन विजिलैन्स ने जब मामला दर्ज किया और जांच आगे बढ़ाई तब सभी सवंद्ध अधिकारियों को एक बराबर इसमें दोषी नामजद नही किया। जिन्हें नामजद किया भी उनके खिलाफ आगे चलकर मुकद्दमा चलानेे की अनुमति देने से इन्कार हो गया। वीरभद्र के पूरे कार्यकाल में इसी एक एचपीसीए प्रकरण पर विजिलैन्स का सारा ध्यान केन्द्रित रहा। इसी कारण से एचपीसीए ने एक स्टेज पर वीरभद्र को भी इसमें प्रतिवादी बना दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी आधार पर पहलीे एफआईआर को रद्द कर दिया। क्योंकि उसमें मामले में संलिप्त रहे अधिकारियों को छोड़ दिया गया और कवेल राजनीतिक लोगों के खिलाफ ही कारवाई की गयी। इसी पर सर्वोच्च न्यायालय ने इस पूरे प्रकरण को एक प्रकार से राजनीति प्रतिशोध करार देते हुए एफआईआर को रद्द किया है।
अभी सर्वोच्च न्यायालय में एक मामला लंबित चल रहा है इसमें एचपीसीए ने राज्य सरकार, वीरभद्र सिंह और एडीजीपी तथा एसपी विजिलैन्स को प्रतिवादी बना रखा है। यह मामला 12.11.18 को सुनवाई के लिये लगा था। उसके बाद 19.12.18 को जब यह सुनवाई के लिये आया तब वीरभद्र सिंह के वकील ने यह अदालत के सामने रखा कि आवासीय परिसर को गिराये जाने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर को गलती से रद्द कर दिया गया है। इसमें प्रतिवादी बनाये गये वीरभद्र सिंह की ओर से उनका पक्ष ही अदालत में नही रखा गया है यह सामने आते ही अदालत ने इसे गलती मानते हुए इसकी अगली सुनवाई 29.11.18 को रख दी है। इस तरह यह एफआईआरअभी तक यथास्थिति बनी हुई है और इसमें संलिप्त अधिकारियों की परेशानी बढ़ने की पूरी-पूरी संभावना बनी हुई है।